अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो
लखनऊ | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला अदालतों की कार्य प्रणाली पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि सुस्त कार्य संस्कृति से जिला अदालतें आम लोगों का भरोसा खो रहीं हैं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जे जे मुनीर ने यह कड़ी टिप्पड़ी कानपुर नगर की रहने वाली माया देवी की एक याचिका पर की है.
कानपुर नगर की रहने वाली माया देवी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें मांग की गई थी कि उन्हें उनकी ज़मीन पर कब्ज़ा दिलाया जाये.
हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई 18 अप्रैल 2024 को हुई. हाईकोर्ट के जस्टिस जे जे मुनीर की एकल पीठ में इसकी सुनवाई हुई. पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए जिला अदालतों की सुस्त कार्य संस्कृति पर कड़ी टिप्पड़ी की.
जस्टिस जे जे मुनीर ने जिला अदालतों पर कड़ी टिप्पड़ी करते हुए कहा कि, “सुस्त कार्य संस्कृति से जिला अदालतें जनता का भरोसा खो रहीं हैं. जिला अदालतों के प्रति आम लोगों का भरोसा कमज़ोर हो रहा है. लोग न्याय की तलाश में थाना – पुलिस और थकने के बाद हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटा रहे, लेकिन सक्षम न्यायालय की शरण में जाने से कतरा रहे हैं.”
जस्टिस जे जे मुनीर ने जिला अदालतों की सुस्त कार्य संस्कृति पर कड़ी टिप्पड़ी करते हुए पोषणीयता के आधार पर माया देवी की याचिका को ख़ारिज कर दिया.
इसके साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि, “अनुच्छेद 226 के अंतर्गत हाईकोर्ट का काम ज़मीन का कब्ज़ा दिलाना नहीं है. ऐसे विवादों के निपटारे का काम सिविल कोर्ट का है. सक्षम न्यायालय की उपेक्षा करने वाले पक्षकार की भावना कितनी भी मज़बूत क्यों न हो, वह राहत का हकदार नहीं हो सकता है. यह अदालत की अवमानना भी है.”
उन्होंने कहा कि, “हालांकि यह भी सच्चाई है कि जिला अदालतों की सुस्त कार्य संस्कृति ने लोगों के मन में अदालतों के प्रति निराशा पैदा कर दी है. लोग चाहते हुए भी सक्षम अदालतों की शरण लेने से बच रहे हैं. यह हालत चिंताजनक होने के साथ विचारणीय भी है.”
उन्होंने कहा कि, “अक्सर देखा गया है कि एक पक्ष को राहत देने या राहत से इंकार करने पर न्यायिक अधिकारियों को प्रशासनिक स्तर पर होने वाली शिकायतों का सामना करना पड़ता है. उन्हें यह डर भी सताता है कि कहीं उनका आदेश उच्च अदालत से पलट न दिया जाए.”
इलाहाबाद हाईकोर्ट की जिला अदालतों की सुस्त कार्य संस्कृति पर की गई कड़ी टिप्पणी वास्तविकता को दर्शाती है. जिला अदालतों की सुस्त कार्य संस्कृति से आज लाखों लोग प्रभावित हैं और उनको समय पर उचित न्याय नहीं मिल पाता है.
इसी कारण लोग जिला अदालतों में नहीं जाते हैं बल्कि वह सीधे हाईकोर्ट की शरण में जाते हैं. अधिकतर मामलों में हाईकोर्ट से लोगों को राहत मिलती है, यह कड़वी सच्चाई है.