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Saturday, May 4, 2024
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“इज़राईल के आक्रामक आतंकवाद को रोकने के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाए जाएं”: जमीयत उलमा-ए-हिंद

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष और मुस्लिम वर्ल्ड लीग के संस्थापक सदस्य मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि जमीयत उलमा-ए-हिंद बैतुल-मक़दिस, फ़िलिस्तीन और ग़ाज़ा की सुरक्षा के लिए पहले दिन से किए जाने वाले हर प्रयास की समर्थक रही हैं, वह आज भी फ़िलिस्तीन के साथ खड़ी हैं।

उन्होंने कहा कि इज़राईल एक कब्ज़ा करने वाला देश है जिसने फ़िलिस्तीन की भूमि पर कुछ विश्व शक्तियों के समर्थन से क़ब्ज़ा कर रखा है और उनके समर्थन से अब इस ज़मीन से फ़िलिस्तीनी नागरिकों के अस्तित्व को समाप्त करना चाहता है।

उन्होंने ग़ाज़ा पर इजराईली सेना की आक्रामकता, बर्बर हमलों और अत्याचारों की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि यह युद्ध इजराईल के स्थायी आतंकी योजनाओं का हिस्सा है। अतंतः स्वभाविक प्रतिक्रिया के रूप में फ़िलिस्तीनियों ने बहुत साहस और हिम्मत का प्रदर्शन किया और अत्याचारी इज़राईल पर ऐसा पलटवार किया जिसकी इज़राईल कल्पना भी नहीं कर सकता था।

प्रेस को जारी बयान में कहा गया है कि जमीयत उलमा-ए-हिंद ग़ाज़ा पर हुए हमलों को मानवाधिकारों पर होने वाला गंभीर हमला मानती है और इसकी कड़ी निंदा करती है।

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने कहा है कि दुखद बात है कि आज दुनिया के वे देश भी चुप हैं जो अंतर्राष्ट्रीय शांति और एकता के अग्रदूत होने का दावा करते हैं और मानवाधिकारों का निरंतर राग अलापने वाले अंतर्राष्ट्रीय संगठन भी चुप हैं।

जमीयत ने साथ ही सभी अंतर्राष्ट्रीय नेताओं से ग़ाज़ा में जारी घातक युद्ध और निहत्थी आबादियों पर होने वाली खतरनाक बमबारी को तुरंत रोकने के लिए आगे आने की अपील की है।

उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, वर्ल्ड मुस्लिम लीग और अन्य प्रभावशाली अंतर्राष्ट्रीय संगठन बिना किसी विलंब के हस्तक्षेप करें और वहां शांति की स्थापना के लिए सकारात्मक और प्रभावी प्रयास करें। अगर ऐसा नहीं हुआ तो इस युद्ध का दायरा बढ़ सकता है और यह पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले सकता है।

मौलाना मदनी ने इस बात पर भी गहरा दुख प्रकट किया कि एक ओर निर्दोष नागरिक मारे जा रहे हैं और दूसरी ओर उस पर होने वाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की वर्तमान बैठक कुछ बड़ी शक्तियों की उदासीनता के कारण विफल हो गई।

उन्होंने कहा कि फिलिस्तीन विवाद पर 75 वर्षों से यही चल रहा है, इसका काला सच तो यह है कि अगर कभी संयुक्त राष्ट्र ने कोई प्रस्ताव पारित भी किया तो इज़राईल ने उसे स्वीकार नहीं किया और पूरी दुनिया मूक दर्शक बनी रही। यही कारण है कि इस विवाद का अब तक कोई सर्वमान्य समाधान नहीं निकल सका है।

उन्होंने यह भी कहा कि विश्व की कुछ बड़ी शक्तियां अपने-अपने हितों को देखते हुए मध्य पूर्व में खतरनाक खेल खेलती आई हैं, जिसके कारण फिलिस्तीन की जनता निरंतर इज़राईल के नाजायज़ क़ब्ज़े और उसकी क्रूरता का शिकार है।

जमीयत ने कहा कि शांति के हर प्रयास को इज़राईल विफल करता रहा है और 75 वर्षों से इज़राईल उन्हें अपनी शक्ति के इशारे पर न केवल अपनी आबादी का विस्तार कर रहा है, बल्कि एक-एक करके फिलिस्तीन के सभी क्षेत्रों पर कब्जा करता जारहा है। यहाँ तक कि जॉर्डन, गोलान हाइट्स आदि पर भी उसके कब्ज़े को दुनिया देख रही है, यानी देशवासियों पर अपनी ही मातृभूमि में ज़मीनें सिमट चुकी है।

मौलाना ने कहा कि लम्बे समय से बच्चों, बूढ़ों और आम नागरिकों को निशाना बनाता रहा है और इज़राईल यह अत्याचार निरंतर करता आरहा है। फ़िलिस्तीन की स्वाभीमानी जनता अपनी मातृभूमि को आज़ाद कराने के लिए वर्षों से अपनी जानों का बलिदान देती आरही है।

जमीयत उलमा-ए-हिंद इसको स्वाभाविक प्रतिक्रिया मानती है और इज़राईल की लगातार आक्रामकता को इसका ज़िम्मेदार मानती है।

मौलाना मदनी ने कहा कि जहां तक भारत का संबंध है, उसने हमेशा शांति की स्थापना और फिलिस्तीनी नागरिकों के अधिकारों की बात की है। महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, मौलाना अबुल कलाम और रफी अहमद किदवाई से लेकर अटल बिहारी बाजपेयी तक सभी ने हमेशा फिलिस्तीनी हितों का समर्थन किया है। लेकिन समय की विडम्बना देखिए कि आज भारत का मीडिया अपने अधिकारों की पुनःप्राप्ति के लिए लड़ रहे हमास को आतंकवादी बता रहा है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि फिलिस्तीनी नागरिकों का संघर्ष अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता और पहले क़िब्ले की प्राप्ति है और विवाद की असल जड़ इज़राईल की खतरनाक विस्तारवादी सोच है, जिसके द्वारा वह फिलिस्तीन की जनता को वहां से निर्वासित करके पूरी फिलिस्तीन धरती पर क़ब्ज़ा जमा लेना चाहता है।

उन्होंने कहा कि आज भी हमें अपने महानुभावों के पुराने पक्ष पर दढ़ रहना चाहिए और न्याय की यही मांग है कि सत्य का साथ दिया जाए, क्योंकि फिलिस्तीन के लोग सत्य पर हैं और इसका समाधान भी यही है कि संयुक्त राष्ट्र के निर्णय के अनुसार संप्रभु फिलिस्तीन के रूप में एक स्वतंत्र देश स्थापित हो और 1967 के ओस्लो समझौता के अंतर्गत फिलिस्तीन अपनी सीमाओं पर लौट जाए।

जमीयत उलमा-ए-हिंद उत्पीड़ित फ़िलिस्तीनियों के साहस और धैर्य की सराहना करती है और दुआ करती है कि अल्लाह अत्याचार के खिलाफ उनके साहस और हिम्मत को ऊंचा रखे और उनकी सहायता करे l

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