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Monday, April 29, 2024
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कमाल मौला मस्जिद या भोजशाला मंदिर? MP हाईकोर्ट ने दिया ‘वैज्ञानिक सर्वेक्षण’ का आदेश

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद मामले में हिंदू पक्षों के पक्ष में आदेशों की एक श्रृंखला ने हज़ारों मस्जिदों का अंजाम बाबरी मस्जिद की तरह बना देने के दरवाज़े खोल दिए हैं. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने 11 मार्च को धार जिले में स्थित कमाल मौला मस्जिद-भोजशाला मंदिर परिसर में पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा ‘वैज्ञानिक सर्वेक्षण’ करने की अनुमति दी है.

राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख अधिवक्ताओं में से एक हरि शंकर जैन के पुत्र सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड विष्णु शंकर जैन ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसमें उस संरचना की वास्तविक प्रकृति का पता लगाने के लिए जांच का अनुरोध किया गया था जिसे मुस्लिम मस्जिद मानते हैं.

एएसआई द्वारा संरक्षित 11वीं शताब्दी की संरचना भोजशाला को मुस्लिम कमाल मौला मस्जिद के रूप में मानते हैं, जबकि हिंदुओं का मानना ​​है कि यह वाग्देवी – देवी सरस्वती को समर्पित एक मंदिर है.

2003 के समझौते के अनुसार, मुस्लिम शुक्रवार को भोजशाला परिसर में नमाज़ अदा करते हैं, जबकि हिंदू मंगलवार को वहां पूजा करते हैं.

न्यायमूर्ति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और देवनारायण मिश्र की पीठ ने भोजशाला परिसर की व्यापक वैज्ञानिक जांच, सर्वेक्षण और उत्खनन का आदेश दिया है.

पांच या अधिक वरिष्ठ अधिकारियों से युक्त, एएसआई के महानिदेशक या अतिरिक्त महानिदेशक के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ समिति सर्वेक्षण पर एक उचित दस्तावेजी रिपोर्ट तैयार करेगी और इसे छह सप्ताह के भीतर अदालत में जमा करेगी.

अदालत ने आदेश दिया, “विवादित भोजशाला मंदिर व कमाल मौला मस्जिद परिसर और उसके आसपास के 50 मीटर दायरे और कॉम्प्लेक्स की बाउंड्री के आसपास के वृताकार परिधी एरिया का जीपीआर व जीपीएस, सर्वेक्षण के नवीनतम माध्यमों, तकनीकों और तरीकों के द्वारा सर्वेक्षण किया जाए.”

अदालत ने फैसला सुनाया कि परिसर की ज़मीन के ऊपर और नीचे दोनों जगहों की संरचनाओं की “आयु” निर्धारित करने के लिए कार्बन डेटिंग पद्धति का उपयोग करके एक संपूर्ण वैज्ञानिक जांच की जानी चाहिए.

कोर्ट द्वारा यह भी निर्णय लिया गया कि जब सर्वेक्षण की तस्वीरें खींची जा रही हों और वीडियो टेप रिकॉर्ड किया जा रहा हो, तो प्रत्येक पक्ष (हिंदू और मुस्लिम) द्वारा चुने गए दो प्रतिनिधियों को उपस्थित रहना होगा.

अदालत के अनुसार, एएसआई सर्वेक्षण – संरचना की प्रकृति और चरित्र का “पर्दाफाश” करेगा और इसे “भ्रम की बेड़ियों” से “मुक्त” करेगा.

याचिकाकर्ताओं, हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस नामक एक समूह ने अपने मुकदमे में तर्क दिया है कि कमाल मौला मस्जिद का निर्माण 13वीं और 14वीं शताब्दी के बीच, अलाउद्दीन खिलजी के शासन के दौरान, “पहले से निर्मित हिंदू मंदिरों की प्राचीन संरचनाओं को नष्ट करके” किया गया था.

आवेदन की अनुमति देते हुए, अदालत ने कहा, “प्रत्येक सरकार का संवैधानिक दायित्व है कि वह न केवल पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व के मंदिरों सहित प्राचीन स्मारकों और संरचनाओं का संरक्षण सुनिश्चित करे, बल्कि गर्भगृह के साथ-साथ आध्यात्मिक महत्त्व वाले देवता के स्थानों का भी सरंक्षण करें.”

अदालत के आदेश में यह भी कहा गया है कि परिसर की सटीक “प्रकृति, रूप और चरित्र” को लेकर पैदा हुए रहस्य” ने “बहस को इतना बड़ा रुप दे दिया है.”

अदालत ने एएसआई को निर्देश दिया, “पूरे परिसर के सीलबंद और बंद कमरों और हॉलवे को खोलें और प्रत्येक कलाकृति, मूर्ति, देवता या किसी भी संरचना की पूरी सूची तैयार करें और उनकी वैज्ञानिक जांच करें.”

इसी तरह, वाराणसी ज़िला अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की जांच के लिए जुलाई 2023 में एएसआई को एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का काम सौंपा था ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि क्या यह “पहले से मौजूद एक हिंदू मंदिर की संरचना पर बनाया गया था.”

ज्ञानवापी मामले में एजेंसी इस निष्कर्ष पर पहुंची कि “मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले उस स्थान पर एक हिंदू मंदिर मौजूद था” रिपोर्ट इसी साल 25 जनवरी को सीलबंद लिफाफे में अदालत को सौंपी गई थी, तभी मुस्लिम और हिंदू दोनों दावेदारों को अदालत द्वारा रिपोर्ट की एक प्रति प्रदान की गई थी.

वाराणसी के ज़िला न्यायाधीश के रूप में अजय कृष्ण विश्वेश का यह अंतिम कार्य दिवस था. विदाई समारोह से कुछ मिनट पहले, 30 जनवरी को लगभग 3 बजे, उन्होंने अपने करियर का आखिरी आदेश पारित किया और इस आदेश में उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति दी.

वाराणसी के ज़िला मजिस्ट्रेट एस. राजलिंगम को आवश्यक व्यवस्था करने और 16वीं सदी की मस्जिद के तहखाने में पूजा (पूजा) और राग-भोज (धार्मिक अनुष्ठान) करने के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट द्वारा अधिकृत एक पुजारी को नियुक्त करने का निर्देश दिया गया था.

जब अंतिम मुहर लगाई गई, तो राजलिंगम ने इस मौके को हाथो हाथ लिया और फौरन मस्जिद की डबल-लेयर बैरिकेडिंग, जिसका निर्माण 1993 में किया गया था, में से सात-सात फुट का रास्ता बनाने का आदेश दिया. निर्देश के अनुसार, पुजारियों को दक्षिणी तहखाने में प्रवेश करने की अनुमति दी गई.

पुजारी ने फौरन मस्जिद के नीचे ‘व्यास जी का तहखाना’ स्थापित कर दिया और अगले दिन दोपहर 3 बजे पूजा की. ज्ञानवापी की यह घटना, जो राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा (प्रतिष्ठा समारोह) के एक सप्ताह से अधिक समय बाद हुई, संवेदनशील सांप्रदायिक प्रवृति के कारण उत्तर प्रदेश की राजनीति पर आगे चलकर प्रभाव डाल सकती है.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद मामले में एएसआई रिपोर्ट को खारिज कर दिया था.

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश के बाद, कई लोगों ने आशंका व्यक्त की है कि मध्यप्रदेश की यह घटना “अतीत के घावों को ताज़ा कर देगी.”

लोगों का कहना है कि, “हमें उम्मीद है कि 23 दिसंबर, 1949 (जब बाबरी मस्जिद एक “विवादित संपत्ति” बन गई थी) और 6 दिसंबर (बाबरी मस्जिद विध्वंस) की घटनाएं दुबारा दोहराई नहीं जाएंगी और अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूजा स्थल अधिनियम के महत्त्वपूर्ण निर्देश का अपमान नहीं किया जाएगा.”

पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का उद्देश्य 15 अगस्त, 1947 को अपने किसी भी धार्मिक चरित्र में मौजूद स्थानों के धार्मिक चरित्र पर यथास्थिति बनाए रखना है.

इतिहास एक नज़र में

‘भोजशाला’ शब्द की उत्पत्ति 1903 में तत्कालीन शिक्षा अधीक्षक केके लेले द्वारा लिखे गए दस्तावेज़ में हुई थी. धार रियासत में ब्रिटिश राजनीतिक एजेंट कैप्टन अर्नेस्ट बार्न्स ने एक पुरातत्व कार्यालय की स्थापना की थी, और लेले इसके प्रभारी थे.

लेले का दावा, जो इस स्थान का सम्बन्ध (कमाल मौला- भोजशाला परीसर) को 11वीं शताब्दी के राजा भोज से जोड़ता था, इस दावे को बाद में 1908 के औपनिवेशिक गजेटियर में “गलत नाम” बताते हुए खारिज कर दिया गया था. 1909 में, धार राज्य ने इसे एक संरक्षित स्मारक घोषित किया और वहां प्रार्थना करना गैरकानूनी घोषित कर दिया.

मधय प्रदेश राज्य ने 1934 में भोजशाला नाम का उल्लेख करते हुए बाहर एक साइनबोर्ड लगाया. यहां पहला उर्स 1944 में मनाया गया, और नमाज़ 1935 में फिर से शुरू हुई.

1952 में अधिकार मिलने के बाद, एएसआई ने प्रार्थना प्रतिबंध को फिर से लागू कर दिया. फिर वहां 1998 में मुसलमानों को शुक्रवार को और हिंदुओं को बसंत पंचमी पर प्रार्थना करने की अनुमति दे दी गई. दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2003 के एक संशोधित फैसले की अपील पर सुनवाई की, जिसने हिंदुओं को हर मंगलवार को वहां प्रार्थना करने की अनुमति दी, लेकिन याचिका की अनुमति नहीं दी गई.

हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने मई 2022 में उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ में एक मुकदमा दायर किया, जिसमें अनुरोध किया गया कि परिसर में केवल हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति दी जाए. इस प्रकार इस मामले में मुकदमेबाज़ी की दुबारा शुरूआत 2022 में हुई, इसके पहले सब सामान्य चल रहा था.

1930 के दशक के अंत में, धार राज्य के दीवान ने राजा के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करने के लिए एक दिन के लिए नमाज़ और दुआ की अनुमति दी. भोज शोध संस्थान के सचिव दीपेंद्र शर्मा के मुताबिक, मुस्लिम समुदाय तब से भोजशाला में मौजूद है.

मुसलमानों ने दीपेंद्र शर्मा के इस दावे पर आपत्ति जताई है. मुसलमानों ने अपनी आपत्ति में कहा कि 1930 से भी पहले से अब से लगभग 700 वर्षों से एक मुस्लिम परिवार दरगाह की सेवा करता आ रहा है.

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