नार्थ ईस्ट दिल्ली में हुए दंगों के एक साल बाद मृतकों के परिवारों का इन्टरव्यू सिरीज़, देखिए इंडिया टुमारो पर. इस कड़ी में चौथा इंटरव्यू है मृतक शरीफ ख़ान के परिवार का.
मसीहुज़्ज़मा अंसारी | इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | फरवरी 2020 में नार्थ ईस्ट दिल्ली में हुए दंगों में शिव विहार के 92 वर्षीय शरीफ ख़ान की मौत दंगाइयों द्वारा उनके घर में लगाई गई आग से धुंआँ भर जाने के कारण दम घुटने से हुई.
दंगों के दौरान शिव विहार में हुई दो मौतों में एक 92 वर्षीय शरीफ़ ख़ान भी शामिल हैं. शरीफ ख़ान का परिवार शिव विहार के गली नंबर एक में रहता है.
दंगाइयों ने पहले घर को लूटा, तोड़-फोड़ की फिर घर में आग लगा दी. जान बचाने के लिए परिवार के सभी लोग उपरी मंजिल पर भागे लेकिन मोहम्मद शरीफ बुज़ुर्ग होने के कारण भाग नहीं सके और धुवें में फंस गए.
मृतक के परिवार ने बताया कि, ‘घर में आग लगने के कारण सभी परिवार के लोग छत पर चले गए. पूरे घर में धुवां भर गया और हमारा दम घुटने लगा. जब शोर शांत हुआ तो हम उन्हें बुरी स्थिति में पाए, उन्हें सांस लेने में दिक्क़त हो रही थी.”
92 वर्षीय मोहम्मद शरीफ की इलाज के दौरान 3 मार्च को मौत हो गई. वह उत्तर प्रदेश के ईटावा के रहने वाले थे और उनका परिवार पिछले 30 सालों से दिल्ली में रहता है.
इंडिया टुमारो को पीड़ित परिवार के फारुख ने बताया कि, “दंगाइयों ने 25 फरवरी 2020 को गली में कई घरों में आग लगा रहे थे, लूट रहे थे और तोड़-फोड़ कर रहे थे. उन्होंने हमारे घर में भी आग लगा दी. घर के सामानों को लूटा.”
फारुख ने बताया कि, “चूंकि मेरा घर बिलकुल आखिर में है और गली का कोना है जिसके बाद हिन्दू आबादी शुरू होती है इसलिए घर के पास ही अधिकतर दंगाई मौजूद थे. वो आस-पास के घरों को लूटते और फिर वहीं कोने में खड़े हो जाते जिसके कारण हम घर से किसी सुरक्षित स्थान पर नहीं जा सके.”
उन्होंने बताया, “जब 26 फरवरी की सुबह दंगाई नहीं दिखे तो हमने अपने दादा शरीफ ख़ान को जीटीबी हॉस्पिटल में भर्ती कराया जिन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी.”
यहां भी पुलिस का वही रवैया था, पीड़ितों द्वारा कॉल करने के बाद भी पुलिस मौके पर नहीं पहुंची.
25 फरवरी 2020 को आग लगाई गई और 26 की सुबह उन्हें जीटीबी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था. उनकी 3 मार्च को मौत हो गई.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मौत का कारण धुंवें की अधिक मात्रा का सांस के ज़रिए शरीर में प्रवेश करना बताया गया.
फारुख बताते हैं कि घर में गाड़ी सर्विसिंग का काम होता है और 25 फरवरी को दुकान में मौजूद सभी गाड़ियों में आग लगा दी गई थी.
इस मामले में करावल नगर थाने में एफआईआर दर्ज हुई है लेकिन परिवार के अनुसार अभी तक कोई कार्रवाई की सूचना परिवार को नहीं मिली है.
ज्ञात हो कि नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) के विरोध में दिल्ली और देशभर में धरना चल रहा था. सरकार पर देश भर में हो रहे धरने के कारण भारी दबाव था. अचानक कुछ भाजपा समर्थित नेता प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए उग्र बयान देने लगे. धीरे-धीरे बयान व्यवहार में बदलता गया और नार्थ ईस्ट दिल्ली में हिंसा शुरू हो गई जिसमें दोनों पक्षों के 54 लोगों की जानें गईं.
कई रिपोर्ट में दिल्ली दंगों को पूर्वनियोजित बताया गया था और इसमें सबसे अधिक जान और माल का नुकसान मुस्लिम समुदाय का ही हुआ था.
दंगों में 11 मस्जिदें, पाँच मदरसे, एक दरगाह और एक क़ब्रिस्तान को नुक़सान पहुँचाया गया. हालांकि, मुस्लिम बहुल इलाक़ों में किसी भी ग़ैर-मुस्लिम धर्म-स्थल को नुक़सान नहीं पहुँचाया गया था.
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग द्वारा प्रभावित इलाकों का दौरा कर फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट तैयार की गई थी जिसके आधार पर भाजपा नेताओं के भड़काऊ बयान को दंगे के लिए उकसाने वाला बताया गया था.
दंगे में भाजपा नेताओं के साथ-साथ पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठाया था और खुले तौर पर दंगाई भीड़ का समर्थन करने का आरोप भी पुलिस पर लगा था.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि, “कुछ जगहों पर पुलिस बिल्कुल मूकदर्शक बनी रही, जबकि भीड़ लूटपाट, घर जलाना और हिंसा का कार्य कर रही थी.”
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार मुसलमानों की दुकानों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया. रिपोर्ट में दावा किया गया था कि दंगे अपने पूरी तरह सुनियोजित और संगठित थे और लोगों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया था.