–मसीहुज़्ज़मा अंसारी
नई दिल्ली | इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर, नई दिल्ली में रविवार को आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की लीगल टीम द्वारा एक लीगल वेबसाइट जर्नल ऑफ लॉ एंड रिलीजियस अफेयर्स लॉन्च की गई जिसका उद्घाटन बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना ख़ालिद सैफुल्लाह रहमानी ने किया.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एडवोकेट एम. आर. शमशाद ने वेबसाइट की एडिटोरियल टीम का परिचय कराते हुए इसके उद्देश्य पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने बात करते हुए कहा कि बहुत से कोर्ट के फैसले जिसे आम लोगों को समझना मुश्किल होता है उसे हमारी टीम आसान भाषा में प्रकाशित करेगी ताकि आम लोग इसे समझ सकें. इसमें प्रकाशित कंटेंट में क़ानूनी पहलुओं के साथ-साथ धार्मिक दृष्टिकोण भी शामिल होगा.
इस कार्यक्रम में आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना ख़ालिद सैफुल्लाह रहमानी ने बोर्ड ऑफ एडिटर्स को कई सुझाव भी प्रस्तुत किए और ख़ासकर मुस्लिम महिलाओं से जुड़े क़ानूनी मुद्दों पर बहस को सही क़ानूनी रुख़ देने के लिए सम्बंधित लेख प्रकाशित करने पर ज़ोर दिया.
इस लीगल वेबसाइट, जर्नल ऑफ लॉ एंड रिलीजियस अफेयर्स के बोर्ड ऑफ एडिटर्स के सदस्य एडवोकेट एम. आर. शमशाद हैं और बोर्ड में उनकी टीम के अन्य सदस्य डॉ. मोहम्मद उमर, डॉ. निज़ामुद्दीन अहमद सिद्दीक़ी, डॉ. सादिया सुलेमान, मोमिन मुसद्दिक़ और नबीला जमील शामिल हैं.
इस अवसर पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. क़ासिम रसूल इलियास ने कहा कि, इस वेबसाइट में कोर्ट के फैसले या शरीयत से सम्बंधित क़ानून पर मीडिया में जो बहस होती है उसमें पर्सनल लॉ बोर्ड का एकेडमिक रिप्लाई होगा. इसके लिए एक लॉ जर्नल दो वर्षों से पब्लिश हो रहा था लेकिन आम जन तक इसकी पहुंच को ध्यान में रखते हुए इसकी बकाएदा एक वेबसाइट लॉन्च की गई है.
उन्होंने कहा कि अभी यह वेबसाइट अंग्रेज़ी और हिंदी में है लेकिन इसे क्षेत्रीय भाषाओँ में भी पब्लिश करने का प्रयास करेंगे.
डॉ. क़ासिम रसूल इलियास ने कहा कि, इस वेबसाइट के माध्यम से हम सिर्फ अदालत के फैसले पर ही फोकस नहीं करेंगे कि यह शरीयत के अनुसार है या नहीं है बल्कि इसके साथ-साथ हमारा प्रयास यह भी है कि दुनियाभर में अदालतों के बहुत से फैसले होते हैं जिसकी एकेडमिक महत्त्व होता है, उसे भी प्रकशित करने की कोशिश करेंगे.
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना ख़ालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि, पैगंबर हज़रत मोहम्मद ﷺ ने अपने अंतिम भाषण में कई महत्वपूर्ण बातें कहीं थीं उनमें से एक बात ख़ासकर महिला अधिकारों को लेकर थीं. उन्होंने कहा था, “औरतों के मामले में अल्लाह से डरो….” इसी प्रकार यह वेबसाइट जिस प्रकार अदालतों के फैसले पर इस्लामी दृष्टिकोण से एकेडमिक प्रतिक्रिया देगी साथ ही महिलाओं के अधिकारों को प्राथमिकता के आधार पर दुनिया के सामने रखा जाए.
उन्होंने कहा कि इस वेबसाइट को यह प्रयास भी करना है कि, क़ानून में जो महिलाओं को अधिकार दिया गया है वो उन्हें कैसे मिले और साथ ही शरीयत में उन्हें जो अधिकार दिया है जिसे बहुत से लोग नहीं जानते या गलतफहमी के शिकार हैं उनकी गलतफहमियों को दूर करना है और जो लोग इन अधिकारों से परिचित नहीं हैं उन्हें बताना है. हमारा यह कर्तव्य है कि सच्चाई के साथ इन बातों को लोगों तक पहुंचाएं.
बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना ख़ालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि, अगर आप मीडिया की बात पर गौर करें तो ऐसा लगता है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मर्दों का तरफदार संगठन है लेकिन अगर आप इसके इतिहास को देखें तो पता चलेगा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने महिला अधिकारों के लिए बहुत से महत्वपूर्ण क़दम उठाए हैं जिन्हें मीडिया में प्राथमिकता नहीं मिलती.
उन्होंने कहा कि, 1937 में शरीयत एप्लीकेशन एक्ट क्यों पास हुआ? जब एक बेटी को उसके बाप की संपत्ति से हिस्सा नहीं दिया गया तो उस समय की मुंबई कोर्ट में यह मुक़दमा गया. कस्टम को शरीयत पर तरजीह देते हुए यह कहा गया कि अगर इस्लाम में बेटी संपत्ति की हक़दार होती है लेकिन ख़ानदान का रिवाज़ ऐसा नहीं कहता इसलिए लड़की का दावा सुनने योग्य नहीं है. उसी बैकग्राउंड में मुस्लिम उलेमा और संगठनों ने इसका खंडन करते हुए जो प्रयास किया उसके बाद शरीयत एप्प्लिकेशन एक्ट पास हुआ.
मौलाना ने कहा कि, इसी प्रकार 1939 में फस्क निकाह पर क़ानून पास हुआ. यह क़ानून भी महिलाओं के अधिकार को विस्तार दिया.
मौलाना ने कई उदाहरण देते हुए कहा कि इस्लाम ने मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाते हुए बहुत से अधिकार दिए हैं जो दुनिया में किसी और विचारधारा में औरतों को नहीं मिला है लेकिन जागरूकता की कमी और शरीयत को आम मुसलमानों की समझ से दूरी के कारण मुस्लिम समाज में बहुत सी गलतफहमियां पाई जाती हैं जिसे दूर करने की ज़रूरत है और यह लीगल वेबसाइट उसी की तरफ एक महत्वपूर्ण क़दम है.
बोर्ड ऑफ़ एडिटर्स की सदस्य नबीला जमील ने इंडिया टुमारो से बात करते हुए कहा कि, इसके पीछे हमारा उद्देश्य यह है कि कोर्ट की भाषा जो आम ज़बान से काफी अलग है, उसे लोगों के समझने योग्य बनाने के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यह सोचा कि एक ऐसा प्लेटफोर्म होना चाहिए जहाँ पर क़ानूनी बहस का सारांश अंग्रेज़ी में भी मिल जाये और उर्दू में भी उपलब्ध हो.
नबीला ने बताया कि, 2021 से इसपर काम हो रहा और इस से पहले इस लॉ जर्नल का दो अंक प्रकाशित हो चुका है अब ये तीसरा अंक है जो ऑनलाइन प्रकाशित हुआ है. हम आगे इसे क्षेत्रीय भाषाओँ में भी प्रकाशित करेंगे.
उन्होंने कहा कि वर्तमान में बहुत सी लीगल वेबसाइट हैं जो कोर्ट के फैसलों को विस्तार से अलग-अलग भाषाओँ में प्रकाशित करती हैं लेकिन हमारा प्रयास उस से अलग इस प्रकार है कि इसे कम्युनिटी के नज़रिए से हम प्रकाशित करेंगे. यह केवल मुसलमानों का मसला नहीं है. दलित यह कहते हैं कि उनके दृष्टिकोण से कंटेंट नहीं मिलता है, हाशिए के समुदाय को भी यह शिकायत होती है, महिलाएं यह कहती हैं कि उनके नाज़रिये से कंटेंट नहीं आता तो उस दृष्टिकोण को लाने के लिए एक ऐसा कंटेंट हो जहां फिक्ही नज़रिया भी हो और क़ानूनी दृष्टिकोण भी हो.
नबीला ने बताया कि, इस से विभिन्न लोगों को कई पहलुओं से फायेदा पहुंचेगा. चाहे वह वकील हों, क़ानून के छात्र हों और चाहे उलेमा हों सभी के लिए आसान भाषा में कंटेंट इस वेबसाइट पर उपलब्ध होगा.
बोर्ड ऑफ़ एडिटर्स के सदस्य और प्रोफ़ेसर डॉ उमर ने भी इस वेबसाइट के महत्व पर विस्तार से बात की और कई महत्वपूर्ण लेखों के संपादन में बोर्ड के सदस्यों की मेहनत का भी ज़िक्र किया. उन्होंने बताया कि यदि कोई इस वेबसाइट पर एकेडमिक दृष्टिकोण से लीगल बिन्दुओं पर लेख प्रकशित कर सहयोग करना चाहे तो उसका भी स्वागत है.
कार्यक्रम में अंत में पर्सनल लॉ बोर्ड के सह प्रवक्ता कमाल फारूकी ने सभी का आभार व्यक्त किया.