मसीहुज़्ज़मा अंसारी | इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को एक बयान में कहा कि यूपी में उनकी सरकार का साढ़े चार साल एक “यादगार” कार्यकाल था जो सुशासन के लिए समर्पित था. हालांकि, पिछले दिनों आई एनसीआरबी की रिपोर्ट की मानें तो उत्तर प्रदेश हत्या और अपहरण में देश में सबसे आगे है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रविवार को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए अपने कार्यकाल की उपलब्धियां गिना रहे थे. आदित्यनाथ ने कहा कि उनकी सरकार ने माफिया की जड़ पर प्रहार किया है और एक सुरक्षित राज्य का मार्ग प्रशस्त किया है.
पिछले हफ्ते आई एनसीआरबी की 2020 की रिपोर्ट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दावों के बिलकुल विपरीत है. उत्तर प्रदेश हत्या, अपहरण, अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध, साइबर अपराधों में देश में सबसे आगे है जबकि बलात्कार के मामलों में दूसरे नंबर पर हैं.
साल 2020 में देश में हर दिन औसतन 80 हत्याएं हुईं और हत्या का कुल आंकड़ा 29,193 है. इस मामले में राज्यों की सूची में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है.
इसी प्रकार आंकड़े बताते हैं कि 2020 में अपहरण के सबसे ज्यादा 12,913 मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए. साल 2020 में अपहरण के 84,805 मामले दर्ज किए गए जबकि 2019 में यह आंकड़ा 1,05,036 था.
एनसीआरबी की वर्ष 2020 की रिपोर्ट में अनुसूचित जाति के खिलाफ हुए अपराधों में सर्वाधिक 12,714 मामले (25.2 प्रतिशत) उत्तर प्रदेश में हुए. इसके साथ ही साइबर अपराध में भी यूपी अव्वल रहा. रिपोर्ट की मानें तो साल 2020 में देशभर में दर्ज साइबर अपराधों में सबसे अधिक मामले 11,097 उत्तर प्रदेश में दर्ज किये गए.
हालांकि, इन सभी आंकड़ों को दरकिनार कर योगी नेतृत्त्व और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार अलग ही राग अलाप रही है. उत्तर प्रदेश और देश के कई राज्यों में उत्तर प्रदेश को स्मार्ट प्रदेश बताया जा रहा है. जगह जगह पोस्टर और होर्डिंग लगे हुए हैं मगर बेरोज़गारी, महंगाई और कोरोना की मार से जनता पीड़ित है. हालांकि, भाजपा प्रवक्ताओं द्वारा टीवी डिबेट में उत्तर प्रदेश को स्मार्ट प्रदेश होने का जबरन आभास कराया जा रहा है.
रविवार को योगी आदित्यनाथ ने यह भी कहा, “हमने अपराधियों को जेल में डाल दिया, उनकी संपत्तियों को ज़ब्त कर लिया और पिछले साढ़े चार वर्षों में उत्तर प्रदेश में एक भी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ.” लेकिन वास्तविकता यह है कि माफियाओं को जेल में डालने के बाद भी हत्या और अपहरण के मामलों में उत्तर प्रदेश सबसे आगे हैं.
योगी सरकार द्वारा यह दावा भी बार-बार किया जाता रहा है कि उनकी सरकार में एक भी दंगा नहीं हुआ लेकिन यह भी सच्चाई है कि उनकी सरकार ने मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के आरोपियों पर चल रहे केस वापस लिया है. योगी सरकार ने मुज़फ्फरनगर के दंगो से संबंधित 77 आपराधिक केस वापस ले लिए थे जिनमें आजीवन कारावास जैसी धाराओं में भी मामले दर्ज थे.
उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में 2013 में हुए दंगों में 62 लोगों की मौत हुई थी जिनमें पांच जिलों में 6869 लोगों के खिलाफ 510 मुकदमे दर्ज किए गए थे. दंगे के मामलों में केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, यूपी सरकार में मंत्री सुरेश राणा, विधायक संगीत सोम, कपिल अग्रवाल, उमेश मलिक, साध्वी प्राची के खिलाफ भी धर्म विशेष के खिलाफ उकसाने और भड़काऊ भाषण देने का मुकदमा दर्ज किया गया था जिन्हें योगी सरकार द्वारा वापस ले लिया गया.
योगी आदित्यनाथ ने रविवार को यह भी कहा कि, “हमारी प्राथमिकता महिलाओं की सुरक्षा थी और हमने एंटी रोमियो दस्ते स्थापित किये, सभी मोर्चों पर महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए मिशन शक्ति के तीसरे चरण की शुरुआत की.”
हालांकि, इन सभी दवावों के बावजूद उत्तर प्रदेश महिला सुरक्षा के मुद्दे को लेकर चर्चा में रहा है. रेप, महिला अपराध, दलित महिलाओं के साथ रेप के मामले सामने आते रहे हैं. पिछले वर्ष हाथरस जैसी घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान उत्तर प्रदेश में दलित महिलाओं की स्थिति पर खींचा था. पिछले हफ्ते हाथरस घटना के पीड़ित परिवार ने मीडिया को दिए इन्टरव्यू में बताया था कि वह अब भी न्याय का इंतज़ार कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की घटनाओं का आंकलन हाथरस की घटना और उस पर सिलसिलेवार सरकारी प्रताड़ना से लगाया जा सकता है. घटना के बाद पहले रिपोर्ट दर्ज न करना, फिर FSL रिपोर्ट के लिए सैंपल निर्धारित समय के बाद लेना, लाश को जबरन रात को परिवार की मर्ज़ी के बिना जला देना. अलीगढ़ CMO द्वारा FSL रिपोर्ट पर सवाल उठाने पर उनके विरुद्ध विभागीय कार्रवाई करना. इस मामले में रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों पर कार्रवाई आदि यह साबित करता है कि उत्तर प्रदेश में न तो महिला और खासकर की दलित महिला सुरक्षित है और न ही उस दलित महिला के लिए खड़े होने वाले पत्रकार सुरक्षित हैं.
घटना के एक साल बाद भी पीड़िता का परिवार CRPF की सुरक्षा में जीवन जीने को विवश हैं. पिछले दिनों मीडिया को दिए इंटरव्यू में पीड़िता के परिजनों ने कहा कि उनका जीवन अब सामान्य नहीं रहा. उन्हें अब तक न्याय नहीं मिला. परिवार आज भी न्याय के इंतज़ार में है उसी सरकार से न्याय की गुहार लगा रहा है जिस सरकार में रात के अंधेरे में उसकी बेटी के शव को उनकी मर्ज़ी के बिना जला दिया गया.
साथ ही एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि देशभर में बलात्कार के मामलों में उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर हैं. इन आंकड़ों को लेकर विपक्षी दल भी योगी सरकार पर सवाल उठाते रहे हैं.
योगी ने मीडिया से यह भी कहा कि उनकी सरकार ने 4.5 लाख युवाओं को रोज़गार दिया और इसके लिए एक पारदर्शी प्रणाली स्थापित की, जिससे राज्य व्यापार करने में आसानी के मंच पर आगे बढ़ा और निवेश आने लगा. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए विपक्षी दल और सोशल मीडिया यूज़र्स सवाल कर रहे हैं कि आखिर किस क्षेत्र में और किन लोगों को रोज़गार मिला है इसका ब्यौरा भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ देते तो जनता को उनकी बात पर यकीन होता.
पिछले दिनों एक अंग्रेजी अख़बार दि इंडियन एक्सप्रेस में योगी के नेतृत्त्व में यूपी के विकास को दिखाते हुए एक इश्तेहार में बंगाल की तस्वीर छापी थी. उन तस्वीरों पर सवाल उठने के बाद अंग्रेज़ी अख़बार ने माफ़ी मांगी थी जिसे लेकर सोशल मीडिया पर योगी आदित्यनाथ और भाजपा को काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी.
विपक्ष ने सवाल उठाया था कि योगी आदित्यनाथ के विकास के दावे के बाद भी उनके पास इश्तेहार में छापने के लिए उनके ‘विकास मॉडल’ की कोई तस्वीर नहीं है इसलिए बंगाल की तस्वीर दिखानी पड़ी.
मुख्यमंत्री ने कहा कि कोविड प्रबंधन के राज्य के मॉडल को न केवल देश में बल्कि विश्व स्तर पर भी स्वीकार किया गया है. हालांकि, उत्तर प्रदेश के बनारस, इलाहाबाद और दूसरे स्थानों पर नदियों के किनारे हज़ारों शवों के दफनाए जाने का वीडियो और तस्वीरों ने दुनिया का ध्यान उत्तर प्रदेश में कोरोना से होने वाली मौतों की तरफ खींचा था.
रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में पत्रकार भी सुरक्षित नहीं हैं. उत्तर प्रदेश में रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को भी प्रताड़ित किया गया और यूपी में पत्रकारों पर काफी मुक़दमे हुए और कुछ की हत्या भी कर दी गई.
राइट एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (RRAG) की इंडिया प्रेस फ्रीडम रिपोर्ट-2020 के अनुसार, साल 2020 में 228 पत्रकारों को भारत में निशाना बनाया गया. इनमें 112 पत्रकारों को और 2 मीडिया हाउस को सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रताड़ित किया गया. जिन राज्यों में पत्रकारों को सबसे ज्यादा प्रताड़ना झेलनी पड़ी है, उनमें उत्तर प्रदेश पहले पायदान पर है.
RRAG के इस अध्ययन के अनुसार साल 2020 में 13 पत्रकार मारे गए. इनमें सबसे ज्यादा 6 पत्रकार यूपी में मारे गए.
हाथरस की रिपोर्टिंग करने गए पत्रकार सिद्दीक कप्पन पर हिंसा फैलाने का आरोप लगाकर उनके 3 अन्य साथियों सहित जेल भेज दिया गया और वे अभी तक जेल में ही बंद हैं.
उत्तर प्रदेश में एक तरफ हत्या, अपहरण, महिला सुरक्षा, बलात्कार साइबर अपराध जैसे बड़े मुद्दे संकट के रूप में सामने खड़े हैं वहीं बेरोज़गारी, महंगाई, कोरोना के कारण आर्थिक तंगी और दूसरी समस्याएं जनता को परेशान कर रही हैं. ऐसे में योगी आदित्यनाथ का अपने साढ़े चार साल के कार्यकाल को “यादगार” बताना आश्चर्यजनक है.