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Monday, April 29, 2024
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मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वे का आदेश

अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो

लखनऊ | मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि से लगी हुई शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वे किया जाएगा। इस सर्वे का आदेश सीनियर डिवीजन सिविल जज सोनिका वर्मा ने हिन्दू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता और उपाध्यक्ष सुरजीत सिंह यादव द्वारा दायर की गई एक याचिका पर दिया है।

विगत 8 दिसंबर को दिल्ली के रहने वाले हिन्दू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता और उपाध्यक्ष सुरजीत सिंह यादव ने मथुरा के सीनियर डिवीजन सिविल जज तृतीय सोनिका वर्मा की अदालत में एक याचिका दायर की थी, जिसमें कहा था कि, श्रीकृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ ज़मीन पर मंदिर तोड़कर औरंगज़ेब द्वारा ईदगाह तैयार कराई गई थी।

उन्होंने इस संबंध में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर मंदिर बनने तक का पूरा इतिहास अदालत के समक्ष पेश किया था। इसके साथ ही उन्होंने वर्ष 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ बनाम शाही मस्जिद ईदगाह बीच हुए समझौते को भी चुनौती दी थी। 8 दिसंबर को अदालत के सामने उन्होंने पूरा मामला रखा था।

अदालत ने उसी दिन इस मामले को दर्ज कर लिया था और अमीन को इस संबंध में रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था। इस मामले की 22 दिसंबर को अदालत में सुनवाई होनी थी, लेकिन सुनवाई नहीं हो सकी। अब अमीन को 20 जनवरी तक इस मामले की सर्वे रिपोर्ट पेश करने के लिए अदालत ने आदेश दिया है।

सीनियर डिवीजन सिविल जज सोनिका वर्मा ने इस संबंध में अमीन को इसके सर्वे का आदेश दिया है और इस सर्वे को 2 जनवरी से करने के लिए कहा है। इसके पश्चात इस सर्वे रिपोर्ट को मय नक्शा समेत 20 जनवरी तक हर हाल में कोर्ट में पेश करने के लिए कहा है।

याचिकाकर्ता हिन्दू पक्ष की ओर यह दावा किया गया है कि शाही ईदगाह मस्जिद में हिन्दू प्रतीक स्वास्तिक का चिन्ह, मंदिर होने के प्रतीक के साथ मस्जिद के नीचे भगवान का गर्भ गृह है। ईदगाह के नीचे हिन्दू स्थापत्य कला के सबूत मौजूद हैं। वैज्ञानिक सर्वे के बाद ये सामने आ जाएंगे।

अदालत ने हिन्दू पक्ष की याचिका में इस दावे को देखकर शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया है। अदालत ने विवादित स्थल की सर्वे रिपोर्ट मय नक्शा समेत अमीन को अदालत में पेश करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही अदालत ने इस मामले से जुड़े सभी पक्षों को नोटिस भी जारी किया है।

अदालत ने 2 जनवरी को मथुरा में श्रीकृष्ण जन्म स्थान के पास बनी शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वे करने और सर्वे रिपोर्ट मय नक्शा अदालत में पेश करने के लिए अमीन को आदेश दिया है। अमीन राजस्व विभाग से संबंधित होते हैं और इनके पास जमीन का सारा रिकॉर्ड उपलब्ध होता है। यह अमीन ही अदालत के आदेश के क्रम में मौजूद भू -रिकॉर्ड के अनुसार शाही ईदगाह मस्जिद का निरीक्षण करेंगे। वह सर्वे रिपोर्ट को अदालत के सामने निर्धारित समय में पेश करेंगे।

बताया जाता है कि सर्वे में अमीन 13.37 एकड़ जमीन का भी सर्वे करेंगे। सर्वे रिपोर्ट अदालत में पेश किए जाने के बाद इस मामले की फिर सुनवाई होगी।

हिंदू पक्ष के समर्थकों द्वारा शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वे किए जाने के अदालत के आदेश के संबंध में अति उत्साह में यह कहा जा रहा है कि वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद की तरह ही मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वे किया जाएगा। जबकि अदालत ने केवल अमीन को सर्वे करने के लिए आदेश दिया है। इसलिए जब तक अमीन इसका सर्वे कर अपनी रिपोर्ट अदालत में पेश न करे और अदालत उस पर सुनवाई कर अपना फैसला न सुनाए, तब तक इस मामले में निश्चित तौर पर कुछ कहना अभी जल्दबाजी होगी।

क्या है पूरा मामला?

मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद का पूरा विवाद इस तरह है। मथुरा में 13.37 एकड़ ज़मीन को लेकर विवाद है, इसमें से लगभग 11 एकड़ ज़मीन पर श्रीकृष्ण जन्म स्थान मंदिर बना हुआ है। शेष 2.37 एकड़ ज़मीन पर शाही ईदगाह मस्जिद है। अदालत में दायर याचिका में शाही ईदगाह मस्जिद को हटाकर वह ज़मीन हिन्दू पक्ष को देने की मांग की गई है। इसके साथ ही 1968 में ज़मीन को लेकर हुए समझौते को रद्द करने की मांग की गई है।

यहां पर यह ज्ञात हो कि मथुरा में अदालत में श्रीकृष्ण जन्म स्थान और शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर लगभग 12 मामले चल रहे हैं। इन सभी मामलों में 13.37 एकड़ भूमि को मुक्त करने की मांग की गई है। जबकि 11 एकड़ ज़मीन पर श्रीकृष्ण जन्म स्थान मंदिर पहले से ही बना हुआ है।

मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद श्रीकृष्ण जन्म स्थान मंदिर परिसर से लगी हुई है। इस स्थान को हिन्दू भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि के रूप में मानते हैं। हिन्दू पक्ष का कहना है कि मुगल शासक औरंगजेब ने इस स्थान पर बने प्राचीन केशव नाथ मंदिर को तोड़कर 1669-70 में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था।

1935 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 13.37 एकड़ विवादित भूमि को बनारस के राजा कृष्ण दास को एलॉट कर दिया था। 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने यह भूमि अधिग्रहित कर ली थी। यह ट्रस्ट 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और 1977 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के नाम से रजिस्टर्ड हुआ।

1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह कमेटी के बीच हुए समझौते में इस 13.37 एकड़ जमीन का स्वामित्व ट्रस्ट को मिला और ईदगाह मस्जिद का मैनेजमेंट कमेटी को दे दिया गया। अब हिन्दू पक्ष इसी समझौते को अवैध बताकर इसको रद्द करने की मांग कर रहा है। हिंदू पक्ष के वकील शैलेश दुबे अब इसी समझौते को अवैध बताकर इसको रद्द करने की मांग अदालत से कर रहे हैं।

मथुरा में सीनियर डिवीजन सिविल जज सोनिका वर्मा की अदालत में अमीन सर्वे की रिपोर्ट पेश होने के बाद अदालत द्वारा इस मामले की सुनवाई कर इस पर निर्णय दिए जाने तक इस पर कोई टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी। अभी अदालत ने केवल अमीन को शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया है। बाकी बातें हिंदू पक्ष द्वारा अति उत्साह में बढ़ा-चढ़ा कर कही जा रही हैं।

पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 का उल्लंघन

देश में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 बनाया गया था और इसके अंतर्गत यह व्यवस्था की गई थी कि 15 अगस्त 1947 को मौजूद धार्मिक स्थलों की स्थिति में किसी तरह का बदलाव नहीं किया जाएगा यानि इनकी यथास्थिति को बदलने के लिए कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की जाएगी। लेकिन देखने में यह आ रहा है कि निचली अदालतों द्वारा देश की संसद द्वारा बनाए गए इस कानून का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है।

निचली अदालतों द्वारा इस तरह से काम करके देश की संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाने का काम किया जा रहा है। निचली अदालतों के इस प्रकार के काम करने से देश की संसद की गरिमा ही नहीं गिर रही है बल्कि देश की संसद द्वारा बनाए गए कानून का अपमान हो रहा है।

निचली अदालतों द्वारा यदि संसद से पारित अधिनियम के कानून बनने पर उसका पालन नहीं किया जाएगा, तो देश की संसद के औचित्य पर सवालिया निशान लगता है। निचली अदालतों का यह मनमानापन देश में कानून के राज का खुला उल्लंघन है।

वाराणसी और मथुरा के मामलों में निचली अदालतों द्वारा सुनाए जाने वाले निर्णय पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 का खुला उल्लंघन है। अब समय आ गया है, जब देश की संसद को यह तय करना होगा कि देश की संसद बड़ी है या निचली अदालतें।

मथुरा की अदालत द्वारा शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वे का आदेश देश की संसद का अपमान है, क्योंकि निचली अदालत ने अपनी सीमा का उल्लंघन कर आदेश दिया है।

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