(जयपुर से इंडिया टुमारो के लिए ख़ान इक़बाल और अवधेश पारीक की रिपोर्ट)
ख़ान इक़बाल | इंडिया टुमारो
जयपुर | क़ुरआन की यह आयत “अगर कोई व्यक्ति किसी बेगुनाह की हत्या करता है तो उसका यह पाप पूरी मानवता की हत्या के बराबर है और यदि किसी व्यक्ति ने अन्य व्यक्ति की जान बचाई तो यह पूरी मानवता की रक्षा करने के बराबर है” में छुपे संदेश ने एक शख्स को ऐसा प्रभावित किया कि उसने इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक क़ुरआन का मारवाड़ी में अनुवाद कर दिया.
राजस्थान के झुंझुनू ज़िले में छोटे से गाँव कोलसिया के रहने वाले राजीव शर्मा ने पवित्र क़ुरान का मारवाड़ी में अनुवाद किया है. यह अनुवाद अपने आप में इसलिए खास है क्योंकि पिछले चौदह सौ सालों के इतिहास में कहीं भी क़ुरआन के मारवाड़ी अनुवाद का जिक्र नहीं मिलता है.
इंडिया टुमारो से बात करते हुए राजीव शर्मा ने बताया कि, उन्होंने क़ुरआन का मारवाड़ी अनुवाद 3 साल में पूरा किया और इस काम के लिए उन्हें एक बड़े मीडिया संस्थान से अपनी नौकरी तक छोड़नी पड़ी थी. इससे पहले वह साल 2015 में पैग़म्बर मोहम्मद साहब की जीवनी का भी मारवाड़ी में अनुवाद कर चुके हैं.
शर्मा ने साल 2014 में कुरान के अनुवाद का कार्य शुरू किया था जिसे धीमी गति से आगे बढ़ाते हुए 2017 में पूरा किया गया है.
11-सितंबर की घटना का पड़ा गहरा असर
कुरान का ही मारवाड़ी अनुवाद करने का ख्याल क्यों आया इस सवाल के जवाब में राजीव कहते हैं कि, “अमेरिका में हुई 9/11 की आतंकवादी घटना ने मेरे बचपन को खासा प्रभावित किया है.”
इंडिया टुमारो से बात करते हुए राजीव ने कहा, “मुझे आज भी याद है जब 9/11 के हमलों की खबर हमारे गांव तक पहुंची थी, तब मैं 10वीं कक्षा में पढ़ता था. घटना के बाद अखबारों से लेकर चाय की दुकानों पर हर जगह आतंकवाद और इस्लाम की चर्चा गरम थी. मेरे आस-पास के वातावरण में कई ऐसे लोग थे जो क़ुरआन का ज़िक्र किया करते थे. इसी जिज्ञासा के कारण मैं उन दिनों क़ुरआन पढ़ने की ओर आकर्षित हुआ.”
राजीव आगे कहते हैं, “उस घटना के 10 साल बाद मुझे लगा कि क़ुरआन का मातृ भाषा में अनुवाद करना चाहिए ताकि लोगों की क़ुरान के प्रति जो ग़लतफ़हमियां हैं वो दूर हो सकें और वह इसे अपनी भाषा में समझ सकें.”
हालांकि अनुवाद के शुरूआती समय में उनके पास कंप्यूटर नहीं था. क़ुरआन के ढाई लाख शब्दों का अनुवाद, लगभग चालीस प्रतिशत हिस्सा उन्होंने नोटबुक में हाथ से लिख कर किया है.
परिवार और समाज की प्रतिक्रिया कैसी थी ?
एक हिन्दू होकर क़ुरआन का मारवाड़ी अनुवाद करने पर आस पास के लोगों की क्या प्रतिक्रिया थी के जवाब में राजीव कहते हैं, “मैं अपने आपको भाग्यशाली समझता हूँ कि मेरे पड़ोसी मित्र और समाज ने कभी मेरे इस काम पर कोई आपत्ति नहीं जताई. मेरे परिवार और रिश्तेदारों ने हमेशा इसमें साथ दिया और वो मुझे हमेशा प्रोत्साहित करते रहे.”
हालाँकि राजीव को सोशल मीडिया पर आए दिन विरोध का सामना करना पड़ता है. उन्होंने बताया कि जब वह अपने फ़ेसबुक पेज पर मारवाड़ी भाषा में क़ुरान की अनुदित किसी आयत (श्लोक) को शेयर करते हैं तो कुछ लोग उन पर अभद्र टिप्पणियाँ करते हैं.
एक पुरानी घटना साझा करते हुए वह कहते हैं, “सोशल मीडिया पर लोगों ने काफी गालियाँ भी दीं. एक बार किसी ने बन्दूक का फ़ोटो भेज कर धमकी दी कि यह काम छोड़ दो वरना जान से मार देंगे. लेकिन मैं अपना काम करता रहा क्योंकि मुझे पता है कि मेरी लड़ाई इसी मानसिकता से है.”
माँ ने की अनुवाद में मदद
राजीव को क़ुरआन के मारवाड़ी मे अनुवाद के दौरान कई बार उचित शब्द तलाशने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. ऐसे में उनकी मां ने उनके लिए एक शब्दकोश की भूमिका निभाई.
राजीव बताते हैं कि, “मारवाड़ी का कोई माकूल शब्दकोश ना होने से उन्हें अनुवाद में काफ़ी परेशानी का भी सामना करना पड़ा. उर्दू और हिंदी के कई शब्दों का जब उचित अनुवाद मैं नहीं ढूँढ पाता तब मेरी मां मुझे उचित मारवाड़ी शब्द सुझाती थी.”
वो आगे कहते हैं, “कई बार तो ऐसा भी हुआ कि एक शब्द का अनुवाद ढूँढने में कई-कई दिन निकल जाते, क्योंकि मुझे इस बात का हमेशा डर रहता था कि कहीं अनुवाद से कही गई बात का अर्थ ना बदल जाए.”
इंडिया टुमारो से बात करते हुए राजीव की माँ गायत्री देवी ने कहा, “हमने कभी इसको इस काम से नहीं रोका बल्कि हर संभव मदद की. नौकरी छोड़ने के बाद भी हमने राजीव को अकेला नहीं छोड़ा.”
अपनी बात साझा करते हुए वह आगे कहती हैं कि, “धर्म तो हमारे बनाए हुए हैं, जब हम इस धरती पर आते हैं तो हमारी पहली पहचान इंसान की ही होती है. हमारे घर में जहां गीता और रामायण है तो वहीं क़ुरान भी है.”
गांव में चलाते थे “गुरूकुल लाइब्रेरी”
राजीव अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि, मुझे किताबों के प्रति हमेशा से ही प्यार रहा है और जब मैं नौवीं क्लास में था तो अपने गांव कोलसिया में ‘गांव का गुरुकुल’ नाम से लाइब्रेरी खोली थी.
लाइब्रेरी में अपनी जमापूंजी से राजीव ने अलग-अलग व्यक्तित्वों और महान दार्शनिकों की कई पुस्तकें जमा की.
हालांकि किसी घटना के बाद शर्मा ने अपने गांव की लाइब्रेरी बंद कर दी लेकिन आज वह उस लाइब्रेरी का ई-संस्करण चलाते हैं जहां वह नियमित ब्लॉग भी लिखते हैं.
राजीव भारत के सभी गांवों में लाइब्रेरी खोलना चाहते हैं. वह कहते हैं कि किताबें हमारी सबसे क़ीमती पूँजी होती हैं.