इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में गुरुवार को मानवाधिकार और विरोधाभासी समानता विषय पर एक विचार गोष्ठी आयोजित की गई.
यह विचारगोष्ठी जमात इस्लामी हिन्द की महिला विंग द्वारा आयोजित किया गया जिसमें कई सम्मानित महिला बुद्धजीवियों, समाजसेवी और प्रोफेसर्स ने शामिल होकर अपनी बातें साझा की.
विचार गोष्ठी में विभिन्न क्षेत्रों की प्रमुख महिलाओं ने दुनिया भर में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चिंता जताई और पीड़ितों के प्रति अपनी एकजुटता व्यक्त की.
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में अपनी बात रखते हुए सभी वक्ताओं ने मानवाधिकार सिद्धांतों, अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के दुरुपयोग और चुनौतियों पर अपनी चिंता ज़ाहिर की.
कार्यक्रम में शामिल वक्ताओं में जमात ए इस्लामी हिंद की राष्ट्रीय सचिव रहमथुन्निसा, दिल्ली विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफेसर जेनी रोवेना, पत्रकार और लेखिका भाषा सिंह, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर निवेदिता मेनन, सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सबिहा खानम, समाजशास्त्री नंदिनी सुंदर, प्रिंट की पत्रकार हीना फातिमा, जमात ए इस्लामी हिंद की राष्ट्रीय सचिव शाइस्ता रफत ने अपनी बातें साझा की.
जमात ए इस्लामी हिंद की राष्ट्रीय सचिव रहमतुन्निसा ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि विरोधाभासी समानता की चुनौतियों का समाधान करने और सभी मनुष्यों के लिए मानवाधिकार सुनिश्चित करने के लिए वकालत आवश्यक है.
उन्होंने कहा कि, फिलिस्तीन में निर्दोष बच्चों और महिलाओं पर हो रहे अमानवीय हमलों और कुछ समूहों के खिलाफ अत्याचार और दुनिया भर के विभिन्न देशों में जातीय उत्पीड़न और नरसंहार पर विराम लगना चाहिए. साथ ही अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन व दुनिया भर के राजनेता, मीडिया, सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा अपनाए गए दोहरे रुख चिंता बढ़ाने वाले हैं. उन्होंने आग्रह किया कि उन लोगों को बहुत कुछ करना होगा जो अभी भी मानवता और न्याय में विश्वास करते हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफेसर जेनी रोवेना ने कहा कि, मानवाधिकारों का लगातार उल्लंघन हो रहा है. उनके पति प्रोफेसर हनी बाबू को जानबूझ कर झूठे सबूत गढ़ कर कैसे जेल में फंसाया गया, इस पर सफाई देते हुए उन्होंने कहा कि असली समस्या ढांचागत, स्ट्रक्चर की है. इस प्रक्रिया के माध्यम से लगभग तीस हजार आदिवासियों को यूएपीए लगाकर जेल में डाल दिया गया.
पत्रकार और लेखिका भाषा सिंह ने कहा कि, समानता और मानवाधिकार का लोकतंत्र से सीधा संबंध है. भारत का संविधान सभी के लिए समानता की गारंटी देता है लेकिन यह इस पर निर्भर करता है कि इसे लागू कौन करता है.
उन्होंने कहा कि, राजनीति दुनिया भर में मानवाधिकारों का फैसला करती है और जब तक मतदान की शक्ति का सही उपयोग नहीं किया जाता, तब तक किसी बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती. मीडिया पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि मीडिया अब धारणा बनाने का उद्योग बन गया है.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर निवेदिता मेनन ने कहा कि, भारत में संविधान की प्रस्तावना और प्रत्येक सत्यनिष्ठ व्यक्ति को अपराधी बना दिया गया है. उन्होंने वर्तमान सरकार की इस्लामोफोबिक नीतियों पर भी प्रकाश डाला.
उन्होंने कहा कि, समानता का मतलब एकरूपता नहीं है. मतभेदों को पहचानना भी ज़रूरी है. उन्होंने लोगों से कहा कि हमेशा सोचते रहें, बात करते रहें और मुद्दों पर बहस करते रहें.
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सबिहा खानम ने यूडीएचआर और 30 लेखों के इतिहास के बारे में बात करते हुए कहा कि कैसे फिलिस्तीन में अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.
उन्होंने भारत में राज्य प्रायोजित हिंसा पर चिंता व्यक्त की और बताया कि कैसे देश में विरोध प्रदर्शन की अनुमति देने से भी इनकार किया जा रहा है और प्रतिरोध का स्पेस संकुचित और सिकुड़ता जा रहा है.
उन्होंने इस बात की वकालत करते हुए कहा कि यदि एक बेहतर, सुरक्षित और आज़ाद दुनिया का निर्माण करना है तो हमें बदलाव के प्रयास बंद नहीं करने चाहिए.
समाजशास्त्री नंदिनी सुंदर ने कहा कि, फिलिस्तीन में जो कुछ भी हो रहा है वह जिनेवा कन्वेंशन के खिलाफ है. हमें इजरायली उत्पादों का बहिष्कार करना चाहिए और यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि फिलिस्तीन एक राष्ट्र के रुप में हमेशा रहा है और हमेशा रहेगा.
नंदिनी सुंदर ने भारत के संविधान निर्माण में महिलाओं के योगदान को भी याद दिलाया और कहा कि हमें कभी उम्मीद नहीं खोनी चाहिए.
दि प्रिंट की पत्रकार हीना फातिमा ने एक पत्रकार के रूप में अपने अनुभव को साझा करते हुए इस बात पर चिंता व्यक्त की कि भारत में अल्पसंख्यकों को कैसे व्यवस्थित रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है.
एक बलात्कार 13 वर्ष की बलात्कार पीड़िता का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे देश में हम किस मानवाधिकार की उम्मीद कर सकते हैं, जहां उसके जैसी लड़की के लिए ‘रोटी’ पाना एक विलासिता है और न्याय के लिए आवाज़ उठाना किसी ख़तरे से कम नहीं है.
जमात ए इस्लामी हिंद की राष्ट्रीय सचिव शाइस्ता रफत ने अपने समापन भाषण में कहा कि दुनिया भर में मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने की भूमिका महत्वपूर्ण है. हमने देखा है कि सवाल पूछने वाली हर एक आवाज एक साथ मिलकर बदलाव लाती है और थोड़े लोग भी दुनिया को बदल सकते हैं.