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Wednesday, May 8, 2024
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84 के सिख विरोधी दंगे की 38वीं बरसी पर विभिन्न संगठनों का दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | दिल्ली में मंगलवार को लोक राज संगठन सहित कई अन्य संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से 1984 के सिखों के कत्लेआम की 38वीं बरसी पर 1 नवम्बर को जंतर-मंतर पर विरोध सभा आयोजित की गई। इस कार्यक्रम सभा में मुख्य बैनर पर लिखा था – “राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और आतंक के खिलाफ संघर्ष जारी है.”

सभा में हिस्सा लेने वालों ने अपने हाथों में बैनर और प्लेकार्ड लेकर रखे थे, जिन पर लिखा था – राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंकवाद मुर्दाबाद!, 1984 में सिखों के जनसंहार को आयोजित करने वालों को सजा दो!, 1984, 1992, 2002 और अनेक दूसरे जनसंहारों को आयोजित करने वालों को सजा दो!, एक पर हमला सब पर हमला.

लोक राज संगठन ने यह विरोध सभा संयुक्त रूप से आयोजित की। अन्य संयोजक संगठन थे – हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, जमात-ए-इस्लामी हिन्द, सिटिजंस फार डेमोक्रेसी, वेलफेयर पार्टी आफ इंडिया, द सिख फोरम, पुरोगामी महिला संगठन, लोकपक्ष, जन संघर्ष समन्वय समिति, आल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत, सी.पी.आई. (एम.एल.) न्यू प्रोलेतेरियन, हिन्द नौजवान एकता सभा, और मजदूर एकता कमेटी।

सभा का संचालन लोक राज संगठन की ओर से सुचरिता ने किया। उन्होंने सभा में आये सभी लोगों का स्वागत किया। आज से 38 साल पहले, 1 नवंबर, 1984 को इसी दिल्ली शहर में हुए सिखों के भीषण जनसंहार के बारे में उन्होंने कहा कि उस समय केंद्र सरकार में बैठी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेताओं ने उन हमलों की अगुवाई की थी।

उन्होंने कहा, हर जगह पर लोगों ने अपने सिख पड़ोसियों की रक्षा करने की पूरी कोशिश की थी। पुलिस सहित पूरे राज्य तंत्र ने उस जनसंहार को अंजाम देने के लिए सक्रिय रूप से काम किया था। पर आज तक, सरकार में आई किसी भी राजनीतिक पार्टी ने कत्लेआम को आयोजित करने वालों और अंजाम देने वालों को सजा नहीं दी है। इसलिए, राजकीय आतंकवाद और साम्प्रदायिक हिंसा के खि़लाफ़ हमारा संघर्ष जारी है।

उन्होंने उपस्थित संगठनों के वक्ताओं को अपनी बातों को रखने को आमंत्रित किया । लोक राज संगठन के अध्यक्ष एस राघवन ने कहा कि पिछले 38 सालों के दौरान, राजकीय आतंकवाद को सुनियोजित तरीके से बढाया जाता रहा है और राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा के कांड बार-बार होते रहे हैं। जो लोग सांप्रदायिक जनसंहार आयोजित करते हैं और हमारे लोगों की एकता पर हमला करते हैं, उन्हें कोई सज़ा नहीं दी जाती है, बल्कि उन्हें राज्य में सर्वोच्च पदों पर बिठाया जाता है। दूसरी ओर, अपने अधिकारों के लिए लड़ने वाले लोगों को ”आतंकवादी“ और ”राष्ट्र-विरोधी तत्व“ करार दिया जाता है।

भाजपा और कांग्रेस पार्टी जैसी राजनीतिक पार्टियां राष्ट्रीय एकता की रक्षा करने की बात करती हैं, जबकि वे हुक्मरानों के हितों को पूरा करने के लिए, लोगों को बांटने के लिए लगातार काम करती हैं। वे नियमित और सुनियोजित रूप से धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र के आधार पर लोगों की भावनाओं को भड़काती हैं, ताकि मज़दूरों और किसानों की एकता को तोड़ा जा सके। इसलिए ऐसा सोचना ग़लत होगा कि सांप्रदायिक हिंसा का स्रोत सिर्फ एक पार्टी, भाजपा, ही है, कि सरकार चलाने वाली पार्टी को बदल देने से यह समस्या खत्म हो जायेगी।

उन्होंने कहा, साम्प्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंकवाद के खि़लाफ़ अपने संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए, हमें सब के अधिकारों की हिफ़ाज़त के लिए, सभी शोषित और उत्पीड़ित लोगों तथा सभी प्रगतिशील और लोकतांत्रिक ताक़तों की राजनीतिक एकता को बनाना और मजबूत करना होगा। ‘एक पर हमला सब पर हमला’, इस असूल को बनाए रखना और लागू करना आवश्यक है, उन्होंने कहा।

जमात ए इस्लामी हिन्द से सचिव इनामुर्रहमान ने सभा हर साल इस अवसर पर कार्यक्रम करने के लिए लोक राज संगठन को बधाई दी। उन्होंने कहा कि इस अपराध को भुलाया नहीं जा सकता है और इसपर हर साल सभा करके हम संदेश देते हैं कि हम इन अपराधों को भुला नहीं सकते हैं.

इनामुर्रहमान ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि, “हमने यहां पर नारा दिया है कि एक पर हमला, सब पर हमला! हम सभी पीड़ितों के लिए आवाज़ उठाने के लिए खड़े हैं. कोई भी दंगा हो हम उसके पीड़ितों के लिए न्याय और आरोपियों को सज़ा दिलाने के लिए संघर्षरत हैं चाहे वो सिख विरोधी दंगा हो, गुजरात दंगा हो, पोस्ट बाबरी फसाद हो, या मुज़फ्फ़रनगर दंगा हो. किसी भी शहरी के खिलाफ दंगा हुआ हो, हम ये मानते हैं कि वह दंगा हम सबके खिलाफ है और इंसाफ के लिए हम मिल कर लड़ते हैं.

इनामुर्रहमान ने कहा कि, “आप को लगता होगा कि हमारी आवाज़ कमज़ोर है, हमें कोई नहीं सुनेगा, हो सकता है हमारी बात को गलत तरीके से दिखाया जाये, मीडिया हमारी आवाज़ और मुद्दों को कवर नहीं करेगा मगर हमें अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए लगातार बोलते रहना होगा. बोलना हमारा अधिकार है इसलिए हम अपनी बात बोलते रहेंगे इस आशा के साथ के एक दिन हमारी आवाज़ सुनी जाएगी और हमें न्याय मिलेगा. बदलाव बोलने से ही आएगा.”

द सिख फोरम की ओर से बोलते हुए लल्ली सिंह साहनी ने बताया कि, सिख फोरम का गठन 1984 के नरसंहार से ही हुआ था। उन्होंने कहा कि हम गुनहगारों को माफ़ भी कर दें पर अभी तक यही स्थापित नहीं किया गया है कि गुनहगार हैं कौन।

कम्युनिस्ट गदर पार्टी की ओर से बिरजू नायक ने 1984 की घटनाओं पर प्रकाश डाला और कहा कि जब गृह मंत्री अनेक लोगों द्वारा कत्लेआम के बारे में आगाह करने पर भी हरकत में नहीं आता तो इसका मतलब साफ है कि यह कोई दंगा नहीं था बल्कि राज्य द्वारा आयोजित नरसंहार था। उन्होंने आगे बताया कि 1984 का जनसंहार कोई अचानक नहीं था।

उन्होंने कहा, क्योंकि वे भाजपा के साथ कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक स्पर्धा में, लोगों को कांग्रेस पार्टी के साथ खड़े होने के लिए आह्वान करना चाहते हैं। वे यह बता रहे हैं कि सांप्रदायिकता और सांप्रदायिक हिंसा का स्रोत एक विशेष राजनीतिक पार्टी, यानि भाजपा है, न कि संपूर्ण हुक्मरान वर्ग। यह एक ऐसा विचार है जो सांप्रदायिकता और सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ संघर्ष को गुमराह कर देगा। राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक को हमेशा के लिए तभी समाप्त किया जा सकता है, जब सरमायदारों की हुकूमत को मजदूरों और किसानों की हुकूमत में बदल दिया जाएगा।

वेलफेयर पार्टी आफ इंडिया के मोहम्मद आरिफ ने सभा में बोलते हुए कहा कि, 38 साल पहले हुए सिखों का जनसंहार कोई स्वतःस्फूर्त दंगे नहीं थे क्योंकि हिंदुस्तान में कोई भी दंगा कुछ घंटों से ज्यादा चल ही नहीं सकता है अगर राज्य उसे जारी नहीं रखना चाहता है। 1984 का नरसंहार सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी और पूरे राज्य तंत्र द्वारा आयोजित किये गए थे।

सी.पी.आई. (एम.एल.) न्यू प्रोलेतेरियन की ओर से शियोमंगल सिद्धांतकर ने सांप्रदायिक हिंसा की समस्या को ख़त्म करने के लिए मजदूरों के राज को स्थापित करने की बात की।

अधिवक्ता शाहिद अली ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने इसीलिये बलिदान नहीं दिये थे कि ऐसी मक्कार पार्टियां हम पर राज करें। इंसान की प्रवृत्ति इंसानियत है पर जिन लोगों ने 1984 के नरसंहार किया था वे इंसान नहीं बल्कि शैतान थे। इंसान को हमेशा ही शैतानों से लड़ना पड़ता है। उन्होंने बताया कि कांग्रेस पार्टी को भाजपा की तुलना में बेहतर नहीं कहा जा सकता है। अगर वे वाकई बेहतर होते थे तो उन्होंने 1984 के गुनहगारों को सज़ा दी होती थी।

मजदूर एकता कमेटी के वक्ता, संतोष कुमार ने कहा कि राजकीय आतंकवाद और साम्प्रदायिक हिंसा का निशाना हमारे देश का मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनता है। उसका उद्देश्य हमारी एकता को तोड़ना और अधिकारों के लिए हमारे संघर्ष को कुचलना है। साम्प्रदायिकता और साम्प्रदायिक हिंसा और सभी प्रकार के राजकीय आतंकवाद का स्रोत इजारेदार पूंजीवादी घरानों की अगुवाई में पूंजीपति वर्ग की हुकूमत में है। इसलिए सांप्रदायिकता और सांप्रदायिक हिंसा को समाप्त करने का संघर्ष केवल सरकार संभालने वाली राजनीतिक पार्टी को बदलने से विजयी नहीं होगा।

पुरोगामी महिला संगठन की ओर से पूनम शर्मा ने कहा कि हमें बताया जाता है कि इतनी पुरानी घटना को हमें भूल जाना चाहिये। पर हम इसे कैसे भूल सकते हैं जब कत्लेआम बार बार किये जाते हों। उन्होंने संघर्ष को मिलकर आगे बढ़ने का आह्वान किया और कहा कि हमें एक ऐसे राज्य की स्थापना करनी होगी, जो सभी नागरिकों को जीने का अधिकार और अन्य सभी मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक अधिकारों की गारंटी देगा । ऐसा राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि किसी के साथ धर्म, जाति आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा।

सभा को संबोधित करने वालों में अन्य वक्ताओं में इंकलाबी मज़दूर केन्द्र से मुन्ना प्रसाद ने बताया कि आजादी के समय से ही हिन्दुतानी राज्य के हाथ खून से सने हैं क्योंकि यह राज्य इजारेदार पूंजीपतियों के हित में काम करता है। वह लोगों के हित के खि़लाफ़ निजीकरण का कार्यक्रम लाद रहा है और मज़दूर विरोधी श्रम कानून ला रहा है। अपने जन विरोधी एजेंडे को छिपाने के लिये वह सांप्रदायिक हिंसा की वारदातें आयोजित करता है।

अंत में वेलफेयर पार्टी आफ इंडिया के सिराज तालिब ने सत्ता के ज़ुल्म को दर्शाते हुए कुछ शेर पढ़े और लोक राज संगठन को नाइंसाफी के मुद्दे पर साल दर साल जन सभाएं आयोजित करने के लिए धन्यवाद दिया।

सभा का समापन सुचरिता ने किया और कहा कि ऐसे अपराध के खि़लाफ़ संघर्ष जारी रहेगा और हम मिलकर सभी के अधिकारों की रक्षा के लिये संघर्ष करते रहेंगे.

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