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Saturday, April 27, 2024
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गाज़ा पर इज़राइल की आतंकी बमबारी कट्टरपंथी यहूदी राज्य की मानसिकता को दर्शाता है

नवेद हामिद

नई दिल्ली | इज़राइली रक्षा बलों (आईडीएफ) ने विगत शनिवार को गाज़ा में स्थित प्राचीन सेंट पोर्फिरियस ऑर्थोडॉक्स चर्च पर भी बमबारी की.

जिस ग्रीक ऑर्थोडॉक्स सेंट पोर्फिरियस चर्च पर इज़राइल ने बमबारी की है, उसका ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि यह 425 ईस्वी पूर्व का दुनिया का तीसरा सबसे पुराना चर्च है.

सैकड़ों गाज़ा वासियों ने इस चर्च को इज़राइल की बमबारी से सुरक्षित स्थान मानते हुए इसके परिसर में शरण ली हुई थी, उसी दौरान इस चर्च पर इज़राइल द्वारा बमबारी कर दी गई.

यह ग्रीक चर्च गाज़ा के बैपटिस्ट अस्पताल के नज़दीक स्थित है, चर्च पर इज़राइल की मिलिट्री द्वारा निशाना बना कर की गई बमबारी में सैकड़ों निर्दोष नागरिकों का नरसंहार हुआ.

गाज़ा के अल-अहली बैपटिस्ट अस्पताल और उसके बाद अब चर्च पर बमबारी का मुख्य उद्देश्य निर्दोष गाज़ावासियों और फिलिस्तीनियों का नरसंहार करना था.

इज़राइल द्वारा सबसे पुराने चर्चों में से एक पर निशाना बना कर की गई आतंकी बमबारी को हाल में किए गए कृत्य को अलग से नहीं देखा जाना चाहिए. चर्च पर बमबारी के इस आतंकी कृत्य ने इज़राइल के पीएम नेतन्याहू के उस झूठ को उजागर कर दिया है जिसमें कुछ दिन पहले बैपटिस्ट अस्पताल पर इज़राइल द्वारा की गई बमबारी के अपराध के बारे में उन्होंने बताया था कि यह कार्य कुछ फिलिस्तीनी उग्रवादी गुट अर्थात् इस्लामिक जिहाद समूहों का है.

नेतन्याहू के इस खुले झूठ का तेल अवीव की अपनी यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन द्वारा भी समर्थन किया गया था. इज़रायली पीएम बेंज़ामिन नेतन्याहू के करीबी डिजिटल सहयोगी हनान्या नफ्ताली द्वारा एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर शुरुआत में पोस्ट किया गया था कि “इज़रायली एयर” फोर्स ने गाज़ा में एक अस्पताल के अंदर हमास के आतंकवादी अड्डे पर हमला किया, लेकिन जैसे ही नेतन्याहू ने अस्पताल पर हमले का आरोप फिलीस्तीन के चरमपंथी समूह पर लगाया हनान्या नफ्ताली के पोस्ट को लगभग तुरंत हटा दिया गया था.

अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत, संघर्ष के समय में धार्मिक स्थलों और अस्पतालों को निशाना बनाना एक युद्ध अपराध है और गाज़ा और वेस्ट बैंक में इज़राइल के युद्ध अपराधों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगी दल अर्थात् ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के समर्थन के कारण प्रोत्साहन मिला है.

दुर्भाग्य से द्वितीय विश्व युद्ध में एकमात्र परमाणु बमबारी के भुक्तभोगी जापान ने भी फिलीस्तीन के मुद्दे पर अपराधियों के साथ गठबंधन कर लिया है और तत्काल तनाव कम करने, युद्धविराम और गाज़ा में नागरिक आबादी पर बमबारी को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्तावों का विरोध करते हुए अमेरिकी एजेंडे का समर्थन किया.

अस्पताल और चर्च, दोनों बमबारी वाले स्थानों का निशाना बच्चे, महिलाएँ और बूढ़े मासूमों सहित आम नागरिक थे, जिन्होंने खुद को इन दोनों परिसरों में सुरक्षित मानते हुए यहां शरण ले रखी थी. दोनों निशाना बनाए गए स्थानों पर, इज़राइल का एकमात्र एजेंडा आतंक का माहौल बनाना और फिलिस्तीनियों को दक्षिणी गाज़ा में जाने को मजबूर करना, और अंततः पड़ोसी मिस्र में सिनाई रेगिस्तान में फिलिस्तीनियों के बड़े पैमाने पर विस्थापन की स्थिति पैदा करना है.

इज़राइल के इस एजेंडे को न सिर्फ फिलिस्तीनी नेतृत्व के सभी गुटों (जिनमें फिलिस्तीनी अथॉरिटी प्रेज़ीडेंट महमूद अब्बास के अलावा हमास भी शामिल है) ने खारिज किया है बल्कि जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला द्वितीय, सऊदी अरब के शासक और युवराज मोहम्मद बिन सलमान और सबसे महत्वपूर्ण इस्लामिक देशों के संगठन के संयुक्त नेतृत्व ने भी इसे स्पष्ट रुप से खारिज कर दिया है.

यह समझने और स्वीकार करने का समय आ गया है कि न केवल मुसलमान बल्कि सभी फिलिस्तीनी, चाहे उनकी धार्मिक मान्यता जो कुछ भी हो चाहे वो यहूदी हो या और ईसाई , ये सभी इजरायल के ज़ायोनी (कट्टरपंथी यहूदी) राज्य के निशाने पर हैं, फिलिस्तीनी भूमि पर जबरन कब्ज़ा कर पश्चिम एशिया में इज़राइल का एक ज़ायोनी राज्य स्थापित किए जाने से पहले सदियों से फिलिस्तीन में ये सभी यहूदी और ईसाई सद्भाव के साथ रह रहे थे.

(लेखक साउथ एशियन कौंसिल ऑफ माइनॉरिटी के सेक्रेटरी और ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत के पूर्व अध्यक्ष हैं)

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