स्टाफ़ रिपोर्टर | इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली 23 छात्राओं ने NEET-2020 परीक्षा में सफलता हासिल की थी मगर इन 23 छात्राओं में अब तक किसी भी छात्रा ने मेडिकल कालेज में प्रवेश नहीं लिया है. छात्राओं के परिवारों ने इसके पीछे मुख्य कारण मेडिकल कालेज की भारी फीस होना बताया है.
दिल्ली के जामिया नगर के नूर नगर में स्थित सरकारी स्कूल ‘सर्वोदय कन्या विद्यालय’ की छात्राओं का भविष्य एंट्रेंस में कामयाबी हासिल कर के भी अंधकार में है. NEET में सफ़लता हासिल कर के भी इन छात्राओं का डॉक्टर बनने का ख़्वाब अधूरा दिख रहा है.
जामिया नगर के नूर नगर इलाके के जिस सरकारी स्कूल की 23 मुस्लिम लड़कियों ने NEET में कामयाबी हासिल की थी वह सभी 23 लड़कियां मुस्लिम हैं.
इन कामयाब छात्राओं में से कुछ ने तो दोबारा मेडिकल एंट्रेंस की कोचिंग शुरू कर दी है और कुछ ने, डॉक्टर बनने का ख़्वाब छोड़ दिया है.
इन छात्राओं का एंट्रेंस में सफल होकर भी मेडिकल कालेज में प्रवेश नहीं ले पाना सरकार की व्यवस्था, नीति और नीयत पर सवाल खड़ा करता है.
इंडिया टुमारो को इन सभी छात्राओं के परिवार ने विस्तार से उनके दाखिला नहीं लेने का कारण बताया है.
शिक्षा के मैदान में तमाम तरह के दावे करने वाली सरकार के लिए यह सोचने का मुद्दा है कि चंद महीने पहले जिन लड़कियों को NEET परीक्षा में सेलेक्ट होने पर बधाइयां दी जा रही थीं उन छात्राओं ने मेडिकल कालेज में अब तक प्रवेश क्यों नहीं लिया.
मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने का दावा करने वाली सरकारें मुस्लिम छात्राओं के मेडिकल कालेज में प्रवेश नहीं ले पाने पर मौन हैं.
मरियम भी उन 23 लड़कियों में शामिल हैं जिन्होंने NEET क्वालीफाई किया है लेकिन किसी मेडिकल कालेज में प्रवेश नहीं ले सकीं.
इंडिया टुमारो से बात करते हुए मरियम की मां ने कहा, “सरकारी कालेज में सीट नहीं मिलने के करण इस साल फिर से NEET की कोचिंग शुरू कर दिया है. उम्मीद है इस बार अच्छा रैंक हासिल हो और सरकारी कालेज में सीट मिल जाए.”
एक और छात्रा महज़बी ने इंडिया टुमारो को बताया कि, “मैंने दोबारा एंट्रेंस की तैयारी शुरू कर दी है. मेरी कोशिश है कि इस बार पहले से बेहतर कर सकूं और सरकारी मेडिकल कालेज में दाखिला मिल सके.”
मेडिकल एंट्रेंस परिक्षा में शामिल होने वाले छात्र और सरकार द्वारा निर्धारित की गई सीटों की संख्या में भारी अंतर है. लाखों छात्र एंट्रेंस में तो कामयाब हो जाते हैं मगर अपनी रैंक के अनुसार सरकारी सीट पर कम ख़र्च में मेडिकल कालेज में प्रवेश नहीं ले पाते.
प्राइवेट मेडिकल कालेज में प्रवेश लेने और डॉक्टर बनने तक करोड़ों रूपए लगते हैं. जो छात्र मेडिकल एंट्रेंस की कोचिंग में लाखों की फीस नहीं भर पाते वह प्राइवेट मेडिकल कालेज में प्रवेश लेने के बारे में कैसे सोच सकते हैं.
पूर्व में सरकार द्वारा प्राइवेट मीडिकल कालेज में सरकारी सीटें निर्धारित होती थीं मगर धीरे-धीरे सरकार इस व्यवस्था को ख़त्म कर रही है.
दूसरी तरफ प्राइवेट मेडिकल कालेज की मनमानी फीस पर सरकार द्वारा कोई लगाम नहीं लगाया जा रहा जिसके कारण आम परिवार का छात्र किसी प्राइवेट मेडिकल कालेज में प्रवेश नहीं ले सकता है.
दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसौदिया ने इन छात्राओं की कामयाबी का श्रेय दिल्ली सरकार के स्कूल को दिया था मगर कोई सरकारी प्रतिनिधि मेडिकल कालेज में इन छात्राओं का दाख़िला नहीं हो पाने का कारण जानने की कोशिश नहीं किया.
केजरीवाल सरकार ने बिना किसी गारंटी के 10 लाख रूपए तक के लोन की व्यवस्था की है मगर इन छात्राओं के लिए मेडिकल कालेज में प्रवेश पाने के लिए 10 लाख रूपए बहुत कम हैं.