इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) ने कहा है कि सरकार को राम मंदिर उद्घाटन का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए, न ही मंदिर के कार्यक्रम के माध्यम से समाज के ध्रुवीकरण की अनुमति देनी चाहिए.
इस साल अप्रैल-मई में आगामी संसदीय चुनावों से कुछ महीने पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उद्घाटन 22 जनवरी, 2024 को निर्धारित किया गया है.
जेआईएच के उपाध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने जेआईएच मुख्यालय में मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की. उन्होंने विभिन्न मौजूदा मुद्दों पर भी बात की, जिनमें भारत के एक उदार लोकतंत्र की ओर अग्रसर होने के राह में आने वाली बाधाओं को लेकर चिंता जताई, दूरसंचार विधेयक 2023 के निहितार्थ और गाज़ा में 22,000 से अधिक लोगों की मौत का मुद्दा मौत शामिल रहा.
प्रोफेसर सलीम ने मंदिर के उद्घाटन समारोह को “भाजपा का चुनाव कार्यक्रम” और प्रधान मंत्री के लिए एक राजनीतिक रैली के रूप में संदर्भित किए जाने की निंदा की.
यह कहते हुए कि 2019 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर नहीं बनाई गई थी, और 1949 में मूर्ति स्थापना और 1992 में मस्जिद विध्वंस दोनों अवैध थे; प्रोफेसर सलीम ने राम मंदिर उद्घाटन कार्यक्रम के राजनीतिकरण पर कड़ी आशंका व्यक्त की.
इसे चुनावी लाभ प्राप्त करने का साधन बताते हुए और राजनीतिक प्रचार के लिए एक उपकरण के रूप में इसके उपयोग की आलोचना करते हुए, सलीम ने कहा, “मंदिर उद्घाटन कार्यक्रम इस बात का एक ज्वलंत उदाहरण बन रहा है कि कैसे कुछ राजनेताओं द्वारा धर्म का दुरुपयोग किया जा सकता है.”
उन्होंने मुसलमानों और आम जनता दोनों से आशा न खोने की अपील करते हुए उनसे निराशा या किसी भी चाल का शिकार न बनने का आग्रह किया. उन्होंने शांति, भाईचारे और सांप्रदायिक सद्भाव के माहौल को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करने को कहा.
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि देश को चलाने के लिए हम सभी को मिलकर काम करना चाहिए, क्योंकि यह देश सभी धार्मिक समूहों का है. उन्होंने आगे कहा कि सरकार को किसी विशेष धर्म का पक्ष नहीं लेना चाहिए, क्योंकि हमारा संविधान भी इस तरह के भेदभाव पर रोक लगाता है.
प्रोफेसर सलीम ने मंदिर उद्घाटन समारोह में राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों को आमंत्रित करने के लिए मंदिर के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की आलोचना की. उनके अनुसार, स्थिति अलग हो सकती थी यदि यह कार्यक्रम केवल मंदिर ट्रस्ट द्वारा आयोजित किया गया होता, जिसमें राजनेताओं, नौकरशाहों और निर्वाचित प्रतिनिधियों से भाग लेने से परहेज करने का आग्रह किया गया होता.
उन्होंने सुझाव दिया कि विवाद से बचने के लिए उद्घाटन को बिना किसी राजनीतिक भाषण, पोस्टर या नारे के एक “धार्मिक समारोह” तक ही सीमित रखा जाना चाहिए था.
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव द्वारा राम मंदिर के आगामी उद्घाटन की तुलना स्वतंत्रता दिवस से करने पर कड़ी आपत्ति जताते हुए प्रोफेसर सलीम ने ऐसी तुलनाओं को गलत और असंवैधानिक बताया और कहा कि इस से धार्मिक आधार पर देश का ध्रुवीकरण होता.
जेआईएच नेता ने सत्तारूढ़ सरकार से अपने पद की गरिमा को बरकरार रखने का आह्वान किया, और “भय या पक्षपात, स्नेह या द्वेष के बिना कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करने और देश के संविधान और कानूनों को बनाए रखने” की प्रतिज्ञा पर ज़ोर दिया.
जेआईएच की टिप्पणी भारत में बढ़ते धार्मिक तनाव को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच आई है. आगामी राम मंदिर उद्घाटन और इसका राजनीतिकरण तनावों को बढ़ा सकता है.
जेआईएच प्रेस वार्ता में दूरसंचार विधेयक 2023 के पारित होने और गाज़ा में बढ़ती मौतों जैसे अन्य मुद्दों पर भी चर्चा की गई और आरोप लगाया गया कि भारत वर्तमान सरकार के तहत एक गैर-उदार लोकतंत्र बन रहा है. जेआईएच नेता ने गाज़ा पर इजरायल के चल रहे हमले की भी निंदा की और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप करने और युद्धविराम का आग्रह किया.