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Friday, April 26, 2024
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देवांगना, नताशा और आसिफ तन्हा की ज़मानत को दिल्ली पुलिस द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए आसिफ इकबाल तन्हा, देवांगना कलिता और नताशा नरवाल को UAPA के तहत दिल्ली दंगों के एक मामले में ज़मानत देने के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.

दिल्ली हाईकोर्ट से इन तीनों छात्रों को मंगलवार को ज़मानत मिली थी और आज उन्हें रिहा होना था. हालांकि, इससे पहले ही तीनों की जमानत के खिलाफ पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी.

बार & बेंच के अनुसार, जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जे भंभानी की बेंच द्वारा मंगलवार को दिए गए फैसले के खिलाफ बुधवार सुबह स्पेशल लीव पिटीशन (अपील) दायर की गई.

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह माना था कि प्रथम दृष्टया, तीनों के खिलाफ वर्तमान मामले में रिकॉर्ड की गई सामग्री के आधार पर धारा 15, 17 या 18 यूएपीए के तहत कोई अपराध नहीं बनाया गया था.

आसिफ इकबाल तन्हा जामिया मिलिया इस्लामिया में बीए (ऑनर्स) (फारसी) कोर्स के अंतिम वर्ष का छात्र है और उन्हें मई 2020 में यूएपीए के तहत दिल्ली दंगों के मामले में गिरफ्तार किया गया था. आसिफ तब से लगातार हिरासत में हैं.

दिल्ली पुलिस के मुताबिक, नागरिकता संशोधन अधिनियम का पालन करते हुए, तन्हा, कलिता और नरवाल ने अन्य आरोपी व्यक्तियों के साथ मिलकर साजिश रची कि कानून-व्यवस्था की गड़बड़ी हो.

ज़मानत देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था:

हाईकोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार JNU की छात्राओं नताशा नरवाल, देवांगना कालिता और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देते हुए सख्त टिप्पणी की थी. कोर्ट ने कहा था, “हम यह कहने को मजबूर हैं कि ऐसा लगता है असहमति को दबाने की चिंता में सरकार की नजर में विरोध करने के सांविधानिक अधिकार और आतंकी गतिविधि के बीच का फर्क धुंधला होता जा रहा है. अगर यह मानसिकता ऐसे ही बढ़ती रही, तो यह लोकतंत्र के लिए काला दिन होगा और खतरनाक होगा.”

जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने कहा था, “दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में आरोपी विद्यार्थियों के खिलाफ यूएपीए के तहत अपराधों में कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं पाया गया है. ज़मानत के खिलाफ यूएपीए की सख्त धारा 43 डी (5) आरोपियों पर लागू नहीं होती है और इसलिए वे दंड प्रक्रिया संहिता के तहत सामान्य सिद्धांतों के तहत जमानत पाने के हकदार हैं.”

पुलिस के आरोपपत्र पर प्रतिक्रिया देते हुए कोर्ट ने कहा था कि, “पुलिस के आरोपपत्र में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे लगाए गए आरोपों के मद्देनजर यूएपीए की धारा 15 की रोशनी में संभावित आतंकी, धारा 17 के तहत आतंकी कृत्य के लिए फंड जुटाने एवं धारा 18 के तहत आतंकी कृत्य या आतंकी कृत्य करने की तैयारी के रूप में देखा जा सके.”

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