–मसीहुज़्ज़मा अंसारी
मुज़फ़्फ़रनगर | उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में कुटबा-कुटबी गाँव की वीरान पड़ी मस्जिद में 10 साल से नमाज़ नहीं हुई. ये मस्जिद 10 साल से अज़ान की सदा और नमाज़ियों के इंतज़ार में है लेकिन यहां रहने वाले 300 मुसलमान परिवार जो दंगों के दौरान गांव से पलायन करने को मजबूर हुए थे, अब तक नहीं लौटे.
दंगों में घरों और दुकानों में आगज़नी के साथ मस्जिद में भी तोड़ फोड़ की गई थी और फिर आग लगा दी गई थी. मस्जिद में खंडित अवशेष उसपर हमले की भयावहता को बयां कर रहे हैं. मस्जिद धीरे धीरे खंडहर में तब्दील हो रही है.
मस्जिद के आलावा गांव की ईदगाह और क़ब्रिस्तान पर भी अवैध कब्ज़ा होने लगा है, ईदगाह की ज़मीन पर गोबर फेंका जा रहा और क़ब्रिस्तान में बड़ी घांसे उग आईं हैं जिस से क़ब्रिस्तान को पहचानना मुश्किल है. ईदगाह की दीवारें भी जर्जर हो चुकी हैं.
गांव के ही इरफान सैफी ने ईदगाह में बाउंड्री दिखाते हुए बताया कि यहां हम नमाज़ पढ़ा करते थे, ईद की यादें जुड़ी हुई हैं इस ईदगाह से, पिछले 10 साल से यहां ईद की नमाज़ नहीं हुई. हमें बहुत तकलीफ होती है ये हालत देख कर.
दंगों से पहले इस गाँव में 300 मुस्लिम परिवार आबाद थे और ढाई हज़ार से अधिक मुस्लिम आबादी थी लेकिन ये गांव आज मुसलमानों से खाली है. मस्जिद 10 साल से बंद पड़ी है जिसे इरफ़ान सैफी नाक के व्यक्ति पास के गांव से हर दिन यहां आकर झाड़ू लगाते हैं.
यहां रहने वाले मुसलमान आस-पास की आबादी में जा बसे. कुछ अपने रिश्तेदारों के वहां, कुछ शामली में और कुछ 5 किलोमीटर दूर पास के पलड़ा गांव बस गए हैं.
कुटबा गाँव मुज़फ्फरनगर दंगों में सबसे अधिक प्रभावित गांवों में से एक था. दंगों के दौरान यहां 8 लोगों की मौत भी हुई.
7 सितंबर 2013 को मुज़फ़्फ़रनगर के मंदौड स्कूल के मैदान में दो जाट युवकों की हत्या के विरोध में महापंचायत आयोजित की गई थी जिसमें लाखों की संख्या में लोग इकट्ठा हुए थे. महापंचयात कई भाजपा नेताओं द्वारा कथित रुप से भड़काऊ भाषण दिए गए थे. महापंचायत के बाद लौटती भीड़ ने इलाक़े में मुसलामानों के घर मस्जिद पर हमला किया जिसके बाद सांप्रदायिक दंगा भड़क गया.
यह गांव भाजपा के कद्दावर नेता संजय बालियान का भी गांव है. दंगों से पूर्व पंचायत में भीड़ को उत्तेजित करने वालों में भी संजय बालियान का नाम आया था. वर्तमान में वह भाजपा के विधायक और राज्य के मंत्री हैं.
गांव के ही हुसैन ने इंडिया टुमारो को बताया कि पंचायत के बाद लौट रही भीड़ ने मस्जिद पर हमला कर दिया, अंदर घुस कर तोड़ फोड़ की गई, सभी सामान को आग लगा दिया गया.
उसी गांव के रहने वाले अनीस जो दंगों के दौरान गांव से पलायन कर गए थे, बताया कि दंगाई मस्जिद में छत पर चढ़ गए और पानी की टंकी तोड़ डाली, रेलिंग और इमारत को नुकसान पहुंचाया, वहां लगे पंखे चटाइयों को आग लगा दिया जिसमें मस्जिद में रखी क़ुरआन भी जल गई.
दंगों के 10 साल बाद भी आज भी मस्जिद की टूटी रेलिंग, पानी की टंकी और आगज़नी के साक्ष्य साफ तौर पर देखे जा सकते हैं.
इस सवाल पर कि मस्जिद में तोड़ फोड़ और आगज़नी किसने की, इरफान सैफी ने कहा कि सभी गांव के ही लोगों ने किया है, हम सभी को जानते हैं.
इंडिया टुमारो से बात करते हुए इरफान और हुसैन भावुक हो गए कि जिस मस्जिद में हम और हमारे पूर्वज नमाज़ पढ़ते आए हैं वो मस्जिद 10 साल से वीरान है और यहां दंगों के बाद से नमाज़ नहीं हुई.
मुज़फ्फरनगर दंगों में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 64 लोग मारे गए और 62 हज़ार से अधिक विस्थापित हुए.
दंगा पीड़ित संघर्ष समिती के अध्यक्ष मोहम्मद सलीम ने इंडिया टुमारो को बताया कि दहशत की वजह से हम कभी गांव नहीं लौटे क्योंकि हमने मौत को क़रीब से देखा था.
क्या था दंगे का करण?
मुजफ्फरनगर ज़िले के कवाल गाँव में 27 अगस्त को 2013 को गाँव मलिकपुरा के सचिन और गौरव का कवाल के शाहनवाज़ से विवाद हुआ जिसमें तीनों में मारपीट हुई. घटना के बाद सचिन और गौरव ने हमला कर कवाल गांव के शाहनवाज़ को मार डाला. शाहनवाज़ की मौत से ग़ुस्साईं भीड़ ने सचिन और गौरव को पीट-पीटकर मार डाला.
इस घटना के बाद दो जाट युवकों की हत्या के विरोध में 7 सितंबर 2013 को मुज़फ़्फ़रनगर के मंदौड स्कूल के मैदान में महापंचायत आयोजित की गई जिसमें लाखों लोग इकट्ठा हुए. महापंचायत के बाद लौटती भीड़ ने इलाक़े में मुसलामानों के घर मस्जिद पर हमला किया जिसके बाद सांप्रदायिक दंगा भड़क गया.
महापंचायत से लौटी भीड़ द्वारा मुसलमानों के घरों को निशाना बनाया जाने लगा, अपनी जान बचाने के लिए मुसलमान आस पास के मुस्लिम आबादी वाले गाँवों की तरफ़ पलायन करने पर मजबूर हुए. दंगों के दौरान कई महिलाओं के साथ रेप का मामला भी सामने आया था. दावा है कि कुछ शिकायतें विभिन्न कारणों से दर्ज नहीं हो सकीं.