अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो
लखनऊ | लखीमपुर खीरी हिंसा कांड के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा की ज़मानत का सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार ने विरोध किया है और कहा है कि आशीष मिश्रा को ज़मानत देने से समाज में गलत संदेश जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जे के माहेश्वरी की पीठ में हुई। इस पीठ के सामने यूपी की अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने आशीष मिश्रा की ज़मानत का विरोध करते हुए और अपना पक्ष रखते हुए कहा कि, “यह एक गम्भीर व जघन्य अपराध है और ज़मानत देने से समाज में गलत संदेश जाएगा।”
सुप्रीम कोर्ट में आशीष मिश्रा की ज़मानत याचिका का विरोध करने वालों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ एडवोकेट दुष्यंत दवे ने भी आशीष मिश्रा को ज़मानत दिए जाने का विरोध किया। दुष्यंत दवे ने भी कहा कि, “ज़मानत देने से समाज में गलत सन्देश जाएगा।”
उन्होंने कहा कि, “यह एक साज़िश और सुनियोजित हत्या है। मैं इसे चार्जशीट से दिखाऊंगा। वह एक शक्तिशाली व्यक्ति का बेटा है, जिसका प्रतिनिधित्व एक शक्तिशाली वकील कर रहा है।”
आशीष मिश्रा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दुष्यंत दवे की इस दलील का कड़ा विरोध किया। मुकुल रोहतगी ने कहा कि, “यह क्या है? कौन शक्तिशाली है? हम हर दिन पेश हो रहे हैं। क्या यह ज़मानत नहीं देने की शर्त हो सकती है।”
उन्होंने कहा कि, “उनका मुवक्किल एक साल से अधिक समय से हिरासत में है और जिस तरह से सुनवाई चल रही है, उसके पूरा होने में सात से आठ साल लग जाएंगे।”
मुकुल रोहतगी ने अपनी बात रखते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ से कहा कि, “इस मामले में जगजीत सिंह शिकायतकर्ता हैं कोई चश्मदीद गवाह नहीं। उनकी शिकायत सुनी-सुनाई बातों पर आधारित है। मैं हैरान हूं कि लोगों का एक बड़ा तबका कहता है कि हमने लोगों पर बेरहमी से गाड़ी चला दी। प्राथमिकी जिस व्यक्ति के बयान के आधार पर दर्ज की गई है वह चश्मदीद नहीं है.”
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद और वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे तथा वरिष्ठ एडवोकेट मुकुल रोहतगी की दलील सुनने के बाद कहा कि, “हम फैसला सुनाएंगे।” सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, “किसी आरोपी को अनिश्चितकाल के लिए जेल में नहीं रखा जाना चाहिए, जब तक कि वह दोषी न साबित हो जाए।”
सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले में एक अन्य याचिका पर कहा कि, “सबसे ज्यादा पीड़ित वे किसान हैं, जो जेल में बंद हैं।” जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि, “यह केवल एक याचिकाकर्ता हमारे समक्ष नहीं है। पिछले 19 साल में मेरा सिद्धान्त रहा है कि मैं केवल उस पीड़ित को नहीं देखता जो मेरे समक्ष मौजूद है, मैं उन पीड़ितों को भी देखता हूं जो अदालत नहीं आ सकते और सबसे अधिक पीड़ित वही हैं। आप चाहते हैं कि हम खुलकर बोलें।”
उन्होंने कहा कि, “सबसे अधिक पीड़ित वे किसान हैं जो जेल में बंद हैं। उनका पक्ष कौन रखेगा। अगर इस व्यक्ति को कुछ नहीं (ज़मानत) दिया गया, तो उन्हें भी कोई कुछ नहीं देगा। वे भी आने वाले समय में जेल में रहेंगे। निचली अदालत ने पहले ही उनकी ज़मानत याचिका खारिज कर दी है।”
इसीके साथ सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का फैसला सुरक्षित कर लिया है।
लखीमपुर खीरी हिंसा कांड के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा की ज़मानत याचिका का यूपी सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में विरोध किए जाने पर राज्य के राजनैतिक हल्के में आश्चर्य जताया जा रहा है। राजनीतिक विशेषज्ञ कह रहे हैं कि अब यूपी सरकार इस मामले से अपना पीछा छुड़ाना चाहती है, इसीलिये यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इसका विरोध किया है।
योगी आदित्यनाथ की सरकार अब चाहती है कि लखीमपुर खीरी हिंसा कांड का मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा जेल में ही रहे, जिससे लखीमपुर खीरी के हिंसा मामले को लेकर अब किसान राज्य सरकार के खिलाफ किसी तरह का कोई आंदोलन न करें।