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Monday, April 29, 2024
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यूपी विधानसभा चुनाव और मोदी कैबिनेट विस्तार, कितनी आसान होगी भाजपा की राह

यूपी में कोरोना कॉल में कोरोना संक्रमित रोगियों को दवाओं की कमी, बेडों की कमी, ऑक्सीजन की कमी, वेंटीलेटर की कमी और एम्बुलेंस की कमी से जूझना पड़ा। इनके अभाव में कोरोना रोगियों की मौतें हो गईं। कोरोना से मृत लोगों के परिजनों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। आज भी मृतकों के जिक्र होने पर उनके परिजनों की आंखों में आंसू छलक पड़ते हैं। कोरोना के चलते लोगों की नौकरी चली गई, लोग बेरोज़गार हो गए हैं और काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो

लखनऊ | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी विधानसभा चुनाव मिशन 2022 को ध्यान में रखकर अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया है। पीएम मोदी ने यूपी की सत्ता पर कब्जा करने के लिए बड़ा दांव चला है। जबकि यूपी की सत्ता तक पहुंचने की राह आसान नहीं है। कोरोना के चलते केंद्र सरकार की छवि जनता की नजर में खराब हो गई है, क्योंकि मोदी सरकार कोरोना को नियंत्रित करने में असफल रही है। केंद्र सरकार की असफलता के कारण देश में कोरोना के कारण काफी लोगों की मौतें हो गई हैं।

देश में जब कोरोना की लहर थी, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार देश में हो रहे 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में व्यस्त थे और भाजपा की सरकार बनाने के लिए चुनाव रैली कर रहे थे। वे जनता की हिफाज़त करने के बजाए राजनीतिक फायदे के लिए जोड़तोड़ करते रहे। इसी दौरान कोरोना महामारी के चलते देश में भारी संख्या में लोगों की मौत हो गई। कोरोना में लोगों ने अपने परिजनों को खो दिया।

यूपी में कोरोना कॉल में कोरोना संक्रमित रोगियों को दवाओं की कमी, बेडों की कमी, ऑक्सीजन की कमी, वेंटीलेटर की कमी और एम्बुलेंस की कमी से जूझना पड़ा। इनके अभाव में कोरोना रोगियों की मौतें हो गईं। कोरोना से मृत लोगों के परिजनों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। आज भी मृतकों के जिक्र होने पर उनके परिजनों की आंखों में आंसू छलक पड़ते हैं। कोरोना के चलते लोगों की नौकरी चली गई, लोग बेरोज़गार हो गए हैं और काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

मोदी सरकार ने पहले ही लोगों को बेरोज़गार बना रखा है। युवाओं को रोज़गार नहीं मिल रहा है। देश में मंहगाई अपने चरम पर है। सरकार का मंहगाई के ऊपर कोई नियंत्रण नहीं है। लोगों को बड़ी ही कठिनाई के दौर से गुज़रना पड़ रहा है। लेकिन मोदी सरकार को जनता की नहीं केवल अपनी चिंता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जनता की नाराज़गी का अभाष है और उन्हें लग रहा है कि अब उनकी सत्ता चली जायेगी और 2024 में केंद्र सरकार में उनकी वापसी नहीं होगी।

नरेंद्र मोदी की सरकार की 2024 में वापसी के लिए आरएसएस से लेकर भाजपा तक ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगाये हुए है। चूंकि बगैर यूपी फतह किए हुए केंद्र की सत्ता तक नहीं पहुंचा जा सकता है, इसीलिए भाजपा हर हाल में 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव जीतना चाहती है और इसके लिए भाजपा कसरत करने में जुटी हुई है। यूपी फतह करने के लिए ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी में सरकार बनाने के लिए अपने मंत्रिमंडल में जातीय समीकरण का खास ध्यान रखा है। उन्होंने जातीय समीकरण के ज़रिए राजनीतिक समीकरण साधने का काम किया है। अब केंद्र सरकार में फेरबदल के बाद यूपी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 15 मंत्री हो गए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रिमंडल में बदलाव करते समय यूपी विधानसभा चुनाव का ध्यान रखा है। राज्य में 2022 के विधानसभा चुनाव में सफलता प्राप्त करने के लिए चुनावी गणित का ध्यान रखा गया है। मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में हुए बदलाव पर इसकी स्पष्ट छाप दिखाई देती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार अपने मंत्रिमंडल में यूपी से 7 मंत्री बनाए हैं। नए बने हुए मंत्री में पहला नाम हरदीप पुरी का है। हरदीप पुरी को प्रमोट करके राज्यमंत्री से कैबिनेट मंत्री बना दिया गया है। हरदीप पुरी यूपी से राज्यसभा सदस्य हैं। इन्हें इस बार पेट्रोलियम मंत्री बनाया गया है। भाजपा ने इन्हें कैबिनेट मंत्री बनाकर सिख समाज के वोटरों को अपने साथ लाने का प्लान तैयार किया है।

भाजपा का मानना है कि इससे सिख समाज के वोटरों को अपने साथ लाया जा सकता है और हरदीप पुरी इसमें कारगर साबित होंगे। जबकि भाजपा यह भूल जाती है कि सिख समाज के वोटर आज भाजपा से बहुत ही नाराज़ हैं। सिख समाज के वोटरों के दबाव में ही अकाली दल ने भाजपा से अपना गठबंधन तोड़ दिया था, क्योंकि अकाली दल सिख समाज के वोटरों को नाराज़ नहीं करना चाहता था। अकाली दल का मुख्य आधार सिख वोटर हैं। यही नहीं दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में सिख समाज और जाट समुदाय के लोगों द्वारा बड़ी भूमिका निभाई जा रही है।

ऐसे में भाजपा गलतफहमियां पाले हुए है कि सिख समाज के वोटरों को हरदीप पुरी उसके साथ लाने में कामयाब होंगे। यही नहीं हरदीप पुरी कोई राजनेता तो नहीं हैं, वह पूर्व नोकरशाह हैं। उनका जनता से कोई सीधा संबंध भी नहीं है, जिससे वह भाजपा को फायदा पहुंचा सकें। भाजपा हरदीप पुरी को लेकर भ्रम पाले हुए हैं। विधानसभा चुनाव में हरदीप पुरी सिख समाज के वोटरों के वोट भाजपा को नहीं दिलवा पाएंगे।

अनुसूचित जाति के वोटरों को साधने के लिए जालौन के सांसद भानु प्रताप वर्मा, मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर और आगरा के सांसद एस पी सिंह बघेल को राज्यमंत्री बनाया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर राज्य में अनुसूचित जातियों के वोटरों पर है। अनुसूचित जातियों के वोटरों को अपने साथ रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुसूचित जातियों से ताल्लुक रखने वाले 3 सांसदों को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच है कि अगर अनुसूचित जातियों के वोटर भाजपा के साथ आ जाएं तो भाजपा की चुनावी नैय्या पार हो सकती है। इसीलिए राज्य से 3 सांसदों को एक साथ मंत्री बनाया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह मानकर चल रहे हैं कि नए मंत्री भाजपा के लिए कारगर साबित हो सकते हैं। इसीलिए उन्होंने तीन सांसदों को मंत्री बनाया है। चूंकि राज्य में बसपा की हालत खराब है और अनुसूचित जातियों के वोटरों द्वारा बसपा एवं बसपा अध्यक्ष मायावती का लगभग साथ छोड़ दिया है। बसपा की इस खराब हालत की ज़िम्मेदार खुद मायावती हैं। मायावती ने भाजपा के आगे सरेंडर कर दिया है। वह अपनी और अपने भाई आनन्द कुमार की अकूत सम्पत्ति को बचाने के लिए भाजपा के आगे सरेंडर हैं।

भाजपा ने सीबीआई जांच शुरू करवाने का डर दिखा कर उन्हें चुप रहने पर मजबूर कर दिया है। मायावती के चुप्पी साधे रहने से उनका परम्परागत वोटर उनके पाले से खिसक गया है। उनका वोटर सपा के साथ और पश्चिम उत्तर प्रदेश में दलित नेता चंद्रशेखर उर्फ रावण के साथ चला गया है। आज राज्य में बसपा संक्रमण कॉल के दौर से गुजर रही है। भाजपा ने इसी नजाकत को भांप लिया और उसने दलित वोटरों को अपने साथ लाने का मन बनाया।

यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के 3 अनुसूचित जातियों के सांसदों को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया है। उत्तर प्रदेश में दलित वोटर लगभग 21 प्रतिशत हैं। भाजपा इनको अपने साथ लाने के लिए बेताब है। भाजपा का मानना है कि अनुसूचित जातियों के वोटरों को यदि वह अपने साथ लाने में कामयाब हो जाती है, तो राज्य में भाजपा की सरकार बन सकती है।इसलिए भाजपा ने यह दांव खेला है।

भानु प्रताप वर्मा कई बार से जालौन से लोकसभा सदस्य हैं। उन्हें बुंदेलखंड में बसपा के वोटरों को भाजपा के साथ लाने के लिए मंत्री बनाया गया है। बुंदेलखंड में बसपा का काफी प्रभाव है और जालौन बुंदेलखंड में ही आता है, इसीलिए भाजपा ने उनको मंत्री बनाया है। इसी तरह मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर को राज्यमंत्री बनाया गया है। कौशल किशोर पहले साम्यवादी नेता थे और उत्तर प्रदेश में मंत्री रहे हैं। बाद में यह भाजपाई हो गए। वह दो बार से मोहनलालगंज से सांसद हैं और एक जुझारू राजनेता हैं। भाजपा ने इस कारण उन्हें मंत्री बनाया है।

हालांकि, त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में हुए ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में उनकी विधायक पत्नी जय देवी और उनके पुत्र ने मलिहाबाद से ब्लॉक प्रमुख का चुनाव लड़ रहे सपा उम्मीदवार को नामांकन पत्र नहीं दाखिल करने दिया। इसको लेकर काफी बवाल हुआ जिससे मतदाताओं में काफी नाराज़गी है।

एस पी सिंह बघेल को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री के रूप में शामिल किया है। एस पी सिंह बघेल आगरा से लोकसभा सदस्य हैं। यह सपा और बसपा में भी रहे हैं। इन्हें मंत्री बनाकर भाजपा पश्चिम उत्तर प्रदेश में दलित वोटरों को अपने साथ जोड़ना चाहती है। लेकिन यह भाजपा के लिए कितना फायदा पहुंचा पाएंगे, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

अनुसूचित जातियों के राजनेताओं को मंत्री बनाकर पिछड़े वर्ग को भी साधने का काम किया गया है। पिछड़े वर्ग से भाजपा ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपने महराजगंज के सांसद पंकज चौधरी को राज्यमंत्री बनाया है। पंकज चौधरी कुर्मी जाति से ताल्लुक रखते हैं। यह मूल रूप से व्यापारी हैं। भाजपा यह मानकर चल रही है कि यह कुर्मी वोटरों को भाजपा के साथ जोड़ने का काम करेंगे। जबकि यह रूखे स्वभाव के व्यक्ति हैं। ऐसी स्थिति में यह भाजपा के लिए कितना कारगर साबित होंगे, कहना मुश्किल है।

भाजपा ने पंकज चौधरी को इसलिए मंत्री बनाया है कि वे कुर्मी वोटरों को भाजपा के साथ खड़ा करेंगे। जबकि बरेली के सांसद सन्तोष कुमार गंगवार को केंद्रीय मंत्री के पद से हटा दिया गया है। संतोष कुमार गंगवार कुर्मी हैं। इनके हटने से कुर्मी जाति के लोगों में गहरी नाराज़गी है। इनके मंत्री पद से हटने से बरेली, बरेली व फरुर्खाबाद, कन्नौज, कानपुर नगर, कानपुर देहात, उन्नाव, जालौन फतेहपुर, बाँदा ,आंवला, पीलीभीत और चित्रकूट के कुर्मी बिरादरी के वोटर नाराज़ हैं। इसका सबसे बड़ा कारण संतोष कुमार गंगवार का आम सुलभ होना यानी जनता से जुड़ा हुआ होना है। वह आम जनता के लिए हमेशा उपलब्ध ही नहीं रहते हैं बल्कि जनता के कार्य भी करते हैं। वे पार्टी से ऊपर उठकर लोगों के काम करते हैं। उनके हटने से भाजपा को तगड़ा झटका विधानसभा चुनाव में लगेगा।

कुर्मी वोटरों को अपने साथ लाने की कवायद में अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल को भी राज्यमंत्री बनाया गया है। अनुप्रिया पटेल भाजपा को कोई लाभ नहीं दिला पाएंगी। अनुप्रिया पटेल ने भाजपा से गठबंधन करके जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव अभी लड़ा था। जौनपुर में उनकी उम्मीवार बुरी तरह हार गई। यहां से पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी सिंह चुनाव जीत गईं। इस सीट को जीतने के लिए राज्य सरकार ने पूरी ताकत लगाई थी। लेकिन अपना दल बुरी तरह हार गया।

अनुप्रिया पटेल के खिलाफ उनकी माँ कृष्णा पटेल ने और उनकी बड़ी बहन ने मोर्चा खोल रखा है। इन्होंने अपना दल नाम से ही पार्टी बना रखी है और यह सपा के साथ तालमेल कर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं। ऐसे हालात में अनुप्रिया पटेल खुद के ही दल को जिता ले जाएं तो बड़ी बात होगी। वह भाजपा के पक्ष में कुर्मी वोटरों को जोड़ने में सफल होंगी, इसमें पूरा संदेह है।

भाजपा के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह हैं। यह मूल रूप से मिर्जापुर के रहने वाले हैं और वर्तमान समय में जालौन के उरई में रहते हैं और यहीं से भाजपा विधायक हैं। यह भी कुर्मी वोटरों को भाजपा के साथ लाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। आज की मौजूदा परिस्थितियों में कुर्मी वोटर सपा के साथ जा सकता है। अनुप्रिया पटेल के पिताजी डॉ सोनेलाल पटेल कुर्मी बिरादरी के बड़े नेता थे। अनुप्रिया पटेल की माँ कृष्णा पटेल सपा के साथ जा रही हैं, ऐसे में अनुप्रिया पटेल भाजपा के लिए कुर्मी वोटरों पर कोई जादू नहीं कर पाएंगी।

पिछले दरवाज़े की राजनीति करने वाले बी एल वर्मा को भी केंद्र सरकार में राज्यमंत्री बनाया गया है। बी एल वर्मा मूल रूप से बदायूं के रहने वाले हैं। यह कल्याण सिंह से जुड़े रहे हैं। यह लोध जाति से ताल्लुक रखते हैं। कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह एटा से लोकसभा सदस्य हैं। एटा में जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर सपा जीती है, इसलिए राजवीर सिंह को मंत्री नहीं बनाया गया है। इनकी जगह बी एल वर्मा को मंत्री बनाया गया है। लोध वोटरों को ध्यान में रखकर इन्हें मंत्री की कुर्सी मिली है। बदायूं, बरेली, शाहजहांपुर, रामपुर, संभल, मुरादाबाद, अलीगढ़, एटा, फरुर्खाबाद, कन्नौज, उन्नाव, हमीरपुर और महोबा एवं लखनऊ में लोध वोटरों की संख्या काफी है।

भाजपा यह मानकर चल रही है कि बी एल वर्मा अपनी बिरादरी के वोट भाजपा को दिलाने में सफल होंगे। जबकि यूपी में कल्याण सिंह ही लोध बिरादरी के एकमात्र बड़े राजनेता हैं और लोध वोटर कल्याण सिंह को ही अपना नेता मानता है। कल्याण सिंह के बाद राजवीर सिंह लोध बिरादरी के नेता हैं। ऐसे में पिछले दरवाज़े की राजनीति करने वाले बी एल वर्मा भाजपा को कितना लाभ दिला पाएंगे, यह समय के गर्भ में है।

लखीमपुर खीरी के सांसद अजय कुमार मिश्रा टेनी को मोदी सरकार में राज्यमंत्री बनाकर गृह राज्यमंत्री बनाया गया है। लेकिन त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में इनके क्षेत्र निघासन में ब्लॉक प्रमुख का चुनाव भाजपा बुरी तरह हार गई। अजय कुमार मिश्रा टेनी निघासन से विधायक भी रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा ने दबंगई के बल पर अपने प्रमुख बनवाए हैं। ऐसे में भी केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्रा टेनी के क्षेत्र में भाजपा का हार जाना चिंता का विषय है। अजय मिश्रा को ब्राह्मण होने के नाते मंत्री बनाया गया है। क्योंकि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों के उत्पीड़न के मामले उछल रहे थे और ब्राह्मणों में भाजपा के प्रति नाराजगी बढ़ रही थी।

हालांकि, वह भाजपा के पाले में ब्राह्मण वोटरों को ला पाएंगे ऐसा संभव नहीं दिखाई देता है। ब्राह्मणों में कई गोत्र होते हैं और इनके अपने-अपने अलग नेता हैं। इसलिए अजय मिश्र फेल हो जाएंगे और ब्राह्मण इनके कहने पर भाजपा को वोट नहीं देंगे।

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