हुमा अहमद | इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | 16 साल की अनम अपने पिता का हाथ पकड़ कर उन्हें कमरे में बैठाते हुए दंगो में हमेशा के लिए खो चुकी उनकी आँखों की रौशनी की दास्तान बयां कर रही थी. एक साल पहले दिल्ली में हुए दंगों ने अनम के पिता की आंखों की रौशनी के साथ उन ख़्वाबों को भी धुन्दला कर दिया था जो अनम के पिता ने उसके लिए देखे थे.
11वीं में पढ़ने वाली अनम, चेहरे पर मुस्कुराहट लिए एक साल पहले शिवविहार में हुए दंगे और अपने पिता पर हुए एसिड अटैक की कहानी सुनाते हुए भवुक हो रही थी मगर शायद वो मुस्कुराहट में अपने दर्द को छिपाने में पारंगत हो चुकी है.
दंगों में अनम का घर जला दिया गया:
शिवविहार में रहने वाली अनम के लिए 25 फरवरी 2020 की वो शाम कयामत की तरह गुज़री. अनम और उसके पिता को घर के बाहर हमलावर भीड़ का शोर सुनाई दिया. उसके घर को लूटा जा चुका था और दुकान में आग लगा दी गई थी. जब उन्हें लगा कि शायद दंगाई जा चुके हैं तो अनम के पिता ने बाहर झांक कर देखा. तभी नीचे खड़े दंगाइयों ने उनपर तेज़ाब फेंक दिया.
अनम ने बताया कि पहले तो हमें लगा कि यह पानी है मगर कुछ देर बाद पिता जी को जलन महसूस हुई और चेहरे पर खून दिखाई दिया तो पता चला कि दंगाइयों द्वारा उन पर एसिड फेंका गया था.
उस एसिड अटैक में अनम के पिता ने अपनी दोनों आंखें हमेशा के लिए खो दी. उस हमले में अनम पर भी कुछ छीटें आईं क्योंकि वह अपने पिता के पीछे ही खड़ी थी. अनम का चेहरा तो बच गया हालांकि गर्दन पर हल्का सा निशान अब भी बाक़ी है.
नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) के विरोध में देशभर में धरने चल रहे थे जिन प्रदर्शनों के विरुद्ध दक्षिणपंथी नेताओं द्वारा भड़काऊ बयान देने के बाद नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में दंगे शुरू हो गए. दंगो में 54 लोगों की मौत हुई. हिंसा में कई इलाकों सहित शिवविहार भी काफी प्रभावित रहा.
अनम पढ़ना चाहती है:
दिल्ली के शिव विहार की दंगा पीड़ित 16 वर्षीय अनम 11वीं की छात्रा है और वह आगे पढ़ना चाहती है. अनम का घर दंगाइयों ने जला दिया था. वह अपने माता-पिता के साथ पड़ोस में किराए के मकान में रह रही है.
अनम को बताया गया कि मीडिया के लोग उनसे मिलने आएं हैं. अनम एक हल्की मुस्कुराहट के साथ हमें घर के अंदर ले गई. हम संकरी सीढ़ियों पर चलकर एक 10×8 के सीलन भरे अंधेरे कमरे में दाख़िल हुए. कमरे के बाहर खाली पड़े हिस्से में अनम की किताबें, उसके परिवार की वस्तुएं, किचन का सामान और गृहस्थी की बाकी चीज़ें बिखरी हुई पड़ी थीं.
अनम हमारे मना करने के बावजूद चाय बनाकर ले आई. दंगाईयों की नफ़रत ने अनम का घर और खुशियों छीन लिया मगर अथिति सत्कार की भावना को न छीन सके. मैं लगातार अनम के चेहरे पर आ रहे भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी जिनमें भविष्य को लेकर अनिश्चितता साफ नज़र आ रही थी.
अनम ने बताया कि वह 11 वीं कक्षा की छात्रा है. मगर एक साल से क्लास नहीं चला. ये पूछने पर कि अनम पढ़ लिख कर तुम क्या बनना चाहोगी, वह खामोश हो गई. कुछ देर की खामोशी के बाद अनम ने बताया कि वह एक एनजीओ की हेल्प से नर्सिंग की ट्रेनिंग करने वाली है.
अनम जैसी सैकड़ों बच्चियों के ख़्वाब दंगों की भेंट चढ़ गए:
दिल्ली दंगों में सैकड़ों घरों को जलाया गया और हज़ारों अनम जैसी पढ़ने वाली बच्चियां बेघर हो गईं. कौन है इसका ज़िम्मेदार. बच्चे बनना कुछ चाहते थे मगर दंगों के बाद मजबूरी में कुछ भी बनने के लिए राज़ी हैं. उनके पीछे उनके घर के टूटे फूटे बिखरे समान सरकारी दस्तावेजों ने उनके जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है.
एक बच्ची टीन एज में हज़ारों मनोवैज्ञानिक बदलावों से गुज़र रही होती है. उन बदलावों के साथ दंगों की हिंसा ने उस बच्ची के मन मस्तिष्क पर कैसे प्रभाव छोड़े होंगे ये समझना बहुत मुश्किल है. अनम इस वक्त किस तरह मानसिक दबावों को झेल रही है ये शायद दंगा पीड़ित ही समझ पाएंगे.
महिला या बाल अधिकार आयोग दंगा पीड़ित महिलाओं बच्चों के लिए आगे क्यों नहीं आता?
दंगों के बाद एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि महिला सुरक्षा को सुनिश्चित करने वाला महिला आयोग या बाल अधिकार आयोग दंगा पीड़ित बच्चियों और महिलाओं के लिए आगे क्यों नहीं आता? क्या महिला आयोग भी दंगाइयों को समर्थन देने वाली शक्तियों से डरता है?
अनम जैसी किशोर बच्चियों को दंगा जैसी त्रासदी झेलने के बाद निश्चित रूप से काउंसिलिंग की ज़रूरत होती है. महिला आयोग उनके लिए काउंसलिंग की व्यवस्था उपलब्ध क्यों नहीं करवाता?
महिला आयोग उस समय तो सक्रिय दिखता है जब सत्तारूढ़ पार्टी की महिला नेताओं पर कुछ टिप्पणी की जाती है. हालांकि यही महिला आयोग भाजपा शासित राज्यों में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर ख़ामोश रहता है. यह सवाल तो बनता है कि क्या सरकार के साथ ये संवैधानिक संस्थाएं भी नाइंसाफी और पक्षपात के रास्ते पर चल पड़ी हैं?
अनम अब दंगों के दंश से उबरना चाहती है:
अनम अब दंगों के दंश से उबरना चाहती है. वह चाहती है कि पढ़े और अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़े. वह बहुत ही सहजता से दंगों की सच्चाई को स्वीकारते हुए हर मिलने वालों से बात करती है. दंगों ने उसे दुख ज़रूर दिया है मगर उसके चेहरे पर कुछ करने का आत्मविश्वास है.
जब हम अनम के घर से निकलने लगे तो मैंने अनम की ओर देखा, वह कमरे के बाहर बिखरी अपनी किताबों की तरफ गौर से देख रही थी. अनम के मैले कपड़े, जली हुई किताबें और उसके चेहरे पर अनिश्चितता का भाव उसके साथ हुई नाइंसाफी की दर्दनाक कहानी बयान कर रहे थे.