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Saturday, April 27, 2024
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गाज़ा पर इज़राइली हमला: धार्मिक नेताओं ने भारत सरकार से नरसंहार को रोकने की अपील की

इंडिया टुमारो टीम

नई दिल्ली | फिलिस्तीन के लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए गुरुवार को दिल्ली में आयोजित एक कॉन्फ्रेंस में धार्मिक नेताओं, राजनेताओं, शिक्षाविदों और पत्रकारों ने भारत सरकार से फिलिस्तीनी क्षेत्रों में इज़राइली हमलों को तत्काल रोकने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने का आग्रह किया ताकि एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीन बन सके और सात दशक से अधिक पुराने फ़िलिस्तीनी संकट का स्थायी समाधान खोजा जा सके.

कॉन्फ्रेंस में एक प्रस्ताव भी पारित किया जिसमें कहा गया कि “फिलिस्तीनी इलाकों में इज़राइल द्वारा लगातार नई बस्तियां बनाना और अल-अक्सा मस्जिद को लगातार अपवित्र किया जाना और ऐसी अन्य आक्रामक नीतियां सभी प्रकार के अंतरराष्ट्रीय कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन हैं, और ये गतिविधियां क्षेत्र विशेष में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा हैं.

कॉन्फ्रेंस का आयोजन जमीयत उलमा-ए-हिंद (जेयूएच), जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) और जमीयत अहल-ए-हदीस द्वारा संयुक्त रूप से कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में किया गया था.

कॉन्फ्रेंस की दिशा निर्धारित करते हुए जेआईएच अध्यक्ष सैयद सदातुल्लाह हुसैनी ने कहा कि फिलिस्तीनियों को पचहत्तर वर्षों से लगातार अत्याचारों का सामना करना पड़ रहा है. जेआईएच अध्यक्ष ने हाल ही में इज़राइल द्वारा गाज़ा में एक ईसाई मिशनरी अस्पताल पर की गई बमबारी में हुई 500 से अधिक फिलिस्तीनी नागरिकों की हत्या का ज़िक्र किया, उस अस्पताल में सैकड़ों घायल लोगों का इलाज चल रहा था. जेआईएच अध्यक्ष ने कहा “फिलीस्तीनियों की ज़मीनें हड़प ली गई हैं, उनके इलाकों को ज़बरदस्ती खाली करा लिया गया, उनके घरों पर बमबारी की गई, महिलाओं और बच्चों को मार डाला गया, अस्पतालों को निशाना बनाया गया और यहां तक कि स्कूलों और संयुक्त राष्ट्र के आश्रयों को भी बमबारी में बख्शा नहीं गया है”

यह स्पष्ट करते हुए कि फ़िलिस्तीनी इज़राइल द्वारा की जा रही बर्बरता के रोज़ गवाह बन रहे हैं, उन्होंने कहा कि ” फिलीस्तीन के नागरिकों पर इस तरह के बड़े पैमाने पर किए जा रहे अत्याचारों पर चुप रहना मानवता के खिलाफ अपराध है.”

उन्होंने टिप्पणी की, “इज़राइल फ़िलिस्तीन में जो कर रहा है, वह सभ्य समाज के सभी मानवीय मूल्यों का पूर्ण उल्लंघन है.”

यह बताते हुए कि फिलिस्तीन की ज़मीन पर कब्ज़े का मुद्दा साम्राज्यवाद का प्रतीक है, जेआईएच प्रमुख ने कहा कि “जिस तरह के साम्राज्यवाद का सामना फिलिस्तीन के लोगों द्वारा किया जा रहा वो वैसा ही है जिसका अमेरिकी और भारतीय लोगों द्वारा सामना किया गया था. यह मानवाधिकार उल्लंघन का भी चरम स्तर है. किसी भी अन्य शक्ति ने किसी भी देश के मानवाधिकारों का उतना उल्लंघन नहीं किया है जितना इज़राइल ने फिलिस्तीनियों के साथ किया है. यहां तक कि तानाशाहों ने भी इस स्तर पर मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं किया है.”

जिस प्रकार भारतीयों ने भारत को ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के कब्ज़े से मुक्त कराने के लिए स्वतंत्रता संग्राम चलाया था, उसी प्रकार फिलिस्तीनी भी अपने देश को इज़राइली कब्ज़े से मुक्त कराने के लिए लड़ रहे हैं. क्यूंकि फिलिस्तीनियों पर इज़राइली सेनाएं रोज़ाना अत्याचार कर रही थीं और येरूशलेम में इस्लाम के तीसरे सबसे पवित्र स्थान मस्जिद अल-अक्सा में लगातार तोड़फोड़ कर रही थी, इसलिए फिलिस्तीनी लड़ाकों ने 7 अक्टूबर को इज़राइली क्षेत्रों के अंदर हमला शुरू कर दिया.

लेकिन इसके बाद जो इज़रायल की तरफ से जवाबी कार्रवाई हुई, वह नरसंहार के बराबर है. 7 अक्टूबर से इज़रायल द्वारा जारी हमलों में 1,000 बच्चों सहित 3500 से अधिक फ़िलिस्तीनी मारे गए हैं. इज़रायल ने अब गाज़ा और अन्य फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों को अवरुद्ध कर दिया है और फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों के अंदर मानवीय सहायता तक को जाने की अनुमति नहीं दे रहा है.

यह इंगित करते हुए कि इज़राइल नस्लभेद की नीति का पालन कर रहा है और फिलिस्तीनियों के नस्लीय अलगाव में शामिल है, जमात नेता ने कहा कि “फिलिस्तीनी लोगों का संघर्ष नेल्सन मंडेला के संघर्ष की तरह है.”

उन्होंने आगे टिप्पणी की, “वे सभी मूल्य, जिन पर आधुनिक दुनिया गर्व करती है, उनका फ़िलिस्तीन में उल्लंघन किया जा रहा है.”

उन्होंने कहा, ”यह दुर्भाग्य की बात है कि अमेरिका, यूरोप और अन्य पश्चिमी ताकतें जो मानवीय मूल्यों के ध्वजवाहक होने का दावा करते हैं, इस समय इज़राइल के साथ खड़े हैं. इन सभी का हाथ फ़िलिस्तीन में मानवाधिकार उल्लंघन में शामिल है. वे नस्लीय भेदभाव में शामिल हैं.”

हुसैनी ने विस्तार से अपने विचार रखते हुए कहा कि “फिलिस्तीन के मुद्दे ने पश्चिमी दुनिया के पाखंड को उजागर कर दिया है. इससे साबित हो गया है कि वे मानवाधिकार के ध्वजवाहक नहीं हैं. यदि वे सच्चे ध्वजवाहक होते तो अस्पतालों, स्कूलों और बच्चों पर बमबारी बर्दाश्त नहीं करते. यदि वे लोकतंत्र के सच्चे चैंपियन होते, तो वे फिलिस्तीन में लोकतांत्रिक मूल्यों के उल्लंघन को बर्दाश्त नहीं करते.”

“अगर पश्चिमी ताकतों ने नस्लभेद का विरोध किया होता तो फ़िलिस्तीन की स्थिति आज जैसी नहीं होती. फ़िलिस्तीन का मुद्दा पूरी मानवता के लिए एक परीक्षा है.”

जेआईएच अध्यक्ष ने आगे टिप्पणी की “हमारा देश (भारत) सदैव साम्राज्यवाद का विरोधी रहा है. हमारी आज़ादी की लड़ाई साम्राज्यवाद विरोध का एक उल्लेखनीय उदाहरण है. इसलिए हमें अपने देशवासियों को यह बताने की ज़रूरत है कि गांधीजी और नेहरूजी द्वारा किए गए संघर्ष को फिलिस्तीन के लोग आगे बढ़ा रहे हैं. रंगभेद और नस्लीय भेदभाव से छुटकारा पाने के लिए नेल्सन मंडेला द्वारा किया गया संघर्ष फ़िलिस्तीन के लोगों द्वारा जारी रखा जा रहा है. फिलिस्तीन के लोग बस उसी संघर्ष को आगे बढ़ा रहे हैं जो अमेरिका के लोगों ने अपनी आज़ादी के लिए किया था.”

सआदतुल्लाह हुसैनी ने सुझाव दिया, “अगर हमें मानवीय मूल्यों की रक्षा करनी है तो हमें फिलिस्तीन के लोगों के साथ खड़ा होना होगा और इज़राइल के अत्याचारों के खिलाफ ज़ोरदार आवाज़ उठानी होगी.” यह सिर्फ एक देश का मुद्दा नहीं है, बल्कि पूरी मानवता का मुद्दा है, और कहा कि यही कारण है कि भारत ने हमेशा फिलिस्तीन का समर्थन किया है.”

उन्होंने कहा कि गांधीजी कहा करते थे कि “फिलिस्तीन उसी प्रकार फिलिस्तीनियों का है, जैसे इंग्लैंड अंग्रेज़ लोगों का है.”

जमीयत अहल-ए-हदीस के अध्यक्ष मौलाना असगर अली इमाम महदी ने कहा कि अरबों के साथ भारत के संबंध बहुत पुराने रहे हैं. उन्होंने सुझाव दिया कि”अगर भारत अपनी भूमिका ठीक तरह से निभाए तो वह फिलिस्तीन के संकट में विश्व गुरु के रूप में अपनी भूमिका निभा सकता है.”

पूर्व राज्यसभा सांसद के सी त्यागी ने कहा कि जब 1948 में इज़राइल अस्तित्व में आया, तो उसका केवल छह प्रतिशत भूमि पर नियंत्रण था और बाकी जमीन फिलिस्तीनियों के पास थी. अब सिर्फ 7 फीसदी ज़मीन ही फिलिस्तीनियों के पास है.

के सी त्यागी ने आगे स्पष्ट किया “फिलिस्तीन में युद्ध अपराध हो रहे हैं जो पिछले सभी अपराधों से भी बढ़कर हैं. हम मानवता के ख़िलाफ़ किसी भी तरह की हिंसा के ख़िलाफ़ हैं. हम फ़िलिस्तीन में इज़रायल की बर्बरता के ख़िलाफ़ हैं. हिंसा और युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है.”

जेआईएच के उपाध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने कहा कि हमें फिलिस्तीन के मुद्दे पर हमारी चिंताओं और रुख का उल्लेख करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र को एक संयुक्त पत्र लिखना चाहिए.

उन्होंने सुझाव दिया “हमें एक प्रतिनिधिमंडल के रूप में भारतीय विदेश मंत्री से मिलकर यह बताने का प्रयास करना चाहिए कि भारत सरकार को फिलिस्तीन में हिंसा रोकने में अपनी भूमिका निभानी चाहिए.”

प्रो. सलीम ने फिलिस्तीन पर इज़राइली हमलों का इस्तेमाल देश में धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए किए जाने पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा, ”मैं यह नहीं कह रहा कि सरकार ऐसा कर रही है लेकिन इसे नज़रअंदाज़ करना भी कम खतरनाक नहीं है. तेल अवीव से भारतीय पत्रकार ऐसी रिपोर्टें भेज रहे हैं जिनका इस्तेमाल माहौल को सांप्रदायिक बनाने के लिए किया जा रहा है. वे हमारे माहौल को खराब कर रहे हैं. इसे रोकना सरकार की ज़िम्मेदारी है.”

कॉन्फ्रेंस में अपने विचार व्यक्त करने वाले अन्य लोगों में जेयूएच अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी, लोकसभा सांसद कुंवर दानिश अली, आर्य समाज नेता प्रोफेसर विट्ठल राव, प्रोफेसर आदित्य निगम, प्रोफेसर शशि शेखर सिंह और ईसाई नेता जॉन दयाल शामिल थे.

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