रिपोर्टर | इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | उत्तराखंड में बीजेपी सरकार ने अपनी बांटने वाली राजनीति को आगे बढ़ाते हुए विवादास्पद समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने के लिए एक विधेयक पारित हेतु 5 फरवरी को राज्य विधानसभा का एक विशेष चार दिवसीय सत्र बुलाया है.
8 फरवरी तक चलने वाले इस सत्र में अलग उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर लड़ने वाले आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों के लिए 10% क्षैतिज आरक्षण के लिए एक विधेयक भी पेश किया जाएगा.
उत्तराखंड सरकार ने यूसीसी के कार्यान्वयन के तरीकों और साधनों की जांच के लिए मई 2022 में एक समिति का गठन किया था. इस समिति ने जून 2023 में यूसीसी का मसौदा तैयार कर लेने दावा किया था.
इस समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई कर रही हैं, जो परिसीमन आयोग की वर्तमान अध्यक्ष भी हैं. न्यायमूर्ति प्रमोद कोहली, सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौड़, पूर्व आईएएस अधिकारी शत्रुघ्न सिंह और दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल समिति के अन्य सदस्य हैं.
यूसीसी या समान नागरिक संहिता लागू करना 2022 के विधानसभा चुनाव के भाजपा के चुनावी वादों में से एक है. ऐसी उम्मीद की जा रही है कि जस्टिस देसाई समिति यूसीसी के कार्यान्वयन पर पूरी रिपोर्ट 2 फरवरी को पुष्कर सिंह धामी सरकार को सौंप देगी.
हालांकि समिति का कार्यकाल 26 जनवरी को समाप्त हो गया था, लेकिन राज्य सरकार ने इसे दो सप्ताह के लिए बढ़ा दिया था.
मई 2022 में अपना काम शुरू करने वाली समिति ने कहा कि उसे लगभग 2.15 लाख लिखित प्रस्तुतियाँ प्राप्त हुईं, जिनमें कई हस्ताक्षरयुक्त प्रस्तुतियाँ शामिल हैं.
समिति ने सार्वजनिक आउटरीच कार्यक्रमों के माध्यम से 20,000 से अधिक लोगों से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की है. अंतिम यूसीसी मसौदे में कई मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जैसे लैंगिक समानता, मनमानी और भेदभाव का उन्मूलन, संपत्ति के अधिकारों और गोद लेने के नियम पर समान कानून.
राज्य सरकार ने मसौदे को अंतिम रूप देने के लिए मई 2022 से समिति को चार बार विस्तार दिया है, जो वर्तमान में प्रिंटिंग चरण में है. मुख्यमंत्री धामी ने इस सप्ताह की शुरुआत में कहा था कि समिति ने मसौदा तैयार कर लिया है और सरकार इसे जल्द ही लागू करेगी.
सरकारी अधिकारियों द्वारा प्रदान की गई चुनिंदा जानकारी के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि रिपोर्ट में महिलाओं की शादी की उम्र पर कोई सिफारिश नहीं की गई है, हालांकि इसमें पैतृक संपत्तियों पर महिलाओं के अधिकारों पर ज़ोर दिया गया है.
अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण और संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के साथ-साथ यूसीसी लागू करना, वर्षों से लगातार भाजपा के घोषणापत्र में लगातार शामिल रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने पहले फैसला सुनाया था कि राज्यों को यूसीसी को लागू करने की व्यावहारिकता की जांच करने के लिए समितियां गठित करने का अधिकार है.
धामी ने यूसीसी पर विधेयक पेश करने को उचित ठहराते हुए कहा कि यह सभी धार्मिक समुदायों को कानून में एकरूपता प्रदान करेगा और ‘देवभूमि’ (देवताओं की भूमि) की संस्कृति को संरक्षित करेगा, जैसा कि चुनाव के समय भाजपा के घोषणापत्र में वादा किया गया था.
2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तराखंड में 13.9% मुस्लिम आबादी है, जो ज़्यादातर तराई क्षेत्र में है. राज्य में आबादी का एक बड़ा वर्ग यूसीसी के खिलाफ है और तर्क देता है कि यह धार्मिक और अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन करता है.
ऐसी अटकलें हैं कि यदि एक बार जब उत्तराखंड विधानसभा यूसीसी पारित कर देती है, तो दो अन्य भाजपा शासित राज्य – गुजरात और असम – अपनी विधानसभाओं में लगभग इसी तरह के विधेयक पारित करेंगे. यदि सब कुछ भाजपा की योजना के अनुसार हुआ, तो अगले कुछ महीनों में 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले तीन राज्यों में यूसीसी लागू होने की संभावना है.
न्यायमूर्ति देसाई समिति में विधेयक का मसौदा तैयार करने और हितधारकों के साथ चर्चा करने और रिपोर्ट की डिज़ाइनिंग और छपाई के लिए दो उप-पैनल शामिल थे.
समिति के सदस्यों को मौलिकता बनाए रखने के लिए रिपोर्ट और मसौदा विधेयक का हिंदी में अनुवाद करने के लिए भी कहा गया.
राज्य सरकार ने पहले नवंबर 2023 में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का इरादा किया था, लेकिन 12 नवंबर को उत्तरकाशी जिले में सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग के ढहने से हुई दुर्घटना के कारण योजना स्थगित कर दी गई थी.