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Tuesday, May 7, 2024
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दक्षिणपंथ का वैश्विक उभार लोकतांत्रिक मूल्यों और समावेशी संरचना के लिए ख़तरा

जातीय व नस्लीय भेदभाव का खुला समर्थन करने वाली दक्षिणपंथी विचारधारा व शक्तियों से निपटना लोकतान्त्रिक मूल्यों वाले देशों की बड़ी चुनौती

मसीहुज़्ज़मा अंसारी

नई दिल्ली | दुनिया एक बार फिर दक्षिणपंथी विचारधारा का अभ्युदय देख रही है। नैतिक पहलुओं से आज़ाद और मानवीय संवेदना से ख़ाली इस दक्षिणपंथी विचारधारा से दुनिया भर के उन लोकतांत्रिक देशों और उनकी समावेशी संरचना को बड़ा ख़तरा है जो विविधता को जीते हैं और किसी भी धर्म, नस्ल, जाति, भाषा और रंगभेद के बिना सहअस्तित्व की भावना को आत्मसात कर सभी के साथ मिलकर रहना चाहते हैं।

दक्षिणपंथी विचारधारा संगठन, समूह, पार्टी, पक्ष-विपक्ष या किसी देश में सरकार और सत्ता के रूप में अपना वर्चस्व बढ़ा रहे हैं और नस्लीय व जातीय भेदभाव को निरंतर हवा दे रहे हैं। दुनियाभर में दक्षिणपंथी विचारधारा एक ही पैटर्न पर काम कर रही है। फ्रांस में अल्जीरियाई मूल के मुस्लिम किशोर नाहल की पुलिस द्वारा गोली मारकर हत्या, भारत में मुस्लिम, दलित और आदिवासियों की लिंचिंग, अमेरिका में पुलिस द्वारा अश्वेत टैक्सी ड्राइवर की हत्या, डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में 6 माह पूर्व एक दक्षिणपंथी नेता द्वारा तुर्किये के दूतावास के बाहर क़ुरआन की प्रतियां जलाया जाना, ईदुल-अज़हा के दिन 28 जून 2023 को स्वीडन में सलवान मोमिका ने राजधानी स्टॉकहोम की एक मस्जिद के सामने क़ुरआन प्रति जलाने की घटना जिसे वहां की दक्षिणपंथी सरकार ने अनुमति दी थी।

दक्षिणपंथी विचारधारा और सरकार ने दुनियाभर में जातीय और नस्लीय भेदभाव को खुला समर्थन दिया है और दक्षिणपंथी ताकतों ने खुलेआम अपराधों में संलिप्त अपने लोगों को सराहा है और उनका समर्थन भी किया है। कई मामलों में उनकी अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय मदद भी की गई है।

दक्षिणपंथी विचारधारा को उग्र राष्ट्रवाद की कोरी कल्पना में अपनी निर्लज्जता को छिपाने का हुनर ख़ूब आता है. दक्षिणपंथ की निर्लज्जता की गाथा अंतहीन है जो मानव संवेदना, सहअस्तित्व की भावना और मानवीय मूल्यों से कोरी है जिसमें दूसरे विचार, दूसरी नस्ल, दूसरे धर्म, दूसरी भाषा और दूसरे संस्कार के लिए कोई स्थान नहीं है. भारत सहित दुनियाभर के दक्षिणपंथ में यह समानता पाई जाती है.

फ्रांस में अल्जीरियाई मूल के मुस्लिम किशोर नाहेल की पुलिस द्वारा गोली मारकर हत्या करने वाले पुलिस के समर्थन में लोगों ने चंदा जमा किया जो मारे गए व्यक्ति को मिले मुआवज़े से अधिक था। भारत में मुसलमानों, दलितों और आदिवासियों की लिंचिंग करने वालों के समर्थन में दक्षिणपंथी संगठनों ने रैली निकाली और एक रेप के आरोपी के समर्थन में तिरंगा यात्रा भी निकाली गई। शहीद इंस्पेक्टर सुबोध के हत्यारे को दक्षिणपंथी संगठनों ने माला पहनाकर स्वागत किया।

इसी प्रकार मध्यप्रदेश के सीधी में एक आदिवासी युवक पर पेशाब करने वाले ब्राह्मण व्यक्ति के समर्थन में अखिल भारतीय ब्राहण समाज ने आरोपी के परिवार को 51 हज़ार रुपये की मदद पहुंचाई। स्वीडन और डेनमार्क में क़ुरआन जलाने वालों पर कार्रवाई करने के बजाय दक्षिणपंथी सरकारों ने उन्हें सुरक्षा प्रदान की। देश और दुनियाभर में बढ़ता दक्षिणपंथी रुझान दुनिया के लोकतांत्रिक देशों के लिए एक बड़ा ख़तरा है। दुनियाभर में बढ़ते दक्षिण पंथी रुझान को कुछ घटनाओं और उदाहरण से समझा जा सकता है।

फ्रांस

फ्रांस में 17 साल के मुस्लिम किशोर नाहेल की ट्रैफिक जांच के दौरान पुलिस द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई। आरोप था कि नाहेल चेकिंग के लिए नहीं रुका, उसने अपनी मर्सिडीज़ आगे बढ़ा दी जिस पर पुलिसकर्मियों ने पॉइंट-ब्लैंक पर उसे गोली मार दी और नाहेल की मौत हो गई। वह अपनी मां का इकलौता बेटा था और टेकअवे डिलीवरी करता था। अल्जीरियाई मूल के नाहेल का कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड नहीं था। इस घटना से फ्रांस में भारी प्रदर्शन हुए। अल्जीरियाई मूल के किशोर की मौत पर विरोध प्रदर्शन ने आधुनिक फ्रांस में गंभीर नस्लीय तनाव को फिर से उजागर कर दिया है। वहां लंबे समय से अल्पसंख्यकों को अलग थलग करने का आरोप लगाया जाता रहा है।

अलजज़ीरा की रिपोर्ट के मुताबिक किशोर की हत्या करने वाले पुलिसकर्मी के लिए फंड जुटाया जा रहा है। फ्रांस के धुर-दक्षिणपंथी नेत्री मरीन ली पेन के पूर्व सलाहकार जीन मेसिहा इसके लिए अभियान चला रहे हैं। जीन मेसिहा द्वारा स्थापित, GoFundMe पर चंदा इकठ्ठा किया जा रहा। एक हफ्ते पहले तक नाहेल पर गोली चलाने वाले पुलिसकर्मी के लिए 963,000 यूरो (लगभग 80 लाख रुपए) जमा हो चुके थे।

मारे गए किशोर नाहेल की दादी, नादिया से हाल ही में क्राउडफंडिंग अभियान के बारे में पूछे जाने पर कहा कि एक हत्यारे के लिए फंड रेजिंग जैसी बातें सुनकर वह बेहद दुखी हैं।

डेनमार्क

डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में 6 माह पूर्व एक दक्षिणपंथी नेता ने तुर्किये के दूतावास के बाहर और एक मस्जिद के पास क़ुरआन की प्रतियां जलाईं। आरोपी व्यक्ति का नाम रासमस पलुदान है और वह इस्लाम विरोधी बयानों के लिए जाना जाता है। इससे पहले वह 21 जनवरी को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में भी तुर्किये के दूतावास के सामने पवित्र पुस्तक जला चुका है।

भारत

हाल ही में मध्यप्रदेश के सीधी ज़िले का एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ था। इसमें बीजेपी कार्यकर्ता एक आदिवासी समाज के व्यक्ति पर पेशाब करता दिख रहा। वीडियो वायरल होने के बाद मध्य प्रदेश के मुख्य्मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस घटना पर दुःख व्यक्त किया।

उन्होंने ट्वीट कर पुलिस को आरोपी प्रवेश शुक्ला के खिलाफ (NSA) के तहत कार्रवाई का आदेश दिया। जिसके बाद सीधी प्रशासन ने प्रवेश शुक्ला को गिरफ्तार कर लिया। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने पीड़ित आदिवासी से मुलाकात कर उसके पैर धोकर सम्मानित किया। इस मामले में प्रशासन ने आरोपी प्रवेश शुक्ला के घर के कुछ हिस्से को बुलडोजर से गिरा दिया।

अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज के नेताओं ने आरोपी प्रवेश शुक्ला के घर जाकर आश्वासन दिया कि उनका घर फिर से बनाया जाएगा। अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष पंडित पुष्पेंद्र मिश्रा ने कहा कि आरोपी प्रवेश शुक्ला ने घर गिराए जाने का विरोध किया, साथ ही अखिल भारतीय ब्राहण समाज के सीधी के जिलाध्यक्ष राकेश दुबे ने आरोपी शुक्ला के परिवार को 51 हज़ार रुपये की मदद भी पहुंचाई।

इटली

इटली में राइट विंग की नेता जियॉर्जिया मेलोनी इटली की पहली महिला प्रधानमंत्री हैं जिन्हें मुसोलिनी का समर्थक माना जाता है। इटली में दक्षिणपंथी ब्रदर्स ऑफ इटली पार्टी की नई सरकार सत्ता में है। 45 साल की जियॉर्जिया की चार साल पहले मात्र 4:13% वोट पाने वाली पार्टी को 26% वोट मिले।

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद इटली में ये पहली बार है जब राइट विंग का कोई नेता प्रधानमंत्री के पद पर है। जॉर्जिया की पार्टी इटली के तानाशाह रहे मुसोलिनी की समर्थक हैं। अप्रवासियों को शरण नहीं देना जॉर्जिया का चुनावी एजेंडे का हिस्सा था। वह यूरोपीय संघ पर इटली की एथनिसिटी (नस्ल) बदलने का भी आरोप लगा चुकी हैं।

मेलोनी ने डोनाल्ड ट्रम्प की कंजरवेटिव पार्टी की तर्ज पर कहा था कि माइग्रेंट्स, खासकर मुस्लिम माइग्रेंट्स खतरा साबित होते हैं। जियोर्जिया मेलोनी और उनकी पार्टी का स्टैंड और उनके चुनावी वादे अति दक्षिणपंथी हैं। जियोर्जिया मेलोनी ने इटली में बाहर से आने वाले प्रवासियों-शरणार्थियों को रोकने की कसम खाई है।

स्वीडन

स्वीडन में 59 वर्षीय नेता उल्फ क्रिस्टर्सन प्रधानमंत्री हैं। उल्फ क्रिस्टर्सन चार दलों के दक्षिणपंथी गुट के नेता हैं। वह एक दक्षिणपंथी विचारधारा के नेता हैं। हंगरी, पोलैंड और इटली के बाद स्वीडन ऐसा चौथा यूरोपीय देश है जहां दक्षिणपंथी पार्टी की सरकार बनी है।

स्वीडन में दक्षिणपंथी सरकार बनने से देश में राजनीती गर्म है। दक्षिपंथी पार्टी मुस्लिम विरोधी मानी जाती हैं और उनका लक्ष्य गैर-यूरोपीय देशों से अप्रवासन को रोकना है। बीते चुनाव में यह मुद्दा पार्टी की राजनीति का एक केंद्रीय मुद्दा था। स्वीडन में क़ुरआन जलाने का मामला सामने आया था जिसका दुनियाभर में विरोध हुआ था।

फ़्रांस में दक्षिणपंथी उभार

फ्रांस के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना ​​है कि हाल के चुनाव में फ्रांस में दक्षिणपंथ का शानदार प्रदर्शन आने वाले वर्षों में वहां के लिए बड़े सिरदर्द का कारण बनेगा।

इमैनुएल मैक्रों को पिछले चुनाव में जहां 58.55% वोट मिले, वहीं दक्षिणपंथी नेता Marine Le Pen ने भी 41.45% वोट अपने पाले में किए थे। Marine Le Pen का प्रदर्शन खास इसलिए भी था क्योंकि इमैनुएल मैक्रों की इस जीत का अंतर 2017 की तुलना में बहुत कम था, क्योंकि तब इमैनुएल मैक्रों ने 66.1 प्रतिशत वोट अपने नाम किये थे जबकि Marine Le Pen को 33.9 प्रतिशत हिस्सा मिला था।

फ्रांस में मुस्लिम विरोधी भावना को साफ तौर पर देखा जा सकता है जहाँ इस्लाम और मुसलमानों को लेकर दक्षिणपंथी नेताओं द्वारा भ्रामक बयान दिए जाते हैं.

हंगरी

हंगरी के प्रधान मंत्री के रूप में विक्टर ओर्बन ने देश के आम चुनावों में 2022 लगातार चौथी बार जीत हासिल की है. वह दक्षिणपंथी विचारधारा के नेता हैं और उनकी दक्षिणपंथी फ़ाइड्ज़ पार्टी ने चुनाव में कुल 53.1% हासिल किया।    

वह अपने दक्षिणपंथी बयानों को लेकर चर्चा में रहते हैं. प्रवासियों के मुद्दे पर उन्होंने सरकारी टेलीविज़न से कहा था, “हमें आर्थिक आप्रवासन को ऐसे नहीं देखना चाहिए जैसे कि इसका कोई उपयोग है, क्योंकि यह केवल यूरोपीय लोगों के लिए परेशानी और ख़तरा लाता है। इसलिए, प्रवासियों को रोका जाना चाहिए।”

उन्होंने कहा था, “हम अपने बीच अल्पसंख्यक नहीं देखना चाहते जिसकी सांस्कृतिक विशेषताएँ और पृष्ठभूमि अलग-अलग हों। हम हंगरी को हंगरी ही बनाये रखना चाहेंगे.”

जर्मनी में मज़बूत होती दक्षिणपंथी पार्टी

पूर्वी जर्मनी में धुर दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर डॉयचलैंड (एएफडी) की  दो स्थानीय चुनावों में जीत के बाद नेताओं और मीडिया के बीच इस बात की चर्चा हो रही है कि आखिर धुर-दक्षिणपंथी विचारधारा आम जनमानस में कैसे जगह बना रही है।  रिपोर्ट के अनुसार, जर्मनी की सारी पार्टियां मिल कर भी एएफडी को नहीं रोक सकीं।

DW न्यूज़ के अनुसार, टुटजिंग एकेडमी फॉर पॉलिटिकल एजुकेशन की निदेशक उर्जुला मुंश का कहना है सरकार की राजनीति लोगों को बेचैन कर रही है। लाइपजिष विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, बहुत से जर्मन वोटर, खासकर जर्मनी के पूर्वी हिस्से में लोग नस्लवादी विचारधारा रखते हैं। 29 जून को छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एएफडी का समर्थन जर्मनी के मध्यम-वर्गीय परिवारों में बढ़ता जा रहा है। जीनुस इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रीसर्च के इस शोध में ये पाया गया है कि एएफडी के मध्यम-वर्गीय वोटरों की संख्या दो साल के भीतर 43 फीसदी से 56 फीसदी हो गई है और ये बढ़ती जा रही है।

क्या कहते हैं बुद्धजीवी?

दुनियाभर में बढ़ते दक्षिणपंथी रुझान पर बुद्धजीवियों ने चिंता जताई है और इसे लोकतांत्रिक संरचना के लिए ख़तरा बताया है।

Université Libre de Bruxelles के एसोसिएट प्रोफेसर Pietro Castelli Gattinara ने वॉक्स से बात करते हुए कहा कि दक्षिणपंथ का उदय लोकतंत्र के भीतर एक वैश्विक घटना है, न कि केवल यूरोप में ऐसा हो रहा है।

उन्होंने कहा कि “यूरोप में निश्चित रूप से दिख रहा है, लेकिन यह उससे अलग नहीं है जो हम अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी, भारत में पीएम मोदी और ब्राजील में बोल्सोनारो के रूप में देखने को मिल रहा है। यह बस कुछ उदाहरण है।”

भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में दक्षिणपंथी पार्टी का वर्चस्व लोकतंत्र के लिए खतरा माना जा रहा है जहां देश की विभिन्नता पर कुठाराघात करते हुऐ समान नागरिक संहिता जैसा क़ानून लाया जा रहा।

देश के अल्पसंख्यको को लेकर पार्टी के नज़रिए का देश और दुनियाभर में विरोध हो रहा है। भारत में ख़ासकर दलित मुस्लिम और आदिवासियों पर दक्षिणपंथी पार्टी के सत्ता में आने के बाद अत्याचार और हमले बढ़े हैं।

राष्ट्रवाद की आड़ में दक्षिणपंथी विचाराधारा भारत की एकता अखंडता और यहां के समावेशी समाज और संरचना को नुकसान पहुंचा रही है। दुनिया भर में जिस प्रकार दक्षिणपंथी विचाराधारा वहां के समाज के लिए खतरा बनी हुई है उसी प्रकार भारत के लिए भी चिंताजनक स्थिति है।

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