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Sunday, May 5, 2024
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बिल्किस बानों के दोषियों को आत्मसमर्पण करने के लिए अतिरिक्त समय देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बिलकिस बानो मामले में दोषियों को आत्मसमर्पण करने के लिए कोई और “अतिरिक्त समय” देने से इनकार कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा बिलकिस बानो मामले में दोषियों को संबंधित जेल अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए चार से छह सप्ताह का समय बढ़ाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी गई.

न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ का नेतृत्व कर रहे न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने दोषियों के वकीलों से कहा कि, “जब हमने आपको आत्मसमर्पण करने के लिए 8 जनवरी को अपना निर्देश पारित किया, तो हमने आपको अपने मामलों को व्यवस्थित करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया था.”

दोषियों ने जेल में वापस रिपोर्ट करने के लिए अधिक समय मांगने के लिए अपने या अपने परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य, बेटे की शादी, कटाई का मौसम, बीमार माता-पिता आदि से संबंधित कई कारण बताए थे.

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने भोजनावकाश के दौरान एक संक्षिप्त सुनवाई के अंत में आदेश में कहा, “उद्धृत कारणों में हमें कोई योग्यता नहीं दिखती… ये कारण उन्हें (दोषियों को) 8 जनवरी, 2024 के हमारे निर्देशों का पालन करने से नहीं रोकते हैं.”

जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस भुइयां की बेंच ने 8 जनवरी को अपने फैसले में दोषियों को वापस जेल में रिपोर्ट करने का आदेश दिया था.

फैसले ने निष्कर्ष निकाला था कि अगस्त 2022 में गुजरात सरकार द्वारा उनकी आजीवन कारावास की सजा को माफ करना अवैध था.

गुरुवार से ही दोषियों की ओर से आवेदन आने शुरू हो गए थे, जिसमें उन्होंने अपने आसन्न आत्मसमर्पण को स्थगित करने का अनुरोध किया था.

11 लोग 2002 के दंगों के दौरान गर्भवती बिल्किस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार, दो महीने के शिशु समेत उसके परिवार के सदस्यों के बलात्कार और हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे. अगस्त 2022 में गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा उनकी समयपूर्व रिहाई के समय वे अपनी सजा के 14 साल काट चुके थे.

ज्ञात हो कि 2002 में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान बिलकिस बाने को साथ इन दोषियों द्वारा सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी.

इस मामले में 11 दोषियों की सजा में गुजरात की भाजपा सरकार ने कटौती की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए नया आदेश जारी करते हुए कोर्ट ने कहा था कि सजा में छूट का गुजरात सरकार का आदेश बिना सोचे समझे पारित किया गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने सभी दोषियों की ज़मानत रद्द करते हुए स्पष्ट किया कि जिस राज्य में किसी अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सज़ा सुनाई जाती है उस राज्य को ही दोषियों की सजा में छूट के मामले की याचिका पर निर्णय लेने का अधिकार होता है.

ज्ञात हो कि दोषियों पर महाराष्ट्र में मुकदमा चलाया गया था. कोर्ट ने यह भी कहा कि, “हमें अन्य मुद्दों को देखने की ज़रूरत नहीं है. कानून के शासन का उल्लंघन हुआ है, क्योंकि गुजरात सरकार ने उन अधिकारों का इस्तेमाल किया, जो उसके पास नहीं थे और उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया है.”

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