मसीहुज़्ज़मा अंसारी | इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | राजस्थान के बारां जिले के मांगरोल कस्बे में एक पुराने मामले में सज़ा काट रहे रमज़ान अली की 26 अप्रैल 2019 को कथित रूप से पुलिस हिरासत में प्रताड़ित किए जाने के बाद मौत हो गई थी. पीड़ित परिवार ने पुलिस पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था जिसके बाद राज्य की कांग्रेस सरकार ने मजिस्ट्रेट जांच का आदेश दिया था. हाल ही में आई जांच रिपोर्ट ने आरोपी पुलिस वालों को क्लीन चिट दी है जिसे लेकर पीड़ित परिवार दुखी है.
इंडिया टुमारो से बात करते हुए मृतक रमज़ान अली के पुत्र मोहम्मद रिज़वान ने बताया कि, “घटना के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से भी मुलाक़ात हुई थी. उन्होंने वादा किया था कि घटना की निष्पक्ष जांच की जाएगी. इस मामले में मजिस्ट्रेट जांच तो हुई मगर जो पुलिस वाले आरोपी हैं उनको क्लीन चिट मिल गई है.”
मृतक रमज़ान अली पर 1989 का एक मामला चल रहा था जिसका फैसला 2 फरवरी 2018 को आया जिसमें रमज़ान को 2 वर्ष की सज़ा सुनाई गई. बारां जेल में सज़ा काट रहे रमज़ान अली की तबीयत ख़राब रहने के कारण 7 मार्च 2019 को बेल मिली. इलाज कराकर 15 दिन बाद पुनः जेल चले गए. अप्रैल 20 को दोबारा तबीयत ख़राब होने पर इलाज के लिए कोटा हॉस्पिटल लाया गया जहां 26 अप्रैल को उनकी मौत हो गई.
इस मामले में पुलिस पर गंभीर आरोप लगे थे. पुलिस पर कथित रूप ने रिश्वत लेने, मृतक रमज़ान अली को प्रताड़ित करने, धार्मिक टिप्पणी करने, उनके मुस्लिम पहचान जैसे दाढ़ी टोपी आदि को लेकर निशाना बनाने के आरोप लगाए गए थे.
इंडिया टुमारो को रिज़वान ने बताया कि, मृत्यु से पहले रमज़ान ने एक वीडियो क्लिप में बताया था कि पुलिस कर्मियों ने उन्हें बुरी तरह मारा है और धमकी दी हे कि वो इसके बारे मे किसी को नहीं बताए. हालांकि मजिस्ट्रेट जांच में इन वीडियो की प्रमाणिकता पर ही सवाल उठाया गया है.
मजिस्ट्रेट जांच में पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और गवाहों के बयान के आधार पर इस बात को स्वीकार किया गया है कि मृतक रमज़ान अली के शरीर पर गंभीर चोटें पाई गई हैं मगर रिपोर्ट के निष्कर्ष में इसके लिए किसी को दोषी नहीं मानते हुए कथित आरोपी पुलिस कर्मियों और अन्य को क्लीन चिट दे दी गई है.
पीड़ित परिवार के रिज़वान ने कहा, “हमें उम्मीद थी कि कांग्रेस सरकार इस मामले में हमारे साथ न्याय करेगी मगर आरोपी पुलिस वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.”
इस मामले में राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने जांच के नाम पर मजिस्ट्रेट जांच का हवाला देते हुए सहानुभूति तो दिखाई मगर न्याय को सुनिश्चित नहीं कर सकी.
राजस्थान में कांग्रेस सरकार में ही हिरासत में मौत के कई मामले सामने आए हैं जिसमें ऑन ड्यूटी पुलिस कर्मियों को निलंबित किया गया है मगर रमज़ान के मामले में ये तत्परता नहीं दिखाई गई. पीड़ित परिवार कांग्रेस सरकार के इस बर्ताव को मुस्लिम होने से जोड़कर देखता है.
पीड़ित परिवार ने पुलिसकर्मियों पर रमज़ान के साथ बुरी तरह मारपीट करने का आरोप लगाया था. आरोप में कहा गया है कि, उन्हें ज़ंजीरों से बांधकर उल्टा कर पाइप से बुरी तरह मारा गया जिसके कारण रमजान की तबीयत बिगड़ गयी और उन्हें जयपुर एसएमएस रेफर कर दिया गया और फिर रमज़ान अली की मौत हो गई.
जांच रिपोर्ट में मृतक रमज़ान के पुत्र रिज़वान ने अपने बयान में बताया है कि, “मेरे पिता रमज़ान अली दिनांक 28/8/18 से जेल बारां में बंदी थे. जब पिता जी जेल गए तो बिलकुल सही थे. दिनांक 19/04/19 को शाम के समय कैदी वार्ड से दिनेश मीणा का फोन आया कि मेरे पिता जी की तबीयत ख़राब है और उन्हें कोटा ले जाया गया. जब हम पिता जी से मिलने कैदी वार्ड मेडिकल कालेज कोटा गए तो दिनेश मीणा ने हमें पिता जी से मिलने नहीं दिया. दिनभर के इंतज़ार के बाद भी मुलाक़ात नहीं हो सकी. अगले दिन हमें बताया गया कि उनकी तबीयत ज़्यादा ख़राब है और उन्हें जयपुर ले जाया जा रहा है.”
रिज़वान ने बताया कि, “पुलिस वालों ने मुझे बताए बिना ही मेरे पिता जी को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करा कर कोटा आगये. फिर 27 अप्रैल 2019 को कोटा के केंद्रीय कारागार से मुझे फोन आया कि मेरे पिता जी की 26 अप्रैल 2019 को रात 10:45 बजे मौत हो गई है.”
इंडिया टुमारो से बात करते हुए मृतक रमज़ान अली के पुत्र रिज़वान ने बताया, जो बयान जांच रिपोर्ट में भी दर्ज है कि, “जब मैं एसएमएस अस्पताल के वार्ड में अपने पिताजी से सुबह मिलने गया तो उन्होंने बताया कि पुलिस गार्ड रामधन और दिनेश मीणा ने उन्हें बहुत मारा है और किसी को नहीं बताने की धमकी दी है.”
हालांकि, जांच रिपोर्ट के निष्कर्ष में इसके बिलकुल उलट बात लिखी है. रिपोर्ट में बताया गया है कि रमज़ान अली की मौत प्राकृतिक थी और इस मामले में कथित आरोपियों जिनमें जेल अधिकारी, कर्मचारी, पुलिसकर्मी और चिकित्सक शामिल हैं को क्लीन चिट दी गई है.
जांच रिपोर्ट के निष्कर्ष के अनुसार, “न्यायालय के समक्ष यह निष्कर्ष आता है कि मृतक मोहम्मद रमज़ान पुत्र अलीमुद्दीन, उम्र 52 वर्ष, निवासी मांगरोल, थाना मांगरोल, जिला बारां (राज.) की मृत्यु उसके आंतरिक अंगों के काम करना बंद करने से उत्पन्न शोक के चलते होने वाली प्राकृतिक मृत्यु थी तथा जेल अधिकारीयों/कर्मचारियों, पुलिस गार्डों अथवा चिकित्सकों की ओर से कोई उपेक्षा कारित होना नहीं पाया जाता है एवं मृतक विचाराधीन बंदी मोहम्मद रमज़ान पुत्र अलीमुद्दीन की मृत्यु के लिए कोई दायित्वाधीन होना नहीं पाया जाता है.”
पीड़ित पक्ष के वकील अंसार इंदौरी ने इंडिया टुमारो से बात करते हुए कहा कि, “इस मामले में जो मजिस्ट्रेट इन्क्वायरी चल रही थी उसमें पुलिस को क्लीन चिट दे दी है. पीड़ित परिवार की तरफ से पुलिस पर मुक़दमा करने के लिए और एफआइआर दर्ज करने के लिए कोर्ट को कम्प्लेन किया गया था जो अभी भी पेंडिंग है. इस मामले में 18 दिसंबर की तारिख है. उसमें फाइनल रिपोर्ट लगना है. यदि एफआईआर दर्ज नहीं हुई तो हम इसे होईकोर्ट में चैलेंज करेंगे.”
यह मामला कोटा ट्रायल कोर्ट में चल रहा है. 18 दिसंबर को इस मामले की सुनवाई होनी है.
एडवोकेट अंसार इन्दौरी ने बताया कि, “राजस्थान में हिरासत में मौत के कई मामले सामने आए हैं जिसमें ऑन ड्यूटी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की गई है. हालांकि रमज़ान अली के मामले में पुलिस को क्लीन चिट दे दी गई है जबकि जांच रिपोर्ट में चोट के निशान आदि पाए जाने को स्वीकार किया गया है.”
भाजपा नेताओं ने की थी न्याय की मांग
रमज़ान अली की पुलिस हिरासत में मौत के बाद भाजपा नेताओं ने मांगरोल पहुंचकर पीड़ित परिवार के साथ संवेदनाएं व्यक्त की थी साथ ही दोषी पुलिसकर्मियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की थी.
इन भाजपा नेताओं में पूर्व मंत्री प्रेमनारायण गालव भी थे. भाजपा ने इस मामले में न्यायिक जांच की मांग की थी. भाजपा के पूर्व मंत्री प्रेमनारायण ने पीड़ित परिवार को उचित मुआवज़ा राशि, परिवार के किसी एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की सरकार से मांग की थी.
भाजपा नेताओं के पीड़ित परिवार से मुलाक़ात के बाद और न्यायिक जांच की मांग के बाद राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने पीड़ित परिवार से मुलाक़ात कर न्याय का भरोसा दिलाया था.
हालांकि न्यायिक जांच की फाइनल रिपोर्ट में दोषी पुलिसकर्मियों को क्लीन चिट मिल चुकी है. परिवार के किसी सदस्य को नौकरी या मुआवज़ा अब तक नहीं मिला है.
पीड़ित परिवार घटना के डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी अब तक न्याय के इंतज़ार में हैं मगर राज्य की कांग्रेस सरकार से उन्हें निराशा ही हाथ लगी है. अब तक आरोपियों पर हत्या का मामला भी दर्ज नहीं हो सका है. कांग्रेस सरकार में पीड़ित मुस्लिम परिवार घटना के डेढ़ साल बाद भी आरोपी पुलिसकर्मियों पर एफआईआर दर्ज कराने के लिए कोर्ट के चक्कर लगा रहा है.