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Wednesday, May 8, 2024
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उत्तराखंड वक्फ बोर्ड की 20 वर्षों से कोई भी वार्षिक रिपोर्ट तैयार नहीं की गई

इंडिया टुमारो

देहरादून | उत्तराखंड वक्फ बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट, 2003 में बोर्ड के गठन के बाद से ही कभी भी राज्य की विधानसभा में पेश ही नहीं की गई क्योंकि बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट कभी तैयार ही नहीं की गई. बोर्ड की रिपोर्ट तैयार करना अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की ज़िम्मेदारी है. वर्तमान में, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का नेतृत्व राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पास है.

यह जानकारी उत्तराखंड वक्फ बोर्ड ने एक सवाल के जवाब में आरटीआई कार्यकर्ता एडवोकेट नदीमुद्दीन को दी है. उन्होंने वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 98 के तहत उत्तराखंड वक्फ बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट के बारे में विवरण मांगा था, जिसे हर साल तैयार किया जाना चाहिए और राज्य विधानसभा के पटल पर रखा जाना चाहिए.

उक्त जानकारी सूचना आयुक्त अर्जुन सिंह के आदेश पर लोक सूचना पदाधिकारी सह रिकार्ड कीपर सोहन सिंह ने उपलब्ध करायी है. आवेदक एडवोकेट नदीमुद्दीन को दी गई जानकारी में कहा गया है कि राज्य वक्फ बोर्ड और वक्फ की संपत्तियों के बारे में अब तक कोई रिपोर्ट तैयार ही नहीं की गई है.

अधिवक्ता नदीमुद्दीन के अनुसार, वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 98 में कहा गया है कि एक वित्तीय वर्ष की समाप्ति के बाद, राज्य सरकार राज्य वक्फ बोर्ड के कामकाज और प्रशासन पर जल्द से जल्द एक सामान्य वार्षिक रिपोर्ट की व्यवस्था करेगी.

धारा कहती है कि रिपोर्ट को राज्य विधानमंडल के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाना चाहिए या जहां ऐसे विधानमंडल हैं जहां एक ही सदन होता है, तो उस सदन के समक्ष रिर्पोट को रखा जाना चाहिए. ऐसी प्रत्येक रिपोर्ट का प्रारूप और उसमें शामिल मामले अधिनियम के अनुसार होना चाहिए.

2114 पंजीकृत वक्फ संपदाएं हैं जिनमें 2091 सुन्नी वक्फ और 13 शिया वक्फ शामिल हैं. सुन्नी वक्फ संपत्तियों की आय से राज्य वक्फ बोर्ड को अंशदान की राशि मात्र 22 लाख 48 हजार 805 रुपये थी, जबकि शिया वक्फ इस्टेट से योगदान की राशि 13 हजार 790 रुपये थी.

अधिवक्ता नदीम का कहना है कि यह अजीब और चिंताजनक है कि 2003 में उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के बाद से राज्य वक्फ बोर्ड की कोई भी रिपोर्ट तैयार करके राज्य विधानसभा में पेश ही नहीं की गई है.

उनका कहना है कि अगर वक्फ संपत्तियों पर कोई रिपोर्ट तैयार होती तो उससे होने वाली आय को बढ़ाया जा सकता था और मुस्लिम समुदाय के कल्याण और सामाजिक भलाई के लिए खर्च किया जा सकता था. उनका कहना है कि इस रिपोर्ट से वक्फ ज़मीन पर अतिक्रमण रोकने में भी मदद मिल सकती थी.

इंडिया टुमारो से बात करते हुए वकील नदीम ने कहा कि वक्फ अधिनियम की धारा 98 का अनुपालन न करने पर जनहित याचिका दायर की जा सकती है.

कानूनी मामलों पर कई पुस्तकों लिखने वाले एडवोकेट नदीम कहते हैं “चूंकि वक्फ बोर्ड और वक्फ संपत्तियों पर कोई रिपोर्ट ही नहीं है, इसलिए वक्फ संपत्तियों के बारे में कोई ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है. वक्फ संपत्तियों की संख्या को देखते हुए वक्फ बोर्ड में उनकी योगदान की राशि काफी कम है.”

उनका कहना है कि विधानसभा में रिपोर्ट पेश होने पर लोगों को वक्फ संपत्तियों की स्थिति और वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली का पता चल जाएगा. यह आशंका है कि वर्तमान में बड़ी संख्या में वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण किया गया है, लेकिन इसका कोई डेटा उपलब्ध नहीं है. वार्षिक रिपोर्ट तैयार होने पर ऐसी वक्फ संपत्ति का आंकड़ा पता चल सकेगा.

अधिवक्ता नदीम का कहना है कि रिपोर्ट वक्फ संपत्तियों के कम उपयोग को भी उजागर कर सकती है.

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