–मसीहुज़्ज़मा अंसारी
नई दिल्ली | प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में गुरुवार को ईसाई समुदाय के नेताओं, बुद्धजीवियों, और कार्यकर्ताओं ने क्रिसमस पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ईसाई धर्मगुरुओं के साथ भोज को लेकर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि देशभर में ईसाईयों पर हमले हो रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री इन घटनाओं पर ख़ामोश क्यों हैं?
प्रतिरोध के रुप में आयोजित इस पत्रकार वार्ता में ईसाई समुदाय के प्रतिनिधियों, बुद्धजीवियों के साथ-साथ अन्य लोग भी शामिल हुए.
यह प्रतिरोध प्रेस कॉन्फ्रेंस जॉन दयाल, एसी माइकल, मिनाक्षी सिंह, मैरी स्कारिया, प्रो अपूर्वानंद और शबनम हाशमी द्वारा अनहद के बैनर तले आयोजित किया गया था.
ज्ञात हो कि 25 दिसंबर को ईसाईयों के प्रमुख पर्व क्रिसमस के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने ईसाई समुदाय के कुछ चुनिंदा धर्मगुरुओं के साथ भोज किया और उनसे वार्तालाभ किया. इस दौरान प्रधान मंत्री ने कहा कि उनका ईसाई समुदाय के लोगों के साथ पुराना संबन्ध है.
ईसाई धर्मगुरूओं के साथ इस मीटिंग के बाद देशभर के ईसाई समुदाय के अलग अलग संगठन यह सवाल उठा रहे हैं कि प्रधानमंत्री महोदय का ईसाई समुदाय से प्रेम उस समय क्यों नहीं प्रदर्शित होता है जब देशभर में ईसाई समुदाय पर हमले होते हैं?
ईसाई समूह ने कहा कि भारत का नागरिक समाज और ईसाई समुदाय वर्ष 2023 की इन घटनाओं को गौर से देख रहे हैं. जहां इसी साल गर्मियों की शुरुआत में मणिपुर में इंफाल की घाटी में चर्चों को जलाने और ईसाइयों की हत्या की घटना हुई और दूसरी तरफ ईसाई धार्मिक नेताओं के साथ क्रिसमस पर प्रधानमंत्री भोज कर रहे हैं. हालांकि इन दुखद घटनाओं पर एक शब्द नहीं बोला.
ईसाई समुदाय के प्रतिनिधियों ने प्रधान मंत्री से ये सवाल किया है कि चर्चों, ईसाईयों, ईसाई पादरियों और अनुयाइयों पर जब हमले होते हैं और उन पर धर्म परिवर्तन का आरोप लगाकर गिरफ्तार किया जाता है, उन्हें प्रताड़ित किया जाता है तो उस समय प्रधानमंत्री क्यों ख़ामोश रहते हैं?
प्रेस वार्ता में ईसाई समुदाय के लोगों ने कहा कि जिस समय प्रधानमंत्री ईसाई समुदाय से अपने संबंधों का हवाला दे रहे थे उस समय और उस दिन भी देश में ईसाईयों पर हमले हुए, उसके अगले दिन भी हुए लेकिन प्रधान मंत्री ने ईसाईयों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने का कोई आश्वासन नहीं दिया.
कैथोलिक फैडरेशन ऑफ दिल्ली के अध्यक्ष एसी माईकल ने इंडिया टुमारो से बात करते हुए कहा कि हम प्रधानमंत्री मोदी से सिर्फ एक मांग करते हैं कि भाषण के अलावा हमें सुरक्षा प्रदान करने के लिए सार्थक क़दम उठाएं.
उन्होंने कहा कि हर दिन देश के किसी न किसी हिस्से में ईसाईयों को प्रताड़ित करने का मामला सामने आता है. उन्होंने कई रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि इन सभी घटनाओं में हिन्दुत्व वादी संगठन के लोग शामिल होते हैं जिनपर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा गया कि ईसाई समुदाय, जिसमें उसके बिशप और पादरी भी शामिल थे ने गुजरात 2002 और 2008 में कंधमाल, उड़ीसा के बाद सबसे बड़े सांप्रदायिक अपराधों और मानव त्रासदी के स्थल मणिपुर का दौरा करने का पूरे साल प्रधानमंत्री से अनुरोध कर रहे थे. शायद उन्हें समय नहीं मिल सका. उनके गृह मंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री पर छोड़ दें, जिन पर लोगों का आरोप है कि वे नरसंहार से निपटने में लापरवाही बरत रहे हैं.
ईसाई धर्मगुरूओं ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय और भारत के मुख्य न्यायाधीश के हस्तक्षेप के बावजूद, जो एकमात्र काम हुआ वह कुकी ज़ो के शवों का दाह संस्कार और दफ़नाना था जो इंफाल के विभिन्न अस्पतालों में सड़ रहे थे.
उन्होंने कहा कि विभिन्न चर्च समूहों द्वारा संचालित शरणार्थी शिविरों में पचास हजार कुकी-ज़ो लोग कठिन परिस्थितियों में रह रहे हैं, जैसा कि प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने इस महीने राज्य की एक और यात्रा के बाद संसद सदस्यों को लिखे अपने पत्र में कहा है, मानव आपदा विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों को प्रभावित किया है. बेरोज़गारी और कुपोषण पहाड़ी इलाकों में बेरोज़गारी व्याप्त है. निजी सेनाएं राजमार्गों पर शासन करती हैं, पहाड़ों में कोई प्रशासन नहीं है.
एडवोकेट मैरी स्कारिया ने कहा कि देश में खाने और पीने जैसे मुद्दे पर हमारे लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है. हम क्या पहने, क्या खाएं, क्या बोलें इन बातों को लेकर हमारे ऊपर दबाव बनाया जा रहा है और कोई कुछ बोलने वाला नहीं है.
एडवोकेट मैरी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आप लोकतंत्र के चौथे स्तंभ हैं, आप की भी ज़िम्मेदारी बनती है कि जब हमारे ऊपर देशभर में हमले हो रहे हों तो उसको अपने अख़बारों में जगह दें और सत्ता इन हमलों को लेकर सवाल भी करें.
ईसाई विरोधी हिंसा की एक घटना का हवाला देते हुए मैरी ने कहा कि 2023 में एक आदिवासी ईसाई परिवार रात में अपनी बेटी के प्रमोशन को सेलिब्रेट कर रहा था जो आदिवासियों का अपना कल्चर है. तभी RSS, बीजेपी और बजरंगदल के उग्र कार्यकर्ता वहां पहुंचे और उस कार्यकर्म को धर्मपरिवर्तन का आरोप लगाकर तोड़फोड़ की और ईसाई आदिवासियों को गिरफ्तार कर लिया गया.
ईसाई धर्मगुरूओं ने कहा कि बात सिर्फ मणिपुर की नहीं है. समुदाय का उत्पीड़न बड़े पैमाने पर हो रहा है, राष्ट्रवादी धार्मिक नेतृत्व में इसके प्रति नफरत गहरी है. ऐसा लगता है कि सरकार बड़ी संख्या में चर्चों और उसके गैर सरकारी संगठनों के एफसीआरए को वापस लेकर और कार्डिनलों और बिशपों, पादरियों और सामान्य लोगों के खिलाफ जांच एजेंसियों का उपयोग करके इसे अस्तित्व से खत्म करने के लिए उत्सुक है.
प्रेस को संबोधित करते हुए ईसाई समूह ने कहा कि उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में, लगभग 100 पादरी और यहां तक कि सामान्य पुरुष और महिलाएं अवैध धर्मांतरण के आरोप में जेल में हैं. वे केवल जन्मदिन मना रहे थे या रविवार की प्रार्थना कर रहे थे तभी उन पर धर्मांतरण का आरोप लगाकर कार्रवाई की गई.
उन्होंने कहा कि प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ने धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों और ईसाइयों के साथ व्यवहार के लिए भारत को दोषी ठहराया है.
प्रेस वार्ता में यह भी कहा गया कि यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि देश में एक दिन में ईसाईयों पर हमले की दो घटनाएं होती हैं.
कैथोलिक फैडरेशन ऑफ दिल्ली के अध्यक्ष एसी माईकल ने इंडिया टुमारो से कहा कि ईसाइयों पर हमले के मामले में जब हम प्रशासन से मिलते हैं तो हमें आश्वसन दिया जाता है, घटना का विवरण मांगा जाता है. जब हम घटना का विवरण देते हैं तो उसके बाद भी अपराधियों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है.
एसी माईकल ने इन हमलों के कारण पर बात करते हुए इसे राजनितिक ध्रुवीकरण बताया जिसके द्वारा बहुसंख्यकों को अलग प्रकार से संदेश दिया जाता है कि धर्मांतरण पर सरकार कार्रवाई कर रही है.
जॉन दयाल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हमने ईसाइयों पर हमले को लेकर देश भर में अधिकारियों, नेताओं, प्रशासन सभी से मुलाकातें की और इसाइयों पर हमले का प्रमाण पेश किया लेकिन आरोपियों पर कार्रवाई के बजाए सरकार फिर जांच करने की बात कर के ख़ामोश हो जाती है.
प्राे० अपूर्वानंद ने कहा कि कर्नाटक चुनाव में प्रधानमंत्री ने जिस बजरंगदल के समर्थन में नारे लगाए, वही बजरंगदल ईसाइयों पर हमले में शामिल पाए गए हैं और सबसे अधिक कुख्यात है. इसलिए जब प्रधानमंत्री बजरंगदल के समर्थन में नारे लगाते हैं और फिर ईसाई समुदाय से मिलते हैं तो उसे पॉजिटिव वाइब्स नहीं कहते बल्कि इसे धोखेबाजी कहते हैं.
उन्होंने कहा कि पिछले 10 वर्षों में देश के अल्पसंख्यकों में सुरक्षा का आभास दिलाने में सरकार बुरी तरह से फेल रही है.
प्रो अपूर्वानंद ने कहा कि यूरोपीय देशों अमेरिका या कनाडा में सब कुछ सही नहीं है फिर भी यदि अमेरिका में एक हिन्दू, एक मुस्लिम या सिख पर हमला होता है तो वहां का राष्ट्रपति बयान देता है और खेद जताता है, इसी प्रकार कनाडा में यदि एक मुस्लिम पर हमला होता है तो राष्ट्रपति बयान देता है, लेकिन यहां क्या होता है, हमारे सामने है.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री 400 साल पहले जाकर औरंगज़ेब से बदला लेने की बात तो करते हैं लेकिन 4 दिन पहले हुई देश में अल्पसंखयक विरोधी घटना पर एक शब्द नहीं बोलते.
एक घटना का उल्लेख करते हुए प्रो अपूर्वानंद ने कहा कि अमेरिका में एक मंदिर के बाहर दीवार पर कुछ लिख दिया गया तो भारत सरकार का बयान आया और विदेश मंत्री ने इसे मंदिर पर हमला बताया. वहीं विदेशों में गुरुद्वारे पर जब हमले हुए जहां भारतीय सिख प्रार्थना के लिए जाते हैं वहां की घटना पर भारत सरकार का कोई बयान नहीं आया.
उन्होंने कहा कि विदेशों में जहां भारतीय रहते हैं वहां मस्जिदों पर जब हमले होते हैं तो भारत सरकार का बयान नहीं आता. यहां भेदभाव स्पष्ट है और भारतीय सरकार देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी ये बताना चाहती है कि वह केवल हिंदुओं की सरकार है.