अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | कर्नाटक में 4 फीसदी मुस्लिमों के आरक्षण को राज्य की बसवराज बोम्मई सरकार द्वारा रद्द करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है और कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि कर्नाटक सरकार का फैसला प्रथम दृष्टया भ्रामक, अस्थिर और त्रुटिपूर्ण है।
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को यह फटकार मुस्लिमों के 4 फीसदी आरक्षण को राज्य की भाजपा सरकार द्वारा रद्द कर दिए जाने के फैसले के खिलाफ याचिका की सुनवाई करते हुए लगाई है।
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राज्य की भाजपा सरकार ने पिछले महीने मार्च में मुस्लिमों के 4 फीसदी आरक्षण को रद्द कर दिया था। मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने यह फैसला राज्य में भाजपा को जिताने के लिए लिया था।
भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री ने मुसलमानों के 4 फीसदी आरक्षण को खत्म करते हुए सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की 2 नई श्रेणी की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने ओबीसी मुसलमानों के 4 फीसदी आरक्षण को वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों के बीच बांट दिया था।
यही नहीं आरक्षण के लिए पात्र मुसलमानों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के तहत वर्गीकृत कर दिया गया है। कर्नाटक सरकार के इस फैसले के बाद अब राज्य में आरक्षण की सीमा 57 प्रतिशत हो गई है।
राज्य सरकार का यह फैसला पूरी तरह से राजनीतिक है और इसके जरिए राज्य सरकार ने वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों के वोट लेने और राज्य में एक बार फिर से भाजपा की सरकार बनाने के लिए इस तरह का फैसला किया है।
कर्नाटक सरकार के इस फैसले के बाद देश के गृह मंत्री अमित शाह राज्य के दौरे पर गए थे और उन्होंने राज्य सरकार के फैसले को सही बताते हुए मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की पीठ थपथपाई थी।
अमित शाह ने बीदर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि, “संविधान में धार्मिक आधार पर आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है।”
गृह मंत्री अमित शाह ने इस तरह की बात कहकर कर्नाटक सरकार के 4 फीसदी मुस्लिमों के आरक्षण को रद्द करने के फैसले को सही ठहराने का प्रयास किया था। लेकिन बाद में कर्नाटक सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी गई।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 13 अप्रैल 2023 को हुई। इस मामले की सुनवाई जस्टिस के एम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ में हुई। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कर्नाटक सरकार को कड़ी फटकार लगाई।
जस्टिस के एम जोसेफ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि, “राज्य में मुसलमानों के लिए 4 फीसदी ओबीसी आरक्षण खत्म करने का कर्नाटक सरकार का फैसला प्रथम दृष्टया, “भ्रामक, अस्थिर और त्रुटिपूर्ण है।”
इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस पर कड़ी टिप्पणी की। पीठ ने इसकी सुनवाई करते हुए शुरुआत में कर्नाटक सरकार के आदेश पर रोक लगाने की इच्छा जाहिर की थी।
इसकी सुनवाई करते हुए जस्टिस के एम जोसेफ ने मौखिक तौर पर कहा कि, “यह जाहिर तौर पर पिछड़ा वर्ग के लिए कर्नाटक राज्य आयोग की एक अंतरिम रिपोर्ट पर आधारित है। फैसले से पहले राज्य को अंतिम रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए था।”
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी के चलते कर्नाटक सरकार को पीठ को यह आश्वासन देने के लिए मजबूर होना पड़ा कि अगली सुनवाई तक नई नीति के आधार पर कोई भी दाखिला या नौकरी में भर्ती नहीं की जाएगी। इसके बाद पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कर्नाटक राज्य समेत अन्य प्रतिवादियों को 17 अप्रैल तक इस मामले में अपना हलफनामा दायर करने के लिए कहा।
इसी के साथ इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 18 अप्रैल की तारीख निर्धारित कर दी।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष (याचिकाकर्ताओं) की ओर से वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे और कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि, “कर्नाटक विधानसभा चुनाव की घोषणा के 2 दिन पहले यह सरकारी आदेश जारी किया गया।”
दुष्यंत दवे ने कहा कि, “मुस्लिम कर्नाटक में एक पिछड़ा समुदाय है और वे आरक्षण के हकदार हैं। अल्पसंख्यक समुदाय को अदालत के संरक्षण की जरूरत है। आरक्षण कोई उदारता नहीं है, यह एक अधिकार है।”
इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पीठ के सामने पेश हुए। उन्होंने पीठ से इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा।
वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय की ओर वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी पेश हुए। उन्होंने पीठ के सामने तर्क देते हुए कहा कि, “मामला केवल आरक्षण को रद्द करने से संबंधित नहीं है, बल्कि एक अलग समुदाय के लिए आरक्षण के आवंटन से भी संबंधित है।”
कर्नाटक सरकार द्वारा मुसलमानों को मिलने वाले 4 फीसदी आरक्षण को रद्द करने संबंधी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बसवराज बोम्मई सरकार को कड़ी फटकार लगाने से राज्य सरकार को तगड़ा झटका लगा है।
राज्य में भाजपा को दोबारा सत्ता में बैठाने के लिए मुस्लिमों के आरक्षण को रद्द करने का कर्नाटक सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद अब राज्य सरकार पर भारी पड़ रहा है और राज्य में विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिताने का सपना टूटता नजर आ रहा है।