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Wednesday, May 8, 2024
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नोटों पर देवताओं के चित्र की मांग: राजनीतिक सफलता के लिए मोदी की राह चलते केजरीवाल

सैयद ख़लीक अहमद

नई दिल्ली | देश की ​​राजनीति में आगे बढ़ने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नक्शेकदम पर चलते नज़र आ रहे हैं.

अरविन्द केजरीवाल द्वारा 22 अक्टूबर को दिए उनके बयान से यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है. उन्होंने केंद्र सरकार और पीएम मोदी को सलाह दी थी कि वे भारतीय करेंसी पर छपने वाली महात्मा गांधी की फ़ोटो के अलावा हिंदू देवी-देवताओं – गणेश और लक्ष्मी – की तस्वीरें भी नए नोटों पर छापें.

मोदी ने 2014 में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था और खुद को भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करते हुए विकास को अपना चुनावी मुद्दा बनाया था.

उन्होंने दावा किया था कि वह देश के बाकी हिस्सों को गुजरात जैसा बना देंगे, जो कथित तौर पर पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के बाद सबसे अधिक विकसित राज्य है. हालांकि, गुजरात के औद्योगिक और आर्थिक विकास के लिए अकेले मोदी ज़िम्मेदार नहीं हैं. गुजरात के विकास की नींव कांग्रेस और अन्य दलों के नेतृत्व वाली पिछली सरकारों ने ही रख दी थी. लेकिन मार्केटिंग की कला में माहिर मोदी ने गुजरात के विकास का पूरा श्रेय ले लिया.

हालांकि ये और बात है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने विकास के मुद्दे को ही किनारे कर दिया. विकास के बजाय, उन्होंने बहुसंख्यक मतदाताओं को मंत्रमुग्ध करने के लिए धार्मिक या साम्प्रदायिक मुद्दों का दामन थामा, वह 2019 के आम चुनावों के साथ-साथ भारी जीत के साथ वोटरों का समर्थन हासिल करने में सफल रहे. इसके बाद से ही वे लगातार अपना जनादेश बनाये रखने और मतदाताओं को लेकर अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने के लिए नियमित रूप से भावनात्मक और विभाजनकारी मुद्दों का इस्तेमाल करते हैं.

केजरीवाल एक ऐसे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के माध्यम से राजनीति में आए, जो कथित तौर पर आरएसएस के कैडरों के समर्थन से कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने और राजनीतिक रूप से “कांग्रेस-मुक्त” भारत बनाने के उद्देश्य के साथ शुरू किया गया था. उन्होंने दिल्ली के लिए भ्रष्टाचार मुक्त शासन और विकास का वादा किया था. लेकिन दिल्ली सरकार की राजनीतिक तिजोरी से निकल रही चीज़ें इशारा करती हैं कि उनकी सरकार भी भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है. वह अन्य मुद्दों पर भी लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने में नाकाम रहे हैं.

केजरीवाल क्योंकि भ्रष्टाचार मुक्त सरकार और दिल्ली के विकास के लिए अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने में विफल रहे, इसलिए अब उन्होंने भी मोदी की तर्ज पर राजनीति के लिए धर्म का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. 2019 में, उन्होंने मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना शुरू की. इस योजना के तहत केजरीवाल सरकार दिल्ली के वरिष्ठ नागरिकों को वैष्णो देवी, रामेश्वरम, द्वारका, पुरी, हरिद्वार, ऋषिकेश, मथुरा और वृंदावन में मुफ्त तीर्थयात्रा (मुफ्त यात्रा, आवास और भोजन सहित) प्रदान करती है.

राम मंदिर के पक्ष में फैसला आने के बाद अक्टूबर 2021 में केजरीवाल ने अयोध्या का दौरा किया और इसके बाद अयोध्या को भी इस सूची में जोड़ा. दिल्ली सरकार के सूत्रों से उपलब्ध विवरण के अनुसार, अब तक 40,000 से अधिक वरिष्ठ नागरिकों ने इस सुविधा का लाभ उठाया है.

केजरीवाल की तीर्थयात्रा योजना पर किए गए कुल खर्च के बारे में कोई जानकारी नहीं है, जो हज़ारों करोड़ रुपये में हो सकता है. हालाँकि, एक बात स्पष्ट है: सारा पैसा सरकारी खज़ाने से आता है, जो जनता द्वारा भुगतान किए गए करों के माध्यम से दिया जाता है. इसलिए केजरीवाल की मुफ्त तीर्थ यात्रा की योजना को सभी के लिए बनी सामान्य कल्याण योजना नहीं कहा जा सकता.

इसके अलावा केजरीवाल की यह योजना केवल हिंदू धार्मिक स्थलों पर जाने के लिए बनाई गई है. अन्य समुदायों को बिल्कुल नज़रअंदाज़ कर दिया गया है, यह दर्शाता है कि केजरीवाल भी बीजेपी की तरह सरकारी धन का उपयोग करके बहुसंख्यक समुदाय के धर्म का प्रचार करते हैं. जहां एक ओर लगातार अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित कई गैर सरकारी संगठनों और ट्रस्टों को निशाना बनाया जा रहा है, उनके ट्रस्टियों के खिलाफ कथित रूप से अपने धर्म को बढ़ावा देने के लिए धन का उपयोग करने के लिए गंभीर कार्रवाईयां की जा रही है, तो फिर केजरीवाल सरकार की हिंदू पूजा स्थलों की तीर्थ यात्रा के लिए सरकारी फंड से खर्च करने की योजना अलग कैसे हुई? क्या यह बहुसंख्यक धर्म को बढ़ावा देने के लिए किया गया सरकारी धन का दुरुपयोग नहीं है?

गृह मंत्रालय और केंद्र सरकार इस पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं? यह तो एक बड़े वित्तीय घोटाले की तरह प्रतीत होता है जिसकी जांच की जानी चाहिए, और जो लोग सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के दोषी पाए जाते हैं उन पर मुकदमा चलाया जाए. ऐसा करने वाले अपने वोट आधार को बढ़ाने और मज़बूत करने के लिए सरकारी धन का उपयोग कर रहे हैं.

आम आदमी पार्टी की गुजरात में विधानसभा चुनाव में बड़े स्तर पर भाग लेने की योजना है, इसलिए जैसे जैसे गुजरात में चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, केजरीवाल ने अब गुजरात के मतदाताओं को प्रभावित करने और अपनी पार्टी की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए एक नया तरीका ईजाद किया है. वह अब करेंसी नोटों पर हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीरों की बात कर रहे हैं.

उन्होंने विकास और भ्रष्टाचार के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया है और अब दिल्ली में अपनी पार्टी के शासन को बनाए रखने और देश के बाकी हिस्सों में अपनी पार्टी के आधार का विस्तार करने के लिए धार्मिक कार्ड का इस्तेमाल कर रहे हैं.

असली मुद्दों पर चुप हैं केजरीवाल

मोदी की तरह केजरीवाल भी बेरोज़गारी, महंगाई, पेट्रोलियम और घरेलू रसोई गैस सिलेंडर की बढ़ती कीमतों, लगभग सभी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सरकारी संपत्ति जैसे बंदरगाहों और हवाई अड्डों को कॉरपोरेट्स को सौंपने, मुसलमानों की मॉब लिंचिंग, अल्पसंख्यकों विशेष रूप से मुसलमानों के धार्मिक स्थानों और घरों पर हमले जैसे बुनियादी मुद्दों पर पूरी तरह से चुप हैं.

इसके अलावा, केजरीवाल केंद्र सरकार की उन आर्थिक नीतियों के बारे में भी बात नहीं कर रहे हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि उनकी वजह से देश में वर्तमान आर्थिक और वित्तीय संकट पैदा हुआ है और जिसके परिणामस्वरूप रोज़गार का नुकसान हुआ और मुद्रास्फीति बढ़ गई.

केजरीवाल तब भी चुप थे जब 2019-20 में देशव्यापी सीएए विरोधी आंदोलन चल रहा था, मानो मुस्लिम आबादी के एक बड़े हिस्से को विदेशी या घुसपैठिया घोषित कर देने वाले कानून का मुद्दा केजरीवाल के लिए बिल्कुल भी मायने नहीं रखता था.

केजरीवाल नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में फरवरी 2020 के दंगों के पीड़ितों से मिलने भी नहीं गए, जो कि दिल्ली और उसके आसपास 1947 की हिंसा के बाद सबसे खराब स्थिति मानी गई है. वह मोदी सरकार द्वारा बनाए गए तीन कृषि कानूनों पर भी पूरी तरह से चुप थे, जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली के सीमावर्ती इलाकों में किसानों को एक साल तक विरोध करना पड़ा था. वह मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार और हिंसा पर भी कभी नहीं बोलते.

केजरीवाल की मुफ्त तीर्थ यात्रा योजना से दिल्ली या देश को कैसे फायदा पहुंचाएगी? क्या नोटों पर देवी-देवताओं की तस्वीरें छापने से सरकार को आर्थिक संकट से मुक्ति मिलेगी? भारत के शीर्ष प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी का एक उत्पाद केजरीवाल अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहा है और अप्रत्यक्ष रूप से लोगों में वैज्ञानिक सोच के विकास को हतोत्साहित कर रहा है, जबकि भारत के संविधान में दर्ज अनुच्छेद 51 ए (एच) नागरिकों को “वैज्ञानिक स्वभाव, मानवता और जांच और सुधार की भावना विकसित करने” के लिए प्रोत्साहित करता है.

केजरीवाल और उनके जैसे लोग मुफ्त तीर्थ यात्रा की पेशकश करके और अब गुजरात में राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए करेंसी पर देवताओं की तस्वीरों की मांग कर रहे हैं, यह मानव सोच को पीछे ले जाने वाला कदम हैं और एक विशाल आबादी में अंध विश्वास को बढ़ावा देता है.

केजरीवाल को पता होना चाहिए कि यूरोप में समृद्धि और विकास तब हुआ जब लगभग ढाई शताब्दी पहले यूरोपियन अंध विश्वास से बाहर आए. वे “विश्व गुरु” बन गए और चर्च को राजनीति से दूर रखने के ज्ञान और तकनीक के कारण दुनिया पर हावी हो गए. और वे अभी भी दुनिया पर हावी हैं.

राजनीति और सरकार के मामलों में धर्म (वो भी अनेकों वर्गों में से सिर्फ बहुसंख्यको का धर्म) और उन विचारधाराओं को जिन्हें वैज्ञानिक रूप से अंधविश्वास माना जाता है, उन्हें बढ़ावा देकर क्या भारत पीएम मोदी की महत्वाकांक्षा के अनुसार आर्थिक और सैन्य शक्ति या “विश्व गुरु” बन पाएगा? ऐतिहासिक साक्ष्य तो इसकी गवाही नहीं देते हैं.

भारत के पहले प्रधान मंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में भाखड़ा-नंगल बांध की नींव रखते हुए, बड़े बांधों, वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थानों, बिजली संयंत्रों और स्टील पैंट को “आधुनिक भारत के मंदिर” का रूप बताया था. उन्होंने कहा कि ऐसी परियोजनाएं भारत के वैज्ञानिक और औद्योगिक विकास के लिए जरूरी हैं.

डिस्कवरी ऑफ इंडिया में, पंडित नेहरू ने लिखा है कि जीवन के लिए और कई समस्याओं के समाधान के लिए एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण आवश्यक है. उन्होंने कहना था कि भारत को देश के विकास के लिए अंध विश्वास, अंध आस्था और समाज के विभाजन से मुक्ति की आवश्यकता है.

क्या केजरीवाल और उनकी पार्टी और सरकार के लोग अपने भाषणों, नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से वैज्ञानिक स्वभाव या अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं? भूलना नहीं चाहिए कि नरेंद्र दाभोलकर और एमएम कलबुर्गी, जिन्होंने विज्ञान के लिए काम किया और भारतीय समाज में अंधविश्वास का कड़ा विरोध किया, देश में राजनीतिक व्यवस्था के परिवर्तन के बाद इन सभी की हत्या कर दी गई. पत्रकार गौरी लंकेश की भी इसी वजह से हत्या की गई थी.

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