अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो
लखनऊ | उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के मड़ौली में अतिक्रमण हटाने के अभियान में मां-बेटी की जलकर हुई मौत के मामले की जांच के लिए यूपी सरकार ने एसआईटी गठित की है जिसे एक सप्ताह में रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है। इस मामले को लेकर “स्वदेश और प्रयाग कानूनी सहायता क्लिनिक” नामक संस्था ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की है और घटना की सीबीआई जांच कराने की मांग की है।
एसआईटी दो सदस्यीय है, इसमें कानपुर के मंडलायुक्त डॉ. राजशेखर और कानपुर जोन के एडीजी आलोक सिंह शामिल हैं। एसआईटी इस घटना में दर्ज कराई गई एफआईआर और पूरे मामले की तथ्यात्मक स्पष्ट जांच कर एक सप्ताह में यूपी शासन को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।
इस मामले में यूपी सरकार ने एसआईटी जांच बैठाई है, वहीं कानपुर देहात की डीएम नेहा जैन ने मजिस्ट्रेटी जांच बैठाई है।
इसी बीच रूरा थानाध्यक्ष दिनेश गौतम को भी निलंबित कर दिया गया है। कमिश्नर डॉ. राजशेखर ने मृतका के दोनों बेटों को 5-5 लाख रुपए की चेक सौंपी है। पुलिस अधीक्षक बीबीजीटीएस मूर्ति ने इस घटना के लिए माफी मांगी है।
ज्ञात हो कि कानपुर देहात जिले में मड़ौली गांव में 13 फरवरी को अतिक्रमण हटाने के दौरान झोपड़ी में आग लगने से कृष्ण गोपाल दीक्षित की पत्नी और बेटी की जलकर मौत हो गई थी। इस मामले में प्रशासन के अधिकारी और पुलिस अधिकारी तथा राजस्व विभाग के कर्मचारी एवं अधिकारी और पुलिस फोर्स मूक दर्शक होकर खड़ा तमाशा देखता रहा और मां-बेटी की आग में जलकर मौत हो गई थी।
इस ह्रदय विदारक घटना के बाद कानपुर देहात जिले की डीएम नेहा जैन ने अपनी नाकामी को छिपाने के लिए मृतक मां-बेटी को ही अपनी मौत का जिम्मेदार ठहराया था। लेकिन मामले के तूल पकड़ने के बाद और यूपी सरकार के बैकफुट पर आने के बाद इस मामले में लीपापोती शुरू की गई थी।
यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक द्वारा इस मामले को अपने हाथ में लेकर इसको हल करने का प्रयास किया गया था, जिसके बाद तेजी के साथ इस मामले में एसडीएम, लेखपाल समेत एक दर्जन लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी और एसडीएम और लेखपाल को निलंबित किया गया था तथा बाद में लेखपाल अशोक सिंह को गिरफ्तार किया गया था।
CBI जांच की मांग को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल
इस मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक पत्र याचिका दाखिल की गई है और हाईकोर्ट से इस मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की गई है। याचिका को “स्वदेश और प्रयाग कानूनी सहायता क्लिनिक” नामक संस्था ने दायर किया है। इस याचिका को संस्था के अध्यक्ष राम प्रकाश द्विवेदी के माध्यम से दायर किया गया है।
याचिका में याचिकाकर्ता गौरव द्विवेदी के वकील ने दावा किया है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बयान जारी किया था कि भू-माफियाओं के खिलाफ शुरू किए गए अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान किसी भी गरीब व्यक्ति को निशाना नहीं बनाया जाएगा।
इसके अलावा यदि ऐसे व्यक्तियों के पास जमीन नहीं है, तो प्रशासन द्वारा उनका पुनर्वास किया जाएगा, जो उन्हें आश्रय प्रदान करेगा और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करेगा। इसलिए इसे (कानपुर की घटना को) देखते हुए याचिकाकर्ता की इस याचिका को जनहित याचिका के रूप में माना जाए और इस मामले में सीबीआई जांच करवाई जाए।
ज़िम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई
इस मामले में एसडीएम, लेखपाल, रूरा थानाध्यक्ष दिनेश गौतम, बुलडोज़र चालक और दर्जनों लोगों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की गई थी। डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने स्वयं मृतक महिला के पुत्र शिवम से मोबाइल पर बात की थी, तब मामला सुलझता हुआ नज़र आया था।
डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने मृतका के पुत्र शिवम को हर संभव मदद करने का आश्वासन दिया था। इसके बाद ही 24 घण्टे के बाद पोस्टमार्टम हुआ था और तीसरे दिन मृतक मां-बेटी के शव अंतिम संस्कार के लिए ले जाए गए थे।
विपक्षी दलों को घटनास्थल जाने से रोका गया
इस घटना के बाद यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष बृजलाल खाबरी और प्रांतीय अध्यक्ष नसीमुद्दीन सिद्दीकी और अन्य कांग्रेस नेता इस घटना के विरोध में उतर आए थे और इन्होंने मड़ौली कूच कर दिया था, लेकिन यूपी सरकार के इशारे पर इनको रास्ते में ही रोंक दिया गया था और मड़ौली नहीं जाने दिया गया था। इन कांग्रेस नेताओं ने यूपी सरकार की इस मामले में कड़ी आलोचना करते हुए कहा था कि पीड़ित परिवार के साथ न्याय किया जाए।
इसी प्रकार सपा ने इस घटना के विरोध में योगी आदित्यनाथ की सरकार को कठघरे में खड़ा किया था और सपा के विधानसभा में मुख्य सचेतक डॉ मनोज पांडेय मड़ौली के लिए चल पड़े थे। लेकिन उनको भी यूपी सरकार के इशारे पर प्रशासन ने मड़ौली नहीं जाने दिया। मनोज पांडेय मड़ौली जाने की जिद पर अड़े रहे और जब प्रशासन ने उन्हें नहीं जाने दिया, तो वह बीच सड़क पर ही धरना देकर बैठ गए।
डॉ. मनोज पांडेय ने कहा है कि, “यह घटना शर्मसार करने वाली है। कोरे आश्वासनों से पीड़ित परिवार को न्याय नहीं मिलेगा। भाजपा सरकार इस मामले में डीएम और एसपी को भी आरोपी बनाए और उनके खिलाफ कार्यवाही करते हुए उनको निलंबित करे। पीड़ित परिवार को 5 करोड़ रुपए दिया जाए और परिवार के दो सदस्यों को नौकरी दी जाए.”
एसआईटी जांच के आदेश के बाद मजिस्ट्रेटी जांच का निर्णय
यूपी की योगी आदित्यनाथ की सरकार अब मड़ौली की इस घटना को खत्म करने यानी शांत करने के लिए सक्रिय हो गई है। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इस मामले की जांच के लिए एक एसआईटी गठित कर दी है और एसआईटी से एक सप्ताह में जांच कर रिपोर्ट देने के लिए कहा है।
कानपुर देहात की डीएम नेहा जैन ने भी इस मामले की जांच कराने का निर्णय लिया है। डीएम नेहा जैन ने एडीएम वित्त एवं राजस्व जेपी गुप्ता को इस मामले की मजिस्ट्रेटी जांच सौंपी है। डीएम नेहा जैन ने इस मामले की गम्भीरता को देखते हुए जल्द से जल्द जांच रिपोर्ट देने के लिए कहा है।
जब एसआईटी जांच करेगी, तो मजिस्ट्रेटी जांच का मतलब कुछ समझ में नहीं आता है। दो तरह की जांच का क्या औचित्य है। डीएम नेहा जैन की भूमिका इस मामले में ठीक नहीं है। इसलिए वह अपने को बचाने के लिए मजिस्ट्रेटी जांच भी करवा रही हैं।
दो जांचे करवा कर लगता है कि इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा। इस मामले में सरकार की नीयत साफ नहीं मालूम होती है। जब सरकार ने एसआईटी गठित कर दी है, तो फिर मजिस्ट्रेटी जांच की क्या जरूरत है?
योगी सरकार बैकफुट पर
कानपुर देहात जिले के मड़ौली की घटना से योगी आदित्यनाथ की सरकार बैकफुट पर आ गई है। योगी आदित्यनाथ की सरकार इस मामले को जल्द से जल्द निबटाना चाहती है।इसीलिए योगी आदित्यनाथ ने इस मामले पर एसआईटी गठित की है और एक सप्ताह में इसकी जांच कर रिपोर्ट देने को कहा है।
लेकिन जिस तरह डीएम नेहा जैन अपने को बचाने के लिए बीच में कूद पड़ी हैं और अपने मातहत एडीएम से मजिस्ट्रेटी जांच करवा रही हैं, वह जांच योगी आदित्यनाथ की सरकार के लिए गले की फांस बन सकती है।
इसकी वजह यह होगी कि एसआईटी जांच को सही माना जाए या मजिस्ट्रेटी जांच को। इस स्थिति में योगी आदित्यनाथ सरकार की अभी और फजीहत होगी तथा भाजपा से ब्राम्हणों की दूरी बढ़ेगी। अब देखना यह है कि योगी आदित्यनाथ की सरकार इस मामले में संकट से कैसे उबरती है।