अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो
लखनऊ | राष्ट्रीय लोक दल के भाजपा के साथ गठबंधन करने से पश्चिमी यूपी में किसान जयंत चौधरी से काफी नाराज़ हैं, ऐसी सूचना लगातार ख़बरों में बनी हुई है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि किसानों की यह नाराज़गी रालोद और भाजपा दोनों को भारी पड़ सकती है.
पश्चिमी यूपी की राजनीति में राष्ट्रीय लोक दल की एक अलग पहचान और हैसियत है. राष्ट्रीय लोक दल का जनाधार किसानों के बीच फैला हुआ है. यह राजनीतिक दल किसानों के मुद्दों पर राजनीति करता है. इस दल के समर्थकों में जाट, मुस्लिम और गुर्जर जातियां प्रमुख रूप से हैं.
यह जातियां ही इस दल को राजनीतिक खाद-पानी देती हैं, जिससे यह एक मज़बूत रजनीतिक शक्ति के रूप में पश्चिमी यूपी में अपनी हैसियत रखता है. रालोद के अध्यक्ष जयंत चौधरी हैं. इनके दादा चौधरी चरण सिंह पश्चिमी यूपी के बहुत बड़े राजनेता थे. वह यूपी के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री भी रहे.
उन्हें किसानों का मसीहा कहा जाता था और किसान राजनीति के बड़े राजनेता थे. पश्चिमी यूपी का किसान इनके एक इशारे पर मर -मिटने को तैयार रहता था. पश्चिमी यूपी का किसान इनको अपना भगवान मानता था. पश्चिमी यूपी में जाट, मुस्लिम और गुर्जर जातियों के बीच इनकी गहरी पैठ और पकड़ थी.
चौधरी चरण सिंह जब तक जीवित रहे, पश्चिमी यूपी में इनका कोई विकल्प नहीं खड़ा हो सका. इनके बीमार होने और मृत्यु के उपरांत इनके बेटे चौधरी अजित सिंह ने विरासत में राजनीति पाई और राजनीति की. वे जनता दल की सरकार में केंद्र सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री बने.
चौधरी अजित सिंह कई बार मंत्री बने. अजित सिंह अपने जीवित रहते हुए अपने बेटे जयंत चौधरी को राजनीति में ले आए. जयंत चौधरी मथुरा से लोकसभा सदस्य रहे. चौधरी अजित सिंह की मृत्यु के बाद जयंत चौधरी राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष बने.
जयंत चौधरी ने 2022 का विधानसभा चुनाव सपा के साथ गठबंधन करके लड़ा, जिसमें इनके 8 विधायक चुने गये. बाद में
हुए उपचुनाव में एक विधायक इनका और निर्वाचित हुआ. इस तरह से यूपी में इनके 9 विधायक हैं.
विधानसभा चुनाव के बाद हुए राज्यसभा चुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पर्याप्त संख्या न होते हुए भी जयंत चौधरी को राज्यसभा चुनाव जिताया. विपक्षी दलों के बने मोर्चे इंडिया में भी यह शामिल हुए. जयंत चौधरी को लेकर कई बार यह खबरें उड़ी कि वह विपक्षी मोर्चे को छोड़कर भाजपा के गठबंधन एनडीए के साथ जा रहे हैं. लेकिन जयंत चौधरी ने इसका खंडन किया.
उन्होंने इस बात का खंडन करते हुए कहा कि, “मैं कोई चवन्नी नहीं हूँ, जो पलट जाऊँ.” लेकिन वह राजनीतिक लाभ के लिए पलट गए और भाजपा के साथ गठबंधन करने की घोषणा कर एनडीए के साथ चले गए. किंतु उनके भाजपा के साथ जाने से पश्चिमी यूपी का किसान जो रालोद का जनाधार है, उनके साथ नहीं गया.
पश्चिमी यूपी का किसान पूर्व समय में दिल्ली बार्डर पर लम्बे समय तक चले किसान आंदोलन को नहीं भूला है, जिसमें लगभग 700 किसानों की मौत हो गई थी. किसान रालोद और उसके अध्यक्ष जयंत चौधरी के एनडीए के साथ जाने से बहुत ज्यादा नाराज़ है. किसानों ने नाराज़गी में जयंत चौधरी को और उनकी पार्टी रालोद को सबक सिखाना चाहता है.
जयंत चौधरी के अपने दल रालोद को भाजपा के साथ ले जाने से पश्चिमी यूपी का जाट भी खुश नहीं है. किसानों के मुद्दों पर किसानों की लड़ाई लड़ने वाली किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने भी जयंत चौधरी के भाजपा के साथ जाने पर असहमति व्यक्त की है.
नरेश टिकैत ने कहा है कि, “जयंत चौधरी भाजपा के साथ चले गए हैं, अब उन्हें किसानों के पक्ष में फैसला करा देना चाहिए. अगर वह किसानों के पक्ष में फैसला नहीं करा पाए, तो उन्हें भारी नुकसान होगा. सरकार भी समझ ले कि स्व.चौधरी चरण सिंह को सिर्फ भारत रत्न देने से काम नहीं चलेगा. अन्नदाता की समस्याओं का समाधान करना होगा.”
इस प्रकार नरेश टिकैत ने जयंत चौधरी को भाजपा के साथ जाने की चेतावनी देते हुए उनको और उनके दल रालोद को लोकसभा चुनाव में होने वाले नुकसान के बारे में चेताया है.
जयंत चौधरी के भाजपा के साथ अपने दल रालोद का गठबंधन करने से जाट बिरादरी बहुत अधिक नाराज़ है, क्योंकि पूर्व समय में हुए किसान आंदोलन में किसानों की हुई मौतों और उत्पीड़न को किसान अभी भूले नहीं हैं तथा उनके ज़ख्म अभी भरे नहीं हैं. ऐसे में किसानों से बिना पूछे जयंत चौधरी द्वारा रालोद का भाजपा के साथ गठबंधन कर लेना किसानों कोरास नहीं आ रहा है. जाट बिरादरी जयंत के इस कदम से बंट गई है.
पूर्व गवर्नर सतपाल मलिक जाट बिरादरी से संबंध रखते हैं. वे अभी तक जयंत चौधरी का समर्थन करते रहे हैं. लेकिन वह अब जयंत चौधरी के साथ नहीं हैं. उनका अपनी बिरादरी जाट पर गहरा और मज़बूत असर और पकड़ है. वे भाजपा के खिलाफ हैं. उनके भाजपा के खिलाफ होने और जयंत चौधरी के साथ नहीं होने से रालोद और भाजपा को बड़ा नुकसान लोकसभा चुनाव में होगा.
इसके आलावा बदले हुए हालात में मुस्लिम और गुर्जर भी रालोद के साथ नहीं होंगे जिससे रालोद को नुकसान उठाना पड़ेगा. रालोद को रजनीतिक रूप से मज़बूत बनाने में मुस्लिम और गुर्जर जाति की बड़ी भूमिका है, अकेले जाट बिरादरी के दम पर ही रालोद मज़बूत नहीं था.
भाजपा और रालोद ने अपने-अपने फायदे को ध्यान में रखकर चुनावी गठबंधन कर लिया है. भाजपा यह मानकर चल रही है कि रालोद के साथ गठबंधन करने से पश्चिमी यूपी में लोकसभा चुनाव में उसे अधिक सीटें जीतने में कामयाबी मिलेगी जबकि रालोद यूपी सरकार में हिस्सेदारी मिलने और अधिक लोकसभा सीटें जीतने का ख्वाब देख रही है.
हालंकि, हकीकत में मौजूदा परिस्थतियों को देखते हुए राह आसान नहीं है.
जयंत चौधरी द्वारा रालोद का भाजपा के साथ चुनावी गठबंधन करने से पार्टी के विधायकों में भी फूट पड़ गई है. पार्टी के 9
विधायकों में से 4 ने जयंत चौधरी का साथ छोड़ दिया है. यूपी सरकार द्वारा राज्य के सभी विधायकों को अयोध्या ले जाकर
भगवान श्री राम के दर्शन कराने के कार्यक्रम में 5 विधायक ही अयोध्या गए और 4 विधायक नहीं गए. इन 4 विधायकों ने जयंत चौधरी से दूरी बना ली है.
इस प्रकार जयंत चौधरी और उनके दल रालोद के लिए आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को लाभ पहुंचाना और खुद लाभ लेना इतना आसान नहीं है. रजनीतिक परिस्थितियों ने उनको चारों तरफ से घेर लिया है.