सैयद ख़लीक अहमद | इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | दिल्ली के पूर्वी निज़ामुद्दीन में एडवोकेट महमूद प्राचा के कार्यालय पर गुरुवार को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के छापे के बाद कई दिल्ली दंगा पीड़ितों ने प्रेस वार्ता कर यह आरोप लगाया है कि पुलिस उन पर दबाव बना रही है कि वे दंगों से सम्बन्धित अपने केस को वापस लें या इस मामले में एडवोकेट महमूद प्राचा को अपना वकील न बनाएं.
यह भी आरोप है कि पुलिस द्वारा दूसरे वकील का सुझाव भी दिया गया है.
ये आरोप गुरुवार को एडवोकेट प्राचा के कार्यालय पर दिल्ली पुलिस की टीम के द्वारा छापा मारने के बाद दिल्ली दंगा पीड़ितों द्वारा की गई एक प्रेस कॉन्फ्रंस में लगाए गए. 24 दिसंबर को दोपहर 12 बजे शुरू हुई दिल्ली पुलिस की तलाशी 25 दिसंबर की सुबह 3 बजे के तक जारी रही.
प्रेस वार्ता में शामिल पीड़ितों में से एक शख़्स ने अपना नाम वसीम बताते हुए कहा कि, उसे फरवरी में दंगों के दौरान पुलिस द्वारा सार्वजनिक रूप से पीटा गया था और राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर किया गया था. उन्हें राष्ट्रगान गाने के लिए इसलिए मजबूर किया गया था क्योंकि नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) के विरोध में लगभग सभी स्थानों पर प्रदर्शनकारियों ने व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से नए नागरिक कानून के खिलाफ लोगों को एकत्रित कर राष्ट्रगान गाया था.
उन्होंने कहा कि जब वह शाहदरा जिले के ज्योति नगर पुलिस स्टेशन में गए तो पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से इन्कार कर दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने उन्हें झूठे मामलों में फंसाने की धमकी दी है कि अगर वह एफआईआर दर्ज करवाने की कोशिश की तो जिंदगी बर्बाद कर देंगे.
वसीम ने कहा कि जब किसी ने उन्हें एडवोकेट प्राचा के बारे में बताया तो वह उनके पास गए और प्राचा द्वारा उनका मामला उठाने के बाद आखिरकार एक एफआईआर दर्ज की गई.
वसीम ने आरोप लगाया कि पुलिस अब उनसे एडवोकेट प्राचा से सम्पर्क न करने के लिए दबाव बना रही है.
पुलिस की पिटाई के कारण अपनी एक आंख खो देने वाले एक अन्य दंगा पीड़ित मोहम्मद नासिर खान ने आरोप लगाया कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से संपर्क करने और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखने के बावजूद उनके मामले में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई. उनका कहना है कि एफआईआर महमूद प्राचा के हस्तक्षेप के बाद ही दर्ज की गई थी लेकिन पुलिस अब उनसे केस वापस लेने के लिए कह रही है या फिर पुलिस द्वारा ऑफर किए गए वकील करने का दबाव बना रही है.
उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस उन्हें धमकी दे रही है कि अगर वह प्राचा को ही इस मामले में वकील रखते हैं तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे. उनका कहना है कि पुलिस ऐसा उनके मामले को कमजोर करने के लिए कर रही है. उन्होंने बताया कि पुलिस ही नहीं बल्कि उनकी एफआईआर में नामजद आरोपियों ने भी उन्हें धमकाया है.
प्रेस से बात करते हुए घोंडा के रहने वाले एक दंगा पीड़ित साहिल परवेज़ ने कहा कि, “दंगों के दौरान उन पर हमले के दो महीने बाद उनके मामले में आरोपियों के खिलाफ प्राचा के दखल के बाद एफआईआर दर्ज की गई. उन्होंने कहा कि एडवोकेट प्राचा के प्रयासों से अब तक 16 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
दंगों में मारे गए महबूब आलम के एक रिश्तेदार ने कहा कि, उन्हें पुलिस ने जेल में बंद कर दिया क्योंकि वह आलम के परिवार के सदस्यों की मदद करने के लिए एडवोकेट प्राचा के सहयोग से आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराने की कोशिश कर रहे थे. उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस उन्हें लिखित में एक बयान देने के लिए दबाव बना रही थी कि आलम के मामले में एडवोकेट प्राचा ने एक झूठी शिकायत तैयार की थी. उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने उन्हें आश्वासन भी दिया कि अगर वह पुलिस का कहा मानते हैं तो उनके खिलाफ मामला रद्द कर दिया जाएगा.
प्रेस वार्ता में एक अन्य पीड़ित फिरोज़ अख्तर ने कहा कि, पुलिस उन्हें लगातार एडवोकेट प्राचा से सम्पर्क ख़त्म करने के लिए कह रही है. मुस्तफाबाद के खुर्शीद सैफी, जिनकी दंगों के दौरान उन पर हुए हमले के कारण एक आंख की रौशनी चली गई, ने कहा कि यह पुलिस ही है जो उनके अधिवक्ता को बदलने और प्राचा के अलावा किसी अन्य से केस में मदद लेने के लिए दबाव डाल रही है. अकरम, जिनके दोनों हाथों को दंगों में काट दिया गया था, ने कहा कि सादे कपड़ों में पुलिसकर्मी उनके घर आए और उन्हें धमकाया कि यदि उन्होंने एडवोकेट प्राचा से सम्पर्क ख़त्म नहीं किया तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे.
पुलिस ने घोंडा में मोहम्मद सलीम के घर में लूटपाट के मामले में एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया था. उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने उस वक्त उनके खिलाफ पांच मामले दर्ज कर दिए जब उन्होंने उनके घर की लूटपाट में शामिल आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए पुलिस से संपर्क किया. उन्होंने बताया कि अंतत: एडवोकेट प्राचा के हस्तक्षेप करने पर एफआईआर दर्ज की गई. उन्हें पुलिस द्वारा केस वापस लेने या केस से एडवोकेट प्राचा को हटाने के लिए भी कहा जा रहा है.
भजनपुरा पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आने वाले इलाके की रहने वाली समीना उर्फ शन्नो ने कहा कि, उपद्रवियों ने उके घर पर हमला किया और आग लगाने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने इस मामले में एफआईआर दर्ज नहीं की. शन्नो ने आरोप लगाया कि जब उन्होंने आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए एडवोकेट प्राचा की मदद से अदालत का रुख किया तो आरोपी ने उसके बेटे को सड़क दुर्घटना में मारने की कोशिश की. उसके पति मोहम्मद सलीम को बंदूक की नोक पर आईएसबीटी फ्लाईओवर पर रोक दिया गया और उनके मोबाइल फोन को छीन लिया गया जिसमें आरोपियों द्वारा उनके घर पर हमला करने के वीडियो फुटेज थे. एफआईआर दर्ज होने के बावजूद पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया.
शन्नो ने बताया कि 8 अगस्त को आरोपी फिर से उनके घर आया और उन्हें व परिवार के अन्य सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार किया. जब वह शिकायत दर्ज कराने के लिए अपनी बेटी के साथ भजनपुरा पुलिस स्टेशन गई तो ड्यूटी पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने उन्हें घसीटा और उनके साथ बुरी तरह मारपीट की.