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Wednesday, May 1, 2024
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जमाते इस्लामी हिंद ने BJP को सांप्रदायिक एजेंडे और अल्पसंख्यकों के प्रति द्वेष छोड़ने की सलाह दी

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) ने भाजपा को आत्ममंथन करने, सांप्रदायिक एजेंडा और अल्पसंख्यकों के प्रति शत्रुता छोड़ने की सलाह देते हुए हाल के विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद राष्ट्रीय राजनीति के परिदृश्य, विशेष रूप से हिंदी पट्टी में ध्रुवीकरण की रणनीति के उपयोग और जीतने वाली पार्टियों में मुस्लिम प्रतिनिधित्व की अनुपस्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है.

जेआईएच मुख्यालय में मंगलवार को आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों से बात करते हुए जमात-ए-इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने भाजपा को सलाह दी कि वह राष्ट्र निर्माण के प्रति अपनी नीतियों और दृष्टिकोण का वास्तव में आत्मनिरीक्षण करे और अल्पसंख्यकों के प्रति अपने सांप्रदायिक एजेंडे और द्वेष को छोड़े.

प्रोफेसर सलीम ने राजनीतिक नेताओं और पार्टियों से मूल्य-आधारित राजनीति का पालन करने और अभद्र भाषा और ध्रुवीकरण जैसे दुर्भावनापूर्ण व्यवहार से बचने का आग्रह किया. उन्होंने देश में राजनीति के स्तर में लगातार गिरावट, लोकतांत्रिक और नैतिक मूल्यों के हनन और देश में पूंजीपतियों, अपराधियों और सांप्रदायिक और फासीवादी शक्तियों के लगातार बढ़ते प्रभुत्व पर भी गहरी चिंता व्यक्त की.

इस प्रेस वार्ता में जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष इंजीनियर मोहम्मद सलीम और मलिक मोतसिम ख़ान के साथ जमाते इस्लामी के मीडिया सचिव सोहैल के के भी मौजूद रहे.

प्रोफेसर मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने अहमदाबाद में जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की केंद्रीय सलाहकार परिषद् के तीन-दिवसीय बैठक (24 से 26 नवंबर 2023) में पारित प्रस्ताव पर भी चर्चा की. बैठक में तीन प्रस्ताव- गाज़ा में तुरंत स्थायी युद्धविराम, चुनावी बांड में पारदर्शिता और नौकरशाही के राजनीतिक दुरुपयोग पर चर्चा की गयी थी.

उनहोंने बताया कि पिछले 75 वर्षों से फ़िलिस्तीन पर इज़राइली आक्रामकता हाल में युद्ध के सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मानवाधिकारों के उल्लंघन के सबसे दयनीय स्तर पर पहुंच गई है. आम जनों और निहत्थे नागरिकों, विशेषकर निर्दोष बच्चों और महिलाओं का नरसंहार, अस्पतालों और स्कूलों पर अंधाधुंध बमबारी, और ऐसे अन्य क्रूर कृत्यों को देखते हुए मांग है कि इजरायली प्रधानमंत्री पर अंतरराष्ट्रीय अदालत में मुकदमा चलाया जाए.

प्रस्ताव पर चर्चा करते हुए कहा कि, इजराइल की इन बर्बर कार्रवाइयों पर तुरंत प्रतिबंध लगाकर स्थायी युद्धविराम लागू किया जाए. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय फिलिस्तीनी मुद्दे के उचित समाधान के लिए गंभीर प्रयास करे और एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की बहाली सुनिश्चित करे.

उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया से बड़ी संख्या में निष्पक्ष विचारधारा वाले लोगों ने इजरायली आक्रामकता की निंदा और फिलिस्तीनी लोगों का समर्थन किया है और साथ ही पूर्व की तरह हमारे देश के आम लोगों, गैर सरकारी संगठनों और सच का साथ देने वाले कई मीडिया संगठनों ने भी फिलिस्तीनी लोगों का पूरा समर्थन किया है.

प्रेस वार्ता में मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि जमाअत देश की राजनीति में लगातार गिरावट और लोकतांत्रिक और नैतिक मूल्यों के उल्लंघन पर गहरी चिंता व्यक्त करती है. देश की व्यवस्था पर पूंजीपतियों, अपराधियों, फिरकापरस्तों और फासीवादी ताकतों का वर्चस्व लगातार बढ़ रहा है.

बैठक में यह भी महसूस किया गया कि चुनावी फंडिंग के लिए चुनावी बांड की मौजूदा गैर-पारदर्शी प्रणाली सत्तारूढ़ दल के चुनाव फंड में असाधारण वृद्धि का कारण बन रही है, जिसका दोष चुनाव के दौरान दिखाई देने लगी हैं. यह स्थिति न केवल देश में लोकतंत्र को कमज़ोर कर रही है, बल्कि इसके कारण सत्ता पर पूंजीपतियों की पकड़ मजबूत होती जा रही है.

उनहोंने कहा कि इस बैठक में देश के प्रमुख सरकारी संस्थानों, विशेष रूप से सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो), ईडी (प्रवर्तन निदेशालय), आयकर विभाग, पुलिस प्रशासन, नौकरशाही और राज्य के राज्यपालों के कार्यालयों आदि का राजनीतिक उद्देश्यों के लिए के उपयोग पर चिंता व्यक्त की गई. बैठक में नौकरशाही के राजनीतिक इस्तेमाल से बचने और इन प्रतिष्ठित सरकारी संस्थानों की गरिमा और स्वायत्तता को बहाल करने की मांग की गयी.

प्रेस कांफ्रेंस में उच्च शिक्षा में मुस्लिम पंजीयन विषय पर चर्चा करते हुए जमाअत-ए -इस्लामी हिन्द के मीडिया सचिव सोहैल के के ने बताया कि 18 से 23 वर्ष के आयु वर्ग के मुस्लिम छात्रों का उच्च शिक्षा में पंजीयन में भारी कमी आयी है जो चिंता का कारण है.

उनहोंने यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) और ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन (AISHE) से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति देखी गई है कि ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा में मुस्लिम छात्रों का नामांकन प्रतिशत पिछली कक्षाओं की तुलना में कम है.

सुहैल के के ने बताया कि, छठी कक्षा से मुस्लिम छात्रों का प्रतिनिधित्व धीरे-धीरे कम होने लगता है और ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा में सबसे कम होता है. उच्च प्राथमिक स्तर [कक्षा VI-VIII] पर कुल (सभी समुदायों) 6.67 करोड़ छात्रों के नामांकन में से, मुस्लिम लगभग 14.42% हैं. माध्यमिक स्तर [कक्षा IX-X] पर यह कुछ कम होकर 12.62% हो जाता है. उच्च माध्यमिक स्तर [कक्षा XI-XII] तक यह घटकर 10.76% हो गया है.

आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, सरकार को मुस्लिम छात्रों के वित्तीय बोझ को कम करने के लिए विशेष रूप से छात्रवृत्ति, अनुदान और वित्तीय सहायता के अवसरों की संख्या में वृद्धि करनी चाहिए.

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