इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश में दख़ल देने से इंकार कर दिया है जिस फैसले में हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत डॉ कफील खान की हिरासत को रद्द कर दिया था.
उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 1 सितंबर के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की थी जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत डॉ कफील खान की हिरासत को रद्द कर दिया था.
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, “यह उच्च न्यायालय द्वारा एक अच्छा आदेश है … हमें उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता.”
लाइवला. इन के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार ने यह कहते हुए शीर्ष न्यायालय का रुख किया था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अधिकारियों के दृष्टिकोण के स्थान पर “अपनी व्यक्तिपरक संतुष्टि को प्रतिस्थापित किया है.”
उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 1 सितंबर के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत डॉ कफील खान की हिरासत को रद्द कर दिया.
ज्ञात हो कि, गोरखपुर के डॉ कफील खान को CAA के खिलाफ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में 13 दिसंबर को दिए गए एक भाषण के तहत जनवरी 2020 में मुंबई से गिरफ्तार किया गया था.
डॉ० कफील ख़ान पर NSA के तहत “शहर में सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी करने और अलीगढ़ के नागरिकों के भीतर भय और असुरक्षा का माहौल पैदा करने” के आरोप भी जोड़े गए थे.
कफील ख़ान की मां, नुज़हत परवीन द्वारा दायर याचिका को पहली बार 1 जून, 2020 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था, क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि उच्च न्यायालय एक “उचित मंच” है.
लाइवला.इन के अनुसार, 1 सितंबर, 2020 को उच्च न्यायालय ने डॉ खान की तत्काल रिहाई के निर्देश के साथ याचिका की अनुमति दी.
एनएसए के तहत बनाए गए रिकॉर्ड को देखने पर , इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि खान को हिरासत में रखने के लिए कोई आधार नहीं है.
कोर्ट ने आदेश में कहा था कि, इस तरह की हिरासत को दो बार बढ़ाने के लिए, उनके भाषण को पूर्ण पढ़ने से संकेत मिलता है कि उन्होंने किसी भी तरह की हिंसा को बढ़ावा नहीं दिया.
न्यायालय ने कहा कि भाषण ने वास्तव में “राष्ट्रीय अखंडता और एकता के लिए आह्वान” किया.