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Saturday, April 27, 2024
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कर्नाटक में हिजाब बैन के कारण मुस्लिम छात्राओं का शिक्षा का अधिकार ख़तरे में: पीयूसीएल रिपोर्ट

इशफ़ाक़-उल-हसन

नई दिल्ली | पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के एक अध्ययन से यह जानकारी सामने आई है कि हिजाब प्रतिबंध ने कर्नाटक में युवा मुस्लिम छात्राओं की एक बड़ी आबादी के शिक्षा के अधिकार को संकट में डाल दिया है.

‘कर्नाटक के शैक्षिक संस्थानों में हिजाब प्रतिबंध का प्रभाव’ नामक शीर्षक से प्रकाशित पीयूसीएल की इस रिपोर्ट के ज़रिए गंभीर चिंता में डालने वाली जानकारियां सामने आई है. ये जानकारियां हिजाब मुद्दे से प्रभावित छात्राओं के ड्रॉप-आउट करने के बारें में बात करती हैं. भारत में हिजाब मुद्दे से प्रभावित छात्राओं के शिक्षा के नुकसान को समझने के लिए गहन अध्ययन किया जाना अत्यंत महत्वपूर्ण है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि, “सारांश यह यह है कि युवा मुस्लिम छात्राओं की एक पूरी पीढ़ी के शिक्षा के अधिकार पर हिजाब प्रतिबंध की वजह से संकट उत्पन्न हो गया है. राज्य ने दृढ़ता से तर्क दिया कि हिजाब इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है, और इसलिए “अनुच्छेद 25 के तहत छात्राओं को मिलने वाला आस्था का अधिकार खतरे में नहीं है”, हालांकि राज्य की ओर से पेश किया गया यह तर्क जानबूझकर छात्राओं के अन्य अधिकारों को खतरे में डाल रहा रहा है. हिजाब पहनने का अधिकार सिर्फ धार्मिक अभिव्यक्ति का अधिकार नहीं है, और 2017 में आये पुट्टस्वामी बनाम यूनियन ऑफ इंडियन मामले के फैसले के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि निजता, गरिमा, स्वायत्तता और अभिव्यक्ति के अधिकार का एक अभिन्न अंग है.”

साक्ष्य से स्पष्ट होता है कि कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले से सभी भारतीय नागरिकों को गारंटीकृत अधिकारों का बड़े स्तर पर उल्लंघन किया गया है.

पीयूसीएल की रिपोर्ट में कहा गया है कि, “सरकार ने बिना भेदभाव के शिक्षा का अधिकार, समानता का अधिकार, गरिमा का अधिकार, निजता का अधिकार, अभिव्यक्ति का अधिकार, गैर-भेदभाव का अधिकार और राज्य की मनमानीपूर्ण कार्यवाही से स्वतंत्रता सहित कई अधिकारों का उल्लंघन किया है.”

रिपोर्ट में कहा गया है कि, “विशेष रूप से बिना किसी भेदभाव के शिक्षा के अधिकार के उल्लंघन पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है” यह न सिर्फ एक मौलिक अधिकार है, बल्कि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत राज्य का दायित्व भी है. अनुच्छेद 41 के तहत, राज्य अपनी आर्थिक क्षमता और विकास की सीमा के भीतर, अन्य अधिकारों के साथ शिक्षा के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए प्रभावी प्रावधान करना भी राज्य का दायित्व है.”

पीयूसीएल की रिपोर्ट कहती है कि हिजाब के मुद्दे पर, यह देखना निराशाजनक है कि कर्नाटक राज्य ने कॉलेजो में हिजाब को प्रतिबंधित किया जाना सुरक्षा और अपने संवैधानिक दायित्व को पूरी तरह से नजरअंदाज़ कर दिया.

रिपोर्ट में कहा गया है, “इससे सवाल उठता है कि क्या सरकार अपने संवैधानिक दायित्व की अनदेखी कर रही है.”

रिपोर्ट में कहा गया है कि बाबासाहेब अंबेडकर ने जिसे संवैधानिक नैतिकता कहा है, यहां उसकी भी अवहेलना की गयी है.

रिपोर्ट में बाबा साहेब के हवाले से कहा गया है कि “जैसा कि बाबा साहेब अंबेडकर ने संविधान सभा में तर्क रखा कि ‘सवाल यह है कि क्या हम संवैधानिक नैतिकता के इस तरह के प्रसार को मान सकते हैं? संवैधानिक नैतिकता एक प्राकृतिक भावना नहीं है. इसके बीज बोने पड़ते है. हमें यह समझना चाहिए कि हमारे लोगों ने अभी तक इसे सीखा नहीं है. भारत में लोकतंत्र भारतीय ज़मीन पर बिछाई गई उर्वरक की महज़ एक परत है, जो अनिवार्य रूप से अलोकतांत्रिक है.”

रिपोर्ट में एक बी.कॉम की नौजवान मुस्लिम छात्रा मुस्कान का भी उल्लेख किया गया है, जो अपने कॉलेज परिसर तक अपनी स्कूटी चलाकर कॉलेज में प्रवेश करने से लेकर कॉलेज कैम्पस में भगवा शॉल पहनकर भड़काऊ नारेबाज़ी कर रहे बदमाशों की भीड़ को निडरता से सामना करती दिखाई दी थी. मुस्कान के साथ घटी इस घटना का वीडियो पूरे देश में वायरल हुआ था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि उनका (मुस्कान का) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार, शिक्षा के अधिकार और भेदभाव के खिलाफ स्वतंत्रता के लिए निडरता और गरिमापूर्ण तरीके से खड़े होने के समानता के संवैधानिक सिद्धांतों का प्रतीक है.

पीयूसीएल ने अदालत से इस बात की जांच कराने की मांग की है कि राज्य सरकार ने अचानक इतनी मनमानीपूर्णऔर असंवैधानिक कार्रवाई क्यों की.

रिपोर्ट में कहा गया है कि, “मुख्यमंत्री को हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने वाली अधिसूचना को निर्णायक रूप से रद्द कर देना चाहिए था. इसके अलावा, कर्नाटक सरकार को कॉलेजों के भीतर एक धर्मनिरपेक्ष और गैर-भेदभावपूर्ण सीखने के माहौल को विकसित करने के लिए पर्याप्त उपाय करने चाहिए, जिससे छात्रों को अपनी आस्था और पहचान को पूरी तरह से व्यक्त करने की अनुमति मिल सके और यह सुनिश्चित हो सके कि इस तरह के आश्चर्यजनक उल्लंघन की पुनरावृत्ति न हो.”

पीयूसीएल ने मानवाधिकार आयोग और अल्पसंख्यक आयोग से संबंधित छात्राओं के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए कॉलेजों के प्रिंसिपल और सीडीसी के खिलाफ स्वत: शिकायत दर्ज करने और जल्द से जल्द कार्रवाई शुरू करने की अपील की है.”

पीयूसीएल की रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि, “कानूनी सेवा प्राधिकरण को सभी स्तरों पर इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और छात्राओं को उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए सभी कानूनी सहायता प्रदान करनी चाहिए. इसके अलावा, अदालत को इस आदेश के परिणामस्वरूप हुई समय की बर्बादी और खर्चों की व्यापक जांच करने के लिए सरकार को निर्देश जारी करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्राओं और उनके परिवारों को मुआवज़े का भुगतान किया जाए. साथ ही, सरकार को छात्राओं को तुरंत कक्षाओं में प्रवेश करने की अनुमति देनी चाहिए, और छात्राओं के परामर्श से, उनके लिए विशेष कक्षाओं की व्यवस्था करनी चाहिए.”

पीयूसीएल ने उन मामलों की जांच की भी मांग की है जहां सीडीसी ने अपने जनादेश का उल्लंघन किया था और छात्रों और अभिभावकों को लिखित रूप में निवारण के उचित रूप प्रदान नहीं किए थे, जिन्होंने चिंता व्यक्त की थी और उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी.

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