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Saturday, May 4, 2024
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दिल्ली हाईकोर्ट ने मौलाना आज़ाद एजुकेशन फाउंडेशन को बंद करने के फैसले पर लगाया स्टे

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यक छात्रों और संस्थानों को शैक्षिक सहायता प्रदान करने वाले संगठन मौलाना आज़ाद एजुकेशन फाउंडेशन (एमएईएफ) को बंद करने की केंद्र सरकार की योजना पर रोक लगा दी है.

कुछ भारतीय नागरिकों के एक समूह द्वारा दायर याचिका पर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने यह स्थगन आदेश दिया.

याचिका में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें एमएईएफ को बंद करने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया गया था.

खंडपीठ ने मंत्रालय को इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने और एमएईएफ की कल्याणकारी योजनाओं की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में बताने का भी निर्देश दिया.

इस मामले को आगे की सुनवाई के लिए 12 मार्च तय करते हुए, पीठ ने सरकार को इस बीच फाउंडेशन को बंद करने की दिशा में कोई कदम उठाने के प्रति सावधान किया.

अदालत ने विशेष रूप से निर्देश दिया कि एमएईएफ की आम सभा द्वारा पारित प्रस्ताव पर अगली सुनवाई तक कार्रवाई नहीं की जा सकती. पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा को 11 मार्च तक एक संक्षिप्त हलफनामा दाखिल करने का भी निर्देश दिया.

केंद्रीय वक्फ परिषद के 21 जनवरी के प्रस्ताव के बाद, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने 7 फरवरी को एमएईएफ को बंद करने का अचानक आदेश जारी किया था, मंत्रालय के इस अस्पष्ट फैसले की वजह से विवाद छिड़ गया था.

यह याचिका पद्मश्री पुरस्कार विजेता डॉ. सैयदा सैय्यदैन हमीद, सामाजिक कार्यकर्ता जॉन दयाल और सरदार दया सिंह सहित कई प्रबुद्ध नागरिकों के एक समूह द्वारा दायर की गई.

याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले आनंद ग्रोवर और फ़ुज़ैल अहमद अय्यूबी सहित वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि एमएईएफ ख़ासतौर पर शैक्षिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों की योग्य लड़कियों को लगातार छात्रवृत्ति प्रदान करता रहा है.

उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि एमएईएफ के बंद होने से ये छात्र एक अहम शैक्षिक सहायता से वंचित हो जाएंगे.

याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार के इस फ़ैसले से मुस्लिम समुदाय के गरीब, ज़रूरतमंद, और मेधावी छात्र-छात्राओं का काफ़ी नुकसान होगा. याचिका में यह भी कहा गया है कि एमएईएफ़ को बंद करने का प्रस्ताव देना, सेंट्रल वक्फ़ काउंसिल के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता. एमएईएफ़, सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत रजिस्टर्ड है.

1989 में स्थापित मौलाना आज़ाद एजुकेशन फाउंडेशन- MAEF एक सरकारी वित्त पोषित संगठन है जो मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय छात्रवृत्ति जैसी छात्रवृत्ति योजनाओं और अल्पसंख्यक शिक्षा के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों को अनुदान प्रदान करता है.

हालाँकि, इस फ़ेलोशिप को केंद्र सरकार ने 2022 में बंद कर दिया था. फाउंडेशन गैर-सरकारी संगठनों के लिए अनुदान सहायता, मेधावी लड़कियों के लिए मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय छात्रवृत्ति और मौलाना आज़ाद मेमोरियल व्याख्यान और जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से सेवाएं प्रदान करता है.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि फाउंडेशन ने भारत में मुसलमानों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

मंत्रालय ने एमएईएफ को बंद करने के केंद्रीय वक्फ परिषद (सीडब्ल्यूसी) के प्रस्ताव पर कार्रवाई की. हालाँकि, याचिकाकर्ताओं ने प्रस्ताव की वैधता का विरोध करते हुए तर्क दिया कि सीडब्ल्यूसी एक कार्यकारी निकाय नहीं है.

उन्होंने आगे तर्क दिया कि एमएईएफ के धन और संपत्तियों को स्थानांतरित करने के मंत्रालय के आदेश ने सोसायटी पंजीकरण अधिनियम और फाउंडेशन के अपने नियमों का उल्लंघन किया है.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि फाउंडेशन को बंद करने में उचित तर्क का अभाव है और इससे एमएईएफ द्वारा सेवा प्राप्त समुदाय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. याचिकाकर्ताओं ने ऐसे निर्णयों में पारदर्शिता और कानूनी प्रक्रियाओं के पालन की ज़रूरत पर ज़ोर दिया.

अधिवक्ताओं – ग्रोवर और अय्यूबी – ने शिक्षा और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के समर्थन में एमएईएफ की महत्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर दिया. 2003 और 2022 के बीच, लगभग 13,000 लड़कियों को MAEF छात्रवृत्ति से 884 करोड़ रुपए दिए गए और 1994 से, फाउंडेशन ने गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से 1600 से अधिक परियोजनाओं के लिए अनुदान सहायता प्रदान की है.

ग्रोवर ने तर्क दिया कि सीडब्ल्यूसी अस्तित्वहीन है और निर्णय लेने की प्रक्रिया हितों के टकराव को दर्शाती है. उन्होंने बताया कि मंत्रालय के एक निदेशक के पास सीडब्ल्यूसी में सचिव का अतिरिक्त प्रभार था. उन्होंने तर्क दिया कि धन और संपत्ति के प्रस्तावित हस्तांतरण ने प्रासंगिक कानूनों और विनियमों का उल्लंघन किया है.

सामाजिक कार्यकर्ताओं और समुदाय के नेताओं ने वंचित महिलाओं, विशेषकर मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सेवा करने वाले गैर-लाभकारी संगठन को बंद करने के फैसले की आलोचना की.

उन्होंने इसे खत्म करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी के बारे में भी चिंता जताई, जिसमें फाउंडेशन के लिए पूर्णकालिक सचिव और स्वतंत्र बोर्ड सदस्यों की अनुपस्थिति भी शामिल है.

उन्होंने फाउंडेशन की संपत्ति और कर्मचारी देनदारियों को केंद्रीय वक्फ परिषद जो खुद पूरी तरह से गठित नहीं है, को हस्तांतरित करने की वैधता पर सवाल उठाया.

अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी को लिखे पत्र में एनसीपी सांसद डॉ. फौज़िया खान ने मंत्री से एमएईएफ को बंद करने के फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है.

हाशिए पके समुदायों के लिए शिक्षा में संगठन की महत्वपूर्ण भूमिका का हवाला देते हुए, डॉ. खान ने मामले की गंभीरता पर ज़ोर दिया और किसी भी न बदले जा सकने वाले कदम उठाने से पहले शिक्षा विशेषज्ञों, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के सामने आने वाली शैक्षिक चुनौतियों से परिचित लोगों के साथ व्यापक परामर्श करने की बात की.

अचानक एमएईएफ को बंद करने के मोदी सरकार के फैसले की निंदा करते हुए, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने कहा कि एमएईएफ ने हाशिए पर रहने वाले समूहों के बीच शिक्षा को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा दिया है, विशेष रूप से भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों को लाभ पहुंचाया है.

एसएफआई ने 2022-23 के केंद्रीय बजट में एमएईएफ के लिए आवंटित धन में 99% की भारी कटौती के लिए सरकार को दोषी ठहराया, जो इस निंदनीय समापन आदेश का पूर्वाभास देता है.

बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन (बीएपीएसए) – जेएनयू – ने एमएईएफ को बंद करने के केंद्र सरकार के फैसले की कड़ी निंदा की, इसे ‘ब्राह्मणवादी राज्य के निरंतर उत्पीड़न’ का उदाहरण कहा.

इसमें कहा गया, “यह निर्णय मुस्लिम छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने से रोकने के लिए मजबूर करने वाले निर्णयों की एक लंबी श्रृंखला के तहत आता है. एमएईएफ को बंद करने का उद्देश्य भी यही है.”

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