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Monday, April 29, 2024
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हमास-इज़राइल संघर्ष के बीच मिस्र ने नील नदी पर इथियोपिया के मेगा-बांध पर ध्यान केंद्रित किया

रिपोर्टर | इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | हमास-इज़राइल संघर्ष के बीच फिलिस्तीन के गाज़ा के साथ लगी अपनी सीमा से ध्यान हटाकर मिस्र ने अपने हिस्से के पानी की रक्षा के लिए नील नदी पर इथियोपिया द्वारा बनाए जा रहे गग्रैंड इथोपियन रेनेसां डेम- जीईआरडी पर ध्यान केंद्रित किया है.

मिस्र और सूडान मेगा-बांध के बनने से नील नदी से मिलने वाले उनके पानी के हिस्से पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त करते रहे हैं.

मिस्र ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए इस सप्ताह की शुरुआत में काहिरा में इथियोपिया और सूडान के साथ बांध पर त्रिपक्षीय वार्ता का तीसरा दौर आयोजित किया था. तीनों राष्ट्र नील नदी के पानी के उपयोग को न्यायपूर्ण तरीके से सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी साझा रुप से निभाते हैं.

इथियोपिया ने घोषणा की है कि उसने बांध को पानी से भर दिया है, जिससे 5,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जाएगा. जब से इथियोपिया द्वारा 2011 में परियोजना शुरू की गई है तब से ही यह बांध एक क्षेत्रीय विवाद का केंद्रीय विषय बना हुआ है. तीसरे दौर की वार्ता 24 अक्टूबर को बिना किसी ठोस नतीजे के संपन्न हुई, हालांकि तीनों देश तकनीकी वार्ता के अगले दौर को अदीस अबाबा में आयोजित करने पर सहमत हो गए हैं.

मिस्र और सूडान बांध के संचालन पर कानूनी रूप से एक समझौता चाहते हैं, जबकि इथियोपिया का कहना है कि कोई भी समझौता केवल सलाहकारी होना चाहिए. दोनों देश इस बांध को अपनी महत्वपूर्ण जल आपूर्ति के लिए ख़तरा मानते हैं, जबकि इथियोपिया इसे विकास और अपने बिजली उत्पादन को दोगुना करने के लिए आवश्यक मानता है.

नील नदी के जल बहाव की ओर पड़ने वाले दोनों देशों सूडान तथा मिस्त्र को अपनी जल सुविधाओं, कृषि भूमि और नील नदी के जल की समग्र उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का डर है.

विवादित बांध अफ़्रीका की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना है, जिसकी लागत 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है. अप्रैल 2021 में अफ्रीकी संघ द्वारा प्रायोजित वार्ता विफल होने के बाद हाल ही में यह तीनों देशों की पहली वार्ता है.

मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी और इथियोपिया के प्रधान मंत्री अबी अहमद ने इस साल जुलाई के मध्य में एक बैठक के दौरान जीईआरडी वार्ता को फिर से शुरू करने और चार महीने के अंदर विवाद का समाधान करने पर सहमति व्यक्त की थी.

जीईआरडी को निचले तटवर्ती देशों के जल शेयरों को प्रभावित किए बिना 74 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी रखने के लिए डिज़ाइन किया गया था. चौथी बार भरने के बाद, जलाशय में केवल 42 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी था. अबी अहमद के प्रशासन के तहत स्थापित किए जाने वाले टर्बाइनों की कुल संख्या 16 से घटाकर 13 कर दी गई, जिसका अर्थ है कि इच्छित 5000 से अधिक मेगावाट बिजली उत्पन्न नहीं की जाएगी.

जब सितंबर के अंत में इथियोपियाई राष्ट्रपति साहले-वर्क ज़ेवडे ने एक संयुक्त संसदीय सत्र को संबोधित किया, तो उन्होंने कहा था कि जीईआरडी का सिविल इंजीनियरिंग से सम्बन्धित काम चालू वित्तीय वर्ष में पूरा हो जाएगा, जिसका 93% से अधिक काम पहले ही पूरा हो चुका है. उन्होंने आगे कहा था कि नील नदी का 85% से अधिक जल इथियोपियाई उच्चभूमि से उत्पन्न होता है.

मिस्र एक औपनिवेशिक युग की संधि का हवाला देते हुए दुनिया की सबसे लंबी नदी पर ऐतिहासिक अधिकार का दावा करता रहा है, जिस पर इथियोपिया ने हस्ताक्षर नहीं किया था. सितंबर 2023 में अदीस अबाबा में दूसरे दौर की चर्चा के दौरान, इथियोपिया ने कहा था कि मिस्र की स्थिति के कारण किसी भी समझौते पर पहुंचना मुश्किल है.

तीनों में से किसी भी देश ने यह नहीं बताया कि बातचीत का समापन क्यों संभव नहीं हो सका. लगभग 10 साल हो गए हैं जब से तीनों देशों ने जीईआरडी पर बातचीत शुरू की थी. 2015 में, एक समझौता हुआ, जिससे इथियोपिया को निर्माण जारी रखने में मदद मिली, जबकि पानी के उपयोग पर बातचीत जारी रही.

एक बाध्यकारी कानूनी समझौते पर पहुंचने में तीन देशों की विफलता के कारण मिस्र ने पिछले महीने जीईआरडी के मुद्दे पर अपने अंतरराष्ट्रीय संघर्ष को जारी रखा. उत्तरी अफ्रीकी राष्ट्र मिस्त्र ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को जीईआरडी के संबंध में लिखे अपने चौथे पत्र में पुष्टि की कि “बांध के भरने और संचालन के संबंध में इथियोपिया की एकतरफा कार्रवाई मिस्र के अस्तित्व और इसकी स्थिरता के लिए खतरा है.”

इथियोपिया द्वारा जीईआरडी की चौथी बार फीलिंग के पूरा होने की घोषणा के अवसर पर मिस्र के विदेश मंत्रालय द्वारा यह पत्र संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को भेजा गया था. मिस्र एक बाध्यकारी और व्यापक समझौते की आवश्यकता पर ज़ोर देता है जो तीनों देशों के अधिकारों और हितों की गारंटी देता हो. मिस्र राजनयिक चैनलों और अंतरराष्ट्रीय कानून के माध्यम से जीईआरडी मामले से निपट रहा है.

इंजीनियरिंग और बांध प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों के अनुसार, जीईआरडी मुद्दे पर नतीजे पर नहीं पहुंचने के बावजूद काहिरा अन्य पक्षों के साथ बातचीत जारी रखेगा. गाज़ा युद्ध में मिस्र की भागीदारी के कारण वर्तमान समय में अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मध्यस्थता भी संभव नहीं है.

पिछले दौर की वार्ताओं को ध्यान में रखते हुए, तीनों पक्षों के बीच एक बाध्यकारी कानूनी समझौते पर पहुंचने की उम्मीदें सीमित हैं, खासतौर पर जब इथियोपिया कोई सकारात्मक संकेत दे भी नहीं रहा है. हो सकता है अदीस अबाबा यह मान रहा हो कि मिस्र वर्तमान में गाज़ा युद्ध में लगा हुआ है और इसलिए इथियोपिया जीईआरडी मुद्दे से निपटने के दौरान अपनी वास्तविक नीति को लागू करने के लिए मिस्त्र की गाज़ा के साथ व्यस्त होने की स्थिति का फायदा उठा सकता है.

अगस्त और सितंबर में काहिरा और अदीस अबाबा में वार्ता के विफल दौर के बाद जीईआरडी मामला और अधिक मुश्किल हो गया, और 10 सितंबर को इथियोपिया के प्राइम मिनिस्टर अबी अहमद द्वारा यह घोषणा किए जाने के बाद कि उनके देश ने जीईआरडी जलाशय को भरने का चौथा ऑपरेशन पूरा कर लिया है, उसके बाद से तो यह मामला और भी अधिक जटिल हो गया है.

मिस्त्र ने अदीस अबाबा पर मिस्र और सूडान के हितों और अधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कानून के नियमों द्वारा गारंटीकृत उनकी जल सुरक्षा की अनदेखी करने का आरोप लगाया.

मिस्र, जो पहले से ही पानी की गंभीर कमी से जूझ रहा है, इस मेगा-बांध को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है क्योंकि देश अपनी 97% पानी की ज़रूरतों के लिए नील नदी के पानी पर निर्भर है. कमज़ोर सूडान जो इस समय गृहयुद्ध में फंसा हुआ है, उसकी स्थिती में हाल के वर्षों में उतार-चढ़ाव आया है.

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि मिस्र में 2025 तक पानी खत्म हो सकता है और सूडान जहां हुआ दारफुर संघर्ष मूल रूप से पानी तक पहुंच को लेकर हुआ एक युद्ध था, वहां भी जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप इलाके तेज़ी से सूखे की चपेट में आ रहे हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि बांध पर त्रिपक्षीय वार्ता तीनों देशों को सहयोग करने और सभी पक्षों के हितों को संबोधित करने वाले नवीन समाधान खोजने का अवसर प्रदान करती है.

गाज़ा पट्टी के कैद निवासियों के लिए दुनिया भर से सहायता सामग्री प्राप्त करने वाले मिस्र को राफा सीमा पार से इसे समय पर भेजने की समस्या का सामना करना पड़ रहा है.

उत्तरी अफ़्रीकी राष्ट्र मिस्त्र फिलिस्तीन-इज़राइल संकट के दौरान जल मुद्दे के सौहार्दपूर्ण समाधान की आशा कर रहा है

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