इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | दिलीप कुमार के नाम से मशहूर फिल्म अभिनेता मोहम्मद यूसुफ खान का आज 98 साल की उम्र में निधन हो गया.
उन्होंने अपनी अंतिम सांसे मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में ली, जहां वे पिछले कई दिनों से भर्ती थे.
उनके निधन के बारे में उनके एक दोस्त फैसल फारूकी ने दिलीप कुमार के इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक संदेश साझा कर सूचना दी.
कुमार के इंस्टाग्राम अकाउंट से घोषणा की गई कि, “भारी मन और गहरे दुख के साथ यह सूचना दी जा रही है कि कुछ मिनट पहले हमारे प्यारे दिलीप साहब का निधन हो गया है. हम ईश्वर के हैं और हमें उसी की ओर लौटना है.”.
“ट्रेजेडी किंग” के रूप में जाने जाने वाले और एक्टिंग में बड़ा नाम कमाने वाले दिलीप कुमार साहब का फिल्मों में करियर पांच दशकों से अधिक समय तक चला.
हालांकि, उनके व्यक्तित्व और निजी ज़िंदगी का एक दूसरा पहलू भी है. उनके जीवन की एक घटना है कि जब वह पैसे कमाने के लिए मुंबई में अपना घर छोड़ कर पुणे चले गए तो वहां उन्हें आर्मी कैंटीन में नौकरी मिल गई जहां वह सैंडविच बनाने का काम करते थे. जल्द ही, वह और उनका सैंडविच दोनों बहुत मशहूर हो गए.
1940 के दशक की शुरुआत में जब भारत में आज़ादी की लड़ाई अपने चरम पर थी तब एक दिन, उन्होंने महसूस किया कि स्वतंत्रता संग्राम एक अहम आंदोलन है. एक दिन वे उस जगह गए जहाँ स्वतंत्रता सेनानी सभा कर रहे थे और लोगों को संबोधित किया.
अपनी आत्मकथा दिलीप कुमार-द सबस्टेंस एंड शैडो में दिलीप कुमार ने लिखा है कि उनके संबोधन के बाद, उन्हें पुलिस ने उठा लिया और यरवदा जेल में रखा जहाँ पहले से ही कई ‘सत्याग्रही’ कैद थे. उन्हें “गांधीवादी” कहा जाता था. दिलीप साहब ‘गांधीवादी’ या महात्मा गांधी के अनुयायियों में से एक हो गए. इस प्रकार वह एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे, यह एक ऐसा तथ्य है जिस से बहुत लोग अपरिचित होंगे.
जेल में रहते हुए उन्हें अन्य कैदियों ने बताया कि सरदार वल्लबभाई पटेल और अन्य लोग अंग्रेजों की नीतियों के खिलाफ अनशन पर हैं. इसलिए उन्होंने अन्य ‘सत्याग्रहियों’ के साथ उपवास भी किया.
दिलीप साहिब के पिता गुलाम सरवर खान और दादा हाजी मोहम्मद खान भी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उत्तर पश्चिम सीमांत के पेशावर में कांग्रेस से जुड़े थे.
दिलीप साहब तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से बहुत प्रभावित थे और नेहरू भी उन्हें बहुत पसंद करते थे. दिलीप साहब ने मुंबई में कांग्रेस उम्मीदवारों के समर्थन में कई राजनीतिक रैलियों को भी संबोधित किया. पंडित नेहरू ने खासतौर पर दिलीप साहिब को कृष्णा मेनन के लिए प्रचार करने के लिए कहा था, जो समाजवादी आचार्य कृपलानी के खिलाफ खड़ी हुई थी. बाद में भी उन्होंने कई कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए राजनीतिक रैलियों को संबोधित किया. 1967 में उन्होंने बारामती विधानसभा क्षेत्र में शरद पवार के लिए प्रचार किया.
वह वर्ष 2000 से 2006 तक राज्यसभा सदस्य रहे. उन्होंने अपने एम पी एल ए डी फंड का इस्तेमाल महाराष्ट्र में झुग्गी बस्तियों और प्राथमिक स्कूलों के विकास के लिए किया.
बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद 1993 के मुंबई दंगों ने दिलीप कुमार को बहुत विचलित कर दिया था. उन्होंने मुंबई में शांति बहाल करने के लिए 10,000 से अधिक लोगों के एक जुलूस में हिस्सा लिया. दिलीप कुमार तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव से मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल का भी हिस्सा थे, वो मुलाकात मुंबई को धार्मिक नफरत से बचाने के लिए की गई थी.