– ख़ान इक़बाल
नई दिल्ली | पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा की 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए आज गुरुवार को शाम चार बजे मतदान समाप्त हो गया. सीमावर्ती राज्य में 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए हो रहे चुनाव में 28 लाख से अधिक मतदाता रजिस्टर थे. चुनाव आयोग के मुताबिक़ शाम चार बजे तक 81 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मतों का प्रयोग किया. वोटों की गिनती 2 मार्च को होगी.
चुनाव आयोग ने गुरुवार को कहा की व्यापक तौर मतदान शांति पूर्ण ढंग से निपट गया. मतदान के दौरान किसी बड़ी हिंसा की कोई ख़बर नहीं है और ना ही कहीं से किसी मतदान केंद्र पर दोबारा चुनाव करवाने की कोई माँग अब तक चुनाव आयोग से की गई है. .
हालांकि, समाचार एजेंसी एएनआई की ख़बर के मुताबिक़ सिपाहीजाला जिले के बॉक्सानगर इलाके में अज्ञात लोगों द्वारा हमला किए जाने के बाद माकपा की लोकल कमेटी के सचिव घायल हो गए. गोमती जिले के ककराबन विधानसभा क्षेत्र में भी माकपा के दो पोलिंग एजेंटों की बुरी तरह पिटाई की गई.
त्रिपुरा चुनाव में वर्तमान में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उसकी सहयोगी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी), कांग्रेस-सीपीआई (एम) गठबंधन,अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और टिपरा मोथा, ये 6 दल 60 सदस्यी विधानसभा में बहुमत हासिल करने के लिए चुनावी रण में मौजूद हैं.
बीजेपी और उसकी सहयोगी आईपीएफटी क्रमशः 55 और 5 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. टिपरा मोथा अकेले चुनावी मैदान में है और उन्होंने त्रिपुरा की 60 में से 42 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया.
सीपीआई (एम) 43 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और इसके वाम मोर्चा सहयोगी फॉरवर्ड ब्लॉक, आरएसपी और सीपीआई एक-एक सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस 13 सीटों पर तो वहीं तृणमूल कांग्रेस 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि 58 निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में हैं.
2018 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने साठ में से छत्तीस सीटें जीतकर त्रिपुरा में सरकार बनायी थी. इसी के साथ CPI(M) का 30 साल लंबा शासन ख़त्म हो गया था जिसे केवल 16 सीटें मिलीं थीं.
2018 से पहले भाजपा का त्रिपुरा में नाम तक नहीं था, बीजेपी अपने सहयोगी दल आईपीएफटी के साथ चुनावी मैदान में थी और आईपीएफटी को आठ सीटें मिलने के बाद भी भाजपा ने आईपीएफटी साथ गठबंधन की सरकार बनाई.
इस बार की विधानसभा चुनाव में CPI(M) और कांग्रेस एक साथ चुनाव लड़ रहे हैं, पिछली बार एक भी सीट नहीं जीतने वाली कांग्रेस को गठबंधन की 13 सीटें दी गई है. CPI(M) – कांग्रेस गठबंधन के प्रचार की कमान चार बार के मुख्यमंत्री रहे माणिक सरकार संभाल रहे हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प है कि क्या वाम दल और कांग्रेस 2018 में खोई हुई ज़मीन वापस हासिल कर पाते हैं या नहीं.
त्रिपुरा में आदिवासी मतदाता हमेशा महत्वपूर्ण रहा है, 60 में से 20 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित है एक समय त्रिपुरा में आदिवासी समुदाय बहुसंख्यक हुआ करता था लेकिन 2011 की जनगणना के अनुसार यह कुल जनसंख्या का सिर्फ़ 31 प्रतिशत रह गया.
आदिवासियों की घटती जनसंख्या और बंगाली हिंदुओं के त्रिपुरा में माइग्रेशन ने राज्य में दोनों समुदायों के बीच खींचतान का माहौल बनाया. त्रिपुरा में पिछले सालों में कई हिंसक झड़पें देखने को मिलीं.
इस बार आदिवासी समुदाय की उम्मीदों का प्रतिनिधित्व एक नयी पार्टी टिपरा मोथा कर रही है. त्रिपुरा के अंतिम राजा के बेटे प्रद्योत बिक्रम माणिक्या के नेतृत्व में बनी इस पार्टी की प्रमुख माँग नये आदिवासी राज्य ग्रेटर टिपरालैंड की माँग है.
टिपरा मोथा ने इस बार 42 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. पार्टी का दावा है कि वो 30 सीटें जीत रहे हैं और उनके बिना राज्य में सरकार नहीं बन सकती. हालाँकि 42 में से 24 पर टिपरा मोथा, बीजेपी और कांग्रेस- CPI(M) के साथ त्रिकोणीय मुक़ाबले में है. इस लिए यह विधान सभा चुनाव बेहद रोचक हो गया है.
वहीं बीजेपी यह मानकर चल रही है की टिपरा मोथा जैसे आदिवासी पार्टी के मज़बूत प्रचार अभियान से बंगाली हिंदू मतदाता उसकी तरफ़ झुकेगा. लेकिन ऐतिहासिक तौर पर कांग्रेस- CPI(M) के साथ रहा बंगाली समुदाय किस तरफ़ जाता है यह देखना महत्वपूर्ण है. दूसरी और 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही तृणमूल कांग्रेस की नज़र भी बंगाली समुदाय के मतदाताओं पर है.