ख़ान इक़बाल | इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | मंगलवार को दिल्ली पुलिस की उस विशेष याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया, जिसमें दिल्ली दंगों की साज़िश मामले में स्टूडेंट एक्टिविस्ट देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दी गई ज़मानत को चुनौती दी गई थी.
दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा छात्र नेताओं को दी गई बेल के ख़िलाफ़ दिल्ली पुलिस द्वारा दायर की गई विशेष याचिका को उच्चतम न्यायलय ने ख़ारिज कर दिया. इन छात्र नेताओं में आसिफ़ इक़बाल तन्हा, देवांगना कलिता और नताशा नरवाल शामिल हैं.
यूएपीए के तहत जेल में बंद तीनों छात्र कार्यकर्ताओं को जून 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने ज़मानत दी थी. दिल्ली पुलिस इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुँची थी.
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने दिल्ली पुलिस की अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि तीनों छात्र करीब दो साल से ज़मानत पर हैं.
अदालत ने कहा कि, “हमें इस मामले को ज़िन्दा रखने का कोई कारण नज़र नहीं आता”.
ज्ञात हो कि, तीनों छात्र कार्यकताओं को फ़रवरी 2020 में दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाक़े में हुए दंगों की “व्यापक साज़िश” रचने आरोप में दिल्ली पुलिस ने गिरफ़्तार किया था. बाद में UAPA के तहत इन पर मुक़दमा चला था.
ग़ौरतलब है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम के समर्थकों और इसका विरोध करने वालों के बीच फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में झड़पें हुईं, जिसमें कम से कम 53 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए थे. हिंसा में मारे गए लोगों में ज़्यादातर मुसलमान थे.
उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले पर इंडिया टुमारो बात करते हुए आसिफ़ इक़बाल तन्हा कहते हैं, “यह दिल्ली पुलिस का फेलियर है, सब जानते हैं कि हमें जान बूझ कर ग़लत तरीक़े से फँसाया गया था, दंगों के वास्तविक आरोपियों को पकड़ने में दिल्ली पुलिस असफ़ल रही है”.
आसिफ ने कहा, “नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध शांतिपूर्ण तरीक़े से किया गया, उसका विरोध करने वालों ने जामिया के छात्रों पर गोलियाँ चलाईं, सबने देखा, लेकिन दिल्ली पुलिस ने उल्टा CAA-NRC का विरोध कर रहे लोगों को ही दंगों का आरोपी बना दिया.”
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने 2020 के दिल्ली दंगों के एक मामले में तीन छात्र कार्यकर्ताओं को ज़मानत के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि, अदालत अनावश्यक रूप से लोगों को सलाखों के पीछे रखने में विश्वास नहीं करती है.
न्यायमूर्ति कौल ने कहा था कि, मामले में ज़मानत याचिकाओं पर सुनवाई में घंटों बिताना दिल्ली उच्च न्यायालय के समय की “पूरी तरह बर्बादी” है.