सैयद ख़लीक अहमद
नई दिल्ली | भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने कहा कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक “पहचान और सुरक्षा, शिक्षा और सशक्तिकरण, समान हिस्सेदारी और नीति निर्माण में उचित हिस्सा चाहते हैं.”
उन्होंने सोमवार को यहां इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में रेडियंस व्यूज़वीकली द्वारा आयोजित एक समारोह में “मीडिया और अल्पसंख्यक” विषय पर अपना मुख्य भाषण देते हुए ये टिप्पणियां की.
यह समारोह साप्ताहिक पत्रिका रेडियंस व्यूज़वीकली की स्थापना के 60वें वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था. 1975 में राष्ट्रीय स्तर पर आपातकाल लागू होने के साथ ही रेडियंस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और इसके मुख्य संपादक यूसुफ सिद्दीकी और सहायक संपादक औसाफ़ सईद वासफ़ी को गिरफ्तार कर लिया गया था.
यह कहते हुए कि “ये सभी बातें सामान्य अधिकारों के तहत आती है और इन्हें बिना किसी भेदभाव के दिया जाना चाहिए”, उन्होंने कहा कि “यह बात मुसलमानों के लिए काफी हद तक सच है, जो आबादी का 14.2 प्रतिशत हैं और अब उनकी संख्या 200 मिलियन से अधिक है.”
इसी कड़ी में आगे बोलते हुए हामिद अंसारी ने एक हालिया संपादकीय टिप्पणी का हवाला देते हुए बताया कि “भारत अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न को सामान्य बना दिए जाने का गवाह बन रहा है” जिसका अर्थ है कि राजनीतिक लाभ पाने के लिए एक समूह द्वारा जानबूझकर मुस्लिम विरोधी भावनाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है. और यह मुस्लिम अल्पसंख्यकों के संबंध में इस आधिकारिक दावे के बावजूद हो रहा है कि “हम कानून के प्रति मज़बूत प्रतिबद्धता के साथ एक लोकतांत्रिक राजनीति हैं.”
1947 के घटनाक्रम के बाद मुसलमानों में विकसित हुई मनोवैज्ञानिक असुरक्षा की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने कहा कि कई प्रयास किए गए लेकिन इस मुद्दे पर और अधिक काम करने की ज़रूरत है. उन्होंने मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए 2006 की सच्चर कमेटी रिपोर्ट और सितंबर 2014 की कुंडू रिपोर्ट का ज़िक्र किया. हालाँकि, उनका कहना है कि मुस्लिम अल्पसंख्यकों की समस्याएँ इन प्रयासों के बावजूद सुलझ नहीं पाई हैं.
अपने एक मित्र द्वारा उन्हें दी गई “बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के बीच अंतर को खत्म करने के लिए” काम करने की सलाह का ज़िक्र करते हुए, पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा कि वैचारिक रूप से तो ऐसा संभव था लेकिन वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं था.
इस संदर्भ में, उन्होंने कहा कि संविधान सभा ने 1946 में अल्पसंख्यकों पर एक उप-समिति की स्थापना की. अपनी अंतिम रिपोर्ट में, उप-समिति ने अलग सांप्रदायिक आरक्षण के खिलाफ मतदान किया. 22 नवंबर 1949 को तत्कालीन कांग्रेस नेता अजीत प्रसाद जैन ने कहा कि उपसमिति की रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया है कि अल्पसंख्यक का मुद्दा अब समाप्त हो गया है.
उन्होंने कहा कि, 25 नवंबर को सरदार पटेल ने कहा था कि “देश में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की वास्तविक और मज़बूत नींव रखने के लिए अल्पसंख्यक, बहुसंख्यकों की समझदारी और निष्पक्षता की भावना विश्वास में यकीन रखें और विश्वास रखने से बेहतर कुछ भी नहीं है. इसी तरह, बहुसंख्यकों को भी यह सोचना चाहिए कि अल्पसंख्यक क्या महसूस करते हैं.
श्री अंसारी ने कहा कि सरदार पटेल ने आशा व्यक्त की थी कि “दीर्घ काल में यह भूलना सभी के हित में होगा कि इस देश में बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक जैसा कुछ है भी और यह माना जाए कि भारत एक ही समुदाय है.”
अपने हँसमुख अंदाज़ में पूर्व वीपी ने कहा कि”तीन-चौथाई सदी के बाद, इतिहास इरादों और वास्तविकता पर अपना फैसला देता है.”
और हामिद अंसारी अपनी टिप्पणी में गलत नहीं हैं क्योंकि भारत बहुसंख्यकवादी राष्ट्रवाद का सामना कर रहा है. “यह स्थिति कई गुना बिगड़ जाती है जब यह बहुसंख्यकवाद, हिंदुत्व या हिंदू राष्ट्रवाद के रुप में स्थापित हो जाता है. इसे भारत के अंदर हिंदुओं और हिंदू धर्म का आधिपत्य स्थापित करने के लिए एक आंदोलन की वकालत करने वाली विचारधारा के रूप में माना जाता है.
इसे जनता में असुरक्षा की भावना के माध्यम से बढ़ावा दिया जाता है, जाति व्यवस्था का समर्थन करने वाले ‘संगठनों’ के माध्यम से इसे बढ़ावा दिया जाता है”. आगे उन्होंने कहा कि सामाजिक इतिहासकार बद्री नारायण ने इसे “हिंदुत्व का गणतंत्र” बताया है.
बीबीसी के पूर्व पत्रकार सतीश जैकब ने मीडिया और भारतीय मुसलमानों पर बोलते हुए कहा कि सिर्फ मुसलमान ही नहीं बल्कि मीडिया भी खतरे और धमकियों का सामना कर रहा है.
बोर्ड ऑफ इस्लामिक पब्लिकेशंस के अध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा, “पिछले 60 वर्षों में रेडियंस ने बेज़ुबान, दलित, वंचित और उत्पीड़ित लोगों की आवाज़ बनने और भारतीय समाज की सेवा करने की कोशिश की है. रेडियंस न्याय, सच्चाई, मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ-साथ आदिवासियों और अन्य कमज़ोर वर्गों के लिए भी आवाज़ उठाता रहा है.”
इससे पहले, प्रधान संपादक एजाज़ अहमद असलम ने अपने उद्घाटन भाषण में पिछले 60 वर्षों की रेडियंस की यात्रा पर प्रकाश डाला.
मुस्लिम विद्वान एजाज़ असलम ने पिछले छह दशकों में राष्ट्र और समाज के लिए रेडियंस की पत्रकारिता के योगदान पर प्रकाश डाला. इस अवसर पर 10 मिनट की एक लघु फिल्म भी दिखाई गई कि कैसे रेडियंस ने छह दशकों से अधिक की अपनी यात्रा में महत्वपूर्ण घटनाओं को कवर किया. रेडिएंस भारत और विदेशों में भी प्रसारित होता है.
इस अवसर पर, दिल्ली और अन्य स्थानों से प्रकाशित होने वाले चंडीगढ़ स्थित अंग्रेजी दैनिक द ट्रिब्यून के पूर्व उप संपादक सैयद नुरुज्ज़माँ , रेडियंस के पूर्व निदेशक इंतिज़ार नईम, द इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व विशेष संवाददाता सैयद खालिक अहमद और वरिष्ठ पत्रकार अब्दुल बारी मसूद को रेडियंस में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया. वयोवृद्ध पत्रकार आसिफ उमर आसिफ, जिन्होंने रेडिएंस के उप-संपादक के रूप में कई वर्षों तक सेवाएँ दी , को भी सम्मानित करने के लिए आमंत्रित किया गया था.
कार्यक्रम का संचालन बीआईपी सचिव सैयद तनवीर अहमद ने किया और धन्यवाद कथन रेडियंस व्यूज़वीकली के संपादक सिकंदर आज़म ने कहे.