इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | कई राज्यों के पुलिस प्रमुखों ने प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सामने झिझकते हुए इस्लामी समूहों के अलावा हिंदुत्ववादी संगठनों के बढ़ते कट्टरपंथी रुझान को लेकर रिपोर्ट पेश की है.
राज्य पुलिस प्रमुखों का एक तीन दिवसीय सम्मेलन 20 जनवरी से आयोजित किया गया था. इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अलावा कई डीजीपी और आईजीपी शामिल हुए थे.
सूत्रों के अनुसार पुलिस प्रमुखों ने इस मीटिंग में इस्लामिस्ट और हिंदुत्वा संगठनों के बढ़ते कट्टरपंथ की ओर ध्यान दिलाया. अधिकारियों ने इस संबंध में पेपर्स भी सबमिट किए थे जिन्हें वेबसाइट पर पोस्ट किया गया था लेकिन बाद में उन्हें हटा लिया गया.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार वेबसाइट पर अपलोड किए गए पेपर्स में से एक में वीएचपी और बजरंग दल जैसे संगठनों को कट्टरपंथी बताया गया था, जबकि दूसरे पेपर में बाबरी मस्जिद विध्वंस, हिंदू राष्ट्रवाद का विकास, बीफ लिंचिंग के मामले और “घर वापसी आंदोलन” को युवाओं के कट्टरपंथीकरण की मुख्य बुनियाद बताया.
कई अधिकारियों ने बहुसंख्यको में बढ़ते कट्टरपंथ को रोकने के लिए राजनीति में अल्पसंख्यकों के अधिक प्रतिनिधित्व और मुसलमानों के लिए आरक्षण को एक उपाय के तौर पर बताया.
एक अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में यहां तक कहा कि घोर-दक्षिणपंथी समूह देश को बहुसंख्यकवाद की ओर धकेल रहे हैं. इनमें आनंद मार्ग, वीएचपी, बजरंग दल, हिंदू सेना आदि शामिल हैं. यहां तक कि इस्लामी कट्टरवाद को भी एक “मंडराते खतरे” के एक मुद्दे के रूप में उठाया गया था.
रिपोर्ट में “इस्लामी दृष्टिकोण” का वर्णन किया गया है जो दुनिया को “मुस्लिम” और “अन्य” में विभाजित करता है. इन इस्लामिक कट्टरपंथी समूहों में पीएफआई और उसके फ्रंटल, दावत-ए-इस्लामी, तौहीद, केरल नदवातुल मुजाहिदीन आदि शामिल थे.
एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ब्रिटेन में सनसनीखेज़ रिपोर्टिंग और षड्यंत्रकारी वेबसाइटों के कारण इस्लामोफोबिया फैल गया है. एक अधिकारी ने सिफारिश की कि लोगों को अपनी शिकायतों को दूर करने के लिए एक मंच होना चाहिए.
रिपोर्ट में प्रकशित खबर के मुख्य बिंदु यह थे “अलगाव और अविश्वास के साथ कट्टरता से जुड़ी एक अन्य रिपोर्ट … सोशल मीडिया का आगमन, वैश्विक इस्लाम की भूमिका, मुख्यधारा के मीडिया की भूमिका, हिंदू अतिवाद और नागरिक समाज के कार्यकर्ता.”
एक अन्य अधिकारी ने इस्लामिस्ट और हिंदू कट्टरपंथी संगठनों की तुलना आईएसआईएस जैसे संगठनों से की. एक अन्य पेपर में बीजेपी की नूपुर शर्मा द्वारा पैगंबर मोहम्मद पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने की घटना का हवाला दिया गया और कहा गया कि “सभी को धार्मिक टिप्पणियों और अभद्र भाषा से बचना चाहिए”.
पेपर्स में आगे उल्लेख था कि, “उदयपुर में कन्हैया लाल हत्याकांड के आरोपियों के कट्टरपंथी बनने में देश और विदेश से आए भड़काऊ वीडियो और संदेशों ने प्रमुख भूमिका निभाई है. रिपोर्ट में लोगों के बीच ‘कानून के शासन’ की एक मज़बूत भावना पैदा करने पर भी प्रकाश डाला गया और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली घटनाओं को रोकने की वकालत की गई.
इन्ही सब के समाधान की सिफारिश भी की गई थी जिसके अंतर्गत सुझाव दिया गया था कि अल्पसंख्यकों के लिए समान अवसर होने चाहिए और उन्हें सक्रिय रूप से राजनीतिक और प्रशासनिक प्रक्रियाओं का हिस्सा बनाया जाना चाहिए, साथ ही मदरसों का आधुनिकीकरण और अल्पसंख्यक क्षेत्रों में रोजगार के अवसर की भी सिफ़ारिश की गई. मुस्लिम युवाओं की सामुदायिक भागीदारी और उनके लिए शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण का भी सुझाव दिया गया.
पुलिस प्रमुखों द्वारा इस तरह के प्रासंगिक मुद्दों को उठाए जाने और रियल टाइम लेजिस्लेटिव और राजनीतिक समाधान पेश किए जाने के बावजूद, इन रिपोर्टों को वेबसाइटों से हटा दिया गया और सार्वजनिक पहुंच से दूर कर दिया गया. इस तरह के कदम उठाए जाने के पीछे के कारण संदिग्ध है और बड़े पैमाने पर जनता के हित के खिलाफ है, जिन्हें कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए ज़िम्मेदार पुलिस प्रमुखों की राय और दृष्टिकोण जानने का पूरा अधिकार है. ख़ासतौर से कानून संगत व्यवहार और समाजिक सद्भाव बनाए रखने के लिए वे अपने अधिकार क्षेत्र में जिन बातों को प्रमुख मुद्दे के रूप में देखते हैं वो बहुत अहम हैं.
बैठक में अभद्र भाषा, भड़काऊ भाषण, हथियारों का वितरण, गौ रक्षा के नाम पर लिंचिंग, जबरन धर्मांतरण का आरोप लगाते हुए अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न, अल्पसंख्यक धर्मों का अपमान करना, बहुसंख्यक धर्म का आधिपत्य स्थापित करना और “लव जिहाद” का आरोप लगाते हुए अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं पर भी प्रकाश डाला गया.
कुछ अधिकारियों ने कहा कि इस तरह की घटनाओं में पिछले कुछ वर्षों में देश में तेज़ी वृद्धि देखी गई है, जिससे लगता है कि कट्टरपंथी समूहों को पुलिस बलों से थोड़ी सी फटकार के साथ अराजकता फैलाने की खुली छूट मिल गई है.
इन मुद्दों की ओर इशारा करते हुए, अधिकारियों ने कहा, पुलिस प्रमुखों को अपने अधिकार क्षेत्र में आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और यह पता लगाना चाहिए कि ऐसी कितनी घटनाओं को स्थानीय पुलिस ने सख्ती से निपटाया है.
मध्य प्रदेश के इंदौर में एक घर में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं द्वारा जबरन घुसे जाने की एक घटना का हवाला भी अधिकारियों ने दिय. इंदौर में एक घर में जन्मदिन की पार्टी चल रही थी उस पार्टी में हिंदू लड़की के मुस्लिम दोस्तों को हिरासत में लिया गया. बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने लड़की को जबरन धर्म परिवर्तन की शिकायत दर्ज कराने के लिए भी मजबूर किया. जब उसने इनकार किया, तो वे मुस्लिम लड़कों को थाने ले गए, जहां पुलिस ने मुस्लिम लड़कों को एहतियातन हिरासत में रखा और बजरंग दल के लोगों को छोड़ दिया.
यहां तक कि कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान में भी, दक्षिणपंथी संगठन ‘त्रिशूल दीक्षा’ या खुले आम त्रिशूल वितरण समारोह आयोजित करते हैं और खुले तौर पर अपनी विचारधारा का प्रचार करना भी जारी रखते हैं. यह युवाओं को हथियारबंद करने और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा करने के लिए कट्टरपंथी विचारों के साथ उनका ब्रेनवॉश करने जैसा है. यह खुलेआम प्रचारित किया जाता है और ऐसे मामलों में स्थानीय पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जाती है.
यह जानकर राहत मिली है कि राज्य के पुलिस प्रमुख इन्हें कानून और व्यवस्था के प्रमुख मुद्दों के रूप में देखते हैं. समस्या की पहचान किसी समस्या को हल करने की दिशा में पहला कदम होता है. यह देखना बाकी है कि वे इस तरह की घटनाओं को रोकने और इस्लामवादी और हिंदू चरमपंथी संगठनों के बीच कट्टरता को रोकने के लिए अपनी विशाल शक्तियों के साथ क्या कदम उठाते हैं.