इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | इंसाफ पाने के लिए लम्बी लड़ाई लड़ रहीं बिलकिस बानो को आज उच्चतम न्यायलय में बड़ी कामयाबी मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने आज 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिल्किस बानों के साथ बलात्कार करने और उनके परिवार की हत्या करने के दोषी 11 लोगों की रिहाई के गुजरात सरकार के फैसले को रद्द कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सभी दोषियों को दो हफ्ते के भीतर आत्मसमर्पण करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में गुजरात सरकार के इस फैसले को ‘ताकत का ग़लत इस्तेमाल’ बताया है.
सुप्रीम कोर्ट ने “बिना दिमाग लगाए” ऐसा आदेश पारित करने के लिए गुजरात सरकार को फटकार लगाते हुए कहा, “छूट आदेश में सक्षमता का अभाव है।” यह फैसला करना कि, किसे जेल से छोड़ना है इस निर्णय गुजरात सरकार कर ही नहीं सकती.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि, “अपराधियों को केवल उसी राज्य द्वारा रिहा किया जा सकता है जहां उन पर मुकदमा चलाया जाता है, जबकि यह मामला महाराष्ट्र सरकार के अंतर्गत आता है.”
गौरतलब है, दोषियों को गुजरात सरकार द्वारा 1992 की “अप्रचलित छूट नीति” के आधार पर 2022 में स्वतंत्रता दिवस मौके पर रिहा कर दिया गया था.
इससे पहले उच्चतम न्यायालय के कहने पर एक दोषी राधेश्याम शाह की माफ़ी याचिका पर गुजरात सरकार ने परामर्श लेने के लिए एक पैनल बनाया था. इस पैनल में सत्तारूढ़ भाजपा से जुड़े लोग शामिल थे.
पैनल ने दोषियों की रिहाई को मंजूरी देने को उचित ठहराते हुए कहा था कि वे “संस्कारी ब्राह्मण” थे, जो पहले ही 14 साल जेल में काट चुके हैं और अच्छा व्यवहार दिखा चुके हैं. इसलिए उनकी रिहाई सही है.
जेल से रिहा होने के बाद दोषियों का फूल मालाओं और मिठाइयों से किसी हीरो की तरह स्वागत किया गया था. बाद में दोषियों को एक भाजपा सांसद और विधायक के साथ मंच साझा करते हुए भी देखा गया.
पिछले साल रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 11 दिनों की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को बताया गया था कि दोषी राधेश्याम शाह ने वकालत भी शुरू कर दी है, जिसमें बिलकिस बानो की याचिका भी शामिल थी.
दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाकर्ताओं में तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, सीपीएम पोलित ब्यूरो सदस्य सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा समेत अन्य शामिल हैं.