इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | भारत में होने वाले आगामी लोकसभा चुनाव की घोषणा से कुछ दिनों पहले केंद्र सरकार द्वारा जारी नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए)-2019 को लागू करने की अधिसूचना की मुस्लिम संगठनों ने कड़ी निंदा की है.
देश के सभी प्रमुख मुस्लिम संगठनों द्वारा जारी एक संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में केंद्र सरकार के इस फैसले पर कड़ा विरोध जताया है. मुस्लिम संगठनों ने कहा है कि, “हम समानता और न्याय के मौलिक सिद्धांतों को कमज़ोर करने वाले भेदभावपूर्ण क़ानून के खिलाफ अपने रुख को व्यक्त करने के लिए यह संयुक्त प्रेस वक्तव्य जारी कर रहे हैं.”
मीडिया को जारी संयुक्त बयान में मुस्लिम संगठनों ने कहा है कि, “हम आम चुनाव की घोषणा से ठीक पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 को लागू करने की कड़ी निंदा करते हैं. यह अधिनियम ऐसे प्रावधानों का उल्लेख करता है जो भारतीय संविधान में निहित समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को नुकसान पहुंचाते हैं.”
बयान में कहा गया है कि, “भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता के सामान्य सिद्धांतों का प्रतीक है और धर्म के आधार पर व्यक्तियों के बीच अनुचित भेदभाव को रोकता है.”
संयुक्त रूप से जारी और हस्ताक्षरित बयान में कहा गया है कि, “नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 2 में खंड (बी) पक्षपातपूर्ण व्यवहार स्थापित करता है – जिसमें कहा गया है कि, अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, या ईसाई समुदायों से संबंधित व्यक्ति जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारतीय क्षेत्र में प्रवेश किया था, अवैध प्रवासी के रूप में नहीं माना जाएगा.”
बयान में आगे कहा गया है कि, “इसने नागरिकों के बीच समान अधिकारों के सिद्धांत को गंभीर नुकसान पहुंचाया है. इस प्रकार कानून के तहत समान व्यवहार के सिद्धांत को कमज़ोर किया जा रहा है. यह भेदभावपूर्ण क़ानून देश के सामाजिक ताने-बाने को खतरे में डालता है, जिससे समावेशिता और विविधता के मूलभूत सिद्धांत नष्ट हो जाते हैं.”
मुस्लिम संगठनों ने अपने संयुक्त बयान में कहा है कि, “भारतीय संसद द्वारा नागरिक संशोधन विधेयक की मंज़ूरी के उपरांत देश भर के मुसलमानों और समाज के अन्य वर्गों ने, जिन्होंने भारत के संविधान की रक्षा के लिए तत्काल ज़िम्मेदारी महसूस की विरोध प्रदर्शन किया. अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए चुना गया समय भी प्रश्नसवाल खड़ा करता है और संकीर्ण सोच वाले राजनीतिक हितों के लिए समाज में धार्मिक विभाजन पैदा करने के स्पष्ट राजनीतिक मकसद को दर्शाता है.”
बयान में कहा गया है कि, “हमारा मानना है कि नागरिकता धर्म, जाति या पंथ के भेदभाव बिना समानता के सिद्धांतों के आधार पर दी जानी चाहिए. अधिनियम के प्रावधान सीधे तौर पर इन सिद्धांतों का खंडन करते हैं और हमारे राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को ख़तरे में डालते हैं.”
मुस्लिम संगठनों ने अपने बयान में सरकार से अपील करते हुए कहा है कि, “हम सरकार से नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 को निरस्त करने और भारतीय संविधान में निहित समावेशिता और समानता के मूल्यों को बनाए रखने का आग्रह करते हैं.”
मुस्लिम संगठनों द्वारा जारी संयुक्त बयान में हस्ताक्षरकर्ता हैं :
मौलाना महमूद असद मदनी: अध्यक्ष, जमीयल उलेमा-ए-हिंद
सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी: अमीर, जमाअत-ए-इस्लामी हिंद
मौलाना असगर इमाम मेहदी सलफी: अमीर, जमीयत अहले हदीस हिंद
मौलाना फैसल वली रहमानी: अमीर, इमारत ए शरिया
मौलाना अनीसुर रहमान कासमी: उपाध्यक्ष, ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल
मौलाना यासीन उस्मानी बदायूँनी: उपाध्यक्ष, ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल
मलिक मोतसिम खान: उपाध्यक्ष, जमाअत-ए-इस्लामी हिंद
मोहम्मद सलीम इंजीनियर: उपाध्यक्ष, जमाअत-ए-इस्लामी हिंद
मौलाना हकीमुद्दीन कासमी: महासचिव, जमीअतुल उलेमा हिंद
डॉ. सैयद कासिम रसूल इलियास
मौलाना नियाज़ फारूकी
शेख मुजतबा फारूक
डॉ. ज़फरुल-इस्लाम ख़ान, पूर्व अध्यक्ष, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग