–मसीहुज़्ज़मा अंसारी
मुज़फ़्फ़रनगर | उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में दंगों के दस साल बाद हुसैन अहमद अपनी 65 वर्षीय माँ के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे हैं जिन्हें दंगों के दौरान गोली मार दी गई थी. वह कुटबा गांव के रहने वाले थे लेकिन दंगों के दौरान पलायन होने को मजबूर हुए, अब पास के पलड़ा गांव में रहते हैं.
8 सितंबर 2013 को मुज़फ्फरनगर में महापंचायत के बाद उग्र हुई भीड़ ने आस-पास के मुस्लिम आबादी वाले गांव पर हमला कर दिया और लूट पाट की जाने लगी.
महापंचायत के बाद उग्र भीड़ ने कुटबा गाँव पर भी हमला कर दिया था जिसमें 8 लोगों की हत्या कर दी गई थी. मृतकों में हुसैन अहमद की 65 वर्षीय माँ ख़ातून भी थीं जिन्हें सर में गोली मार दी गई थी. कुटबा गाँव में घरों, मकानों और मस्जिद में आगज़नी और लूट पाट की गई थी.
अपनी माँ के क़ातिलों को सज़ा दिलाने के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा रहे हुसैन इंडिया टुमारो से बात करते हुए कहते हैं कि अभी तक न्याय की कहीं कोई उम्मीद नज़र नहीं आती.
उन्होंने बताया कि इस मामले में आरोपियों को दो तीन महीने जेल में रहने के बाद ज़मानत मिल गई. 8 लोगों के आरोपी खुले घूम रहे और दस सालों में मात्र तीन महीने की जेल हुई और अब केस ख़त्म करने के लिए प्रयास किये जा रहे.
इंडिया टुमारो को हुसैन ने बताया कि बहुत से मामलों को ख़त्म करने के लिए लोगों पर दबाव बनाया जा रहा लेकिन मैं किसी के दबाव में नहीं आऊंगा.
इस सवाल पर कि कौन दबाव बना रहा, हुसैन भाजपा के एक बड़े नेता का नाम लेते हुए कहते हैं कि वह पिछले कुछ सालों से समझौता करवाने में लगे हुए हैं.
इस घटना के दस साल बाद भी हुसैन को अपनी बूढ़ी माँ की हर दिन याद आती है जिन्हें दंगाइयों ने गोली मार दी थी. घटना पर बात करते हुए वे भावुक हो जाते है, कहते हैं कि उस घटना को कैसे भूल सकते हैं.
कुटबा-कुटबी गाँव में 300 से अधिक मुस्लिम परिवार रहते थे मुसलमान परिवार जो दंगों के दौरान गांव से पलायन करने को मजबूर हुए थे. लगभग ढाई हज़ार मुसलमान अब तक अपने गांव नहीं लौटे.
यहां रहने वाले मुसलमान आस-पास की आबादी में जा बसे. कुछ अपने रिश्तेदारों के वहां, कुछ शामली में और कुछ 5 किलोमीटर दूर पास के पलड़ा गांव बस गए हैं.
कुटबा गाँव मुज़फ्फरनगर दंगों में सबसे अधिक प्रभावित गांवों में से एक था. दंगों के दौरान यहां 8 लोगों की मौत हुई. इन 8 मृतकों में हुसैन अहमद की माँ भी थीं.
ज्ञात हो कि यह गाँव भाजपा के प्रभावी नेता और वर्तमान में राज्यमंत्री संजीव बालियान का भी गाँव है.
इंडिया टुमारो को हुसैन ने बताया कि, “मेरी माँ को गोली मारने वालों में कुछ गाँव के लोग थे और कुछ महापंचायत से लौट रहे लोग शामिल थे. मुश्किल से आरोपियों पर एफआईआर हो सकी और काफी दबाव के बाद वो गिरफ्तार हुए लेकिन 2-3 महीना जेल में रहने के बाद उनको ज़मानत मिल गई.”
उन्होंने बताया कि मामला कोर्ट में चल रहा, सभी नामजद आरोपी हैं, कोर्ट में तारीख लगती है लेकिन केस आगे बढ़ता नहीं दिख रहा.
समझौते के लिए बनाया जा रहा दबाव:
हुसैन ने इंडिया टुमारो को बताया कि दंगों में हत्या और लूट के मामलों को ख़त्म करने के लिए लोगों पर दबाव बनाया जा रहा और हर प्रकार से उन्हें राज़ी किया जा रहा कि केस वापस ले लें, लेकिन मैं किसी के दबाव में नहीं आऊंगा.
इस सवाल पर कि कौन दबाव बना रहा, हुसैन भाजपा के एक बड़े नेता का नाम लेते हुए कहते हैं कि वह पिछले कुछ सालों से समझौता करवाने में लगे हुए हैं.
उन्होंने बताया कि जब से भाजपा नेता और मंत्री संजीव बालियान ने समझौते का अभियान चलाया है तब से कोर्ट का मामला ठंडा पड़ गया है. पहले लखनऊ की एक संस्था केस में मदद करती थी लेकिन अब समझौते की बात शुरू होने के बाद से सभी ख़ामोश हैं.
हुसैन ने कहा, “ये भी नहीं पता कि किस आधार पर समझौता किया जा रहा है, क्या बातें तय हो रहीं हैं लेकिन समझौते की पूरी प्रक्रिया में पीड़ित को इंसाफ मिलने की बात कहीं भी शामिल नहीं है और न है इंसाफ की बात की जा रही.”
इस सवाल पर कि आप समझौता नहीं किए, हुसैन कहते हैं कि दोषी को सज़ा और पीड़ित को न्याय की कोई बात ही नहीं की जा रही तो फिर कैसा समझौता.
इस सवाल पर कि क्या आप को समझौता करने के लिए डराया धमकाया जा रहा, हुसैन ने कहा ऐसा किया तो नहीं गया लेकिन जैसा माहौल बनाया जा रहा उसमें इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि भविष्य में यह रास्ता भी अपनाया जाए.
सरकार से मांग:
मुज़फ्फरनगर दंगों के दौरान हुई हत्या, आगज़नी और लूटपाट के मामले में समझौता करने के लिए दबाव बनाए जाने पर हुसैन और कई अन्य चिंता जताई है. उन्होंने कहा है कि, सरकार से हमारी मांग है कि पीड़ितों को न्याय मिले और जो हत्या आरोपी हैं उन्हें सज़ा दी जाए.
हुसैन अहमद ने इंडिया टुमारो से बात करते हुए कहा कि, हमारी मांग है कि सरकार मुज़फ्फरनगर दंगा पीड़ितों की सुध ले क्योंकि बहुत से ऐसे परिवार हैं जो दंगों में विस्थापित होकर आज तक संभल नहीं पाए. ऐसी हालत में कोई केस कैसे लड़ेगा जब रोज़गार का साधन ही न हो.
पीड़ितों को न्याय और आरोपियों को सज़ा के साथ-साथ लोगों ने ऐसे परिवारों की सरकार से हर प्रकार की मदद की गुहार लगाई.
पीड़ितों की हो आर्थिक मदद:
इंडिया टुमारो से बात करते हुए नलहड़ गाँव में रहने वाले विस्थापित कई दंगा पीड़ितों ने बताया कि सरकार के द्वारा जो मदद हुई थी वो पर्याप्त नहीं थी, हमें और आर्थिक मदद दी जाए.
कई परिवारों का कहना है कि बहुत से ऐसे पीड़ित परिवार हैं जिन्हें अभी तक मुआवज़ा नहीं मिला क्योंकि उन्हें सरकारी दस्तावेज़ में अलग परिवार नहीं माना गया. ऐसे परिवार आज भी दिक्कत का सामना कर रहे हैं.
यह सभी परिवार कुटबा कुटबी गाँव से पलायन कर वहां से 5 किलोमीटर दूर पलड़ा गाँव में बस गए लेकिन दंगों के दस साल बाद भी वे अपना ख़ुद का मकान नहीं बना सके.
मुज़फ्फरनगर दंगों की पृष्ठभूमि ?
मुज़फ्फरनगर ज़िले के कवाल गाँव में 27 अगस्त को 2013 को गाँव मलिकपुरा के सचिन और गौरव का कवाल के शाहनवाज़ से विवाद हुआ जिसमें तीनों में मारपीट हुई. घटना के बाद सचिन और गौरव ने हमला कर कवाल गांव के शाहनवाज़ को मार डाला. शाहनवाज़ की मौत से ग़ुस्साईं भीड़ ने सचिन और गौरव को पीट-पीटकर मार डाला.
इस घटना के बाद दो जाट युवकों की हत्या के विरोध में 7 सितंबर 2013 को मुज़फ़्फ़रनगर के मंदौड स्कूल के मैदान में महापंचायत आयोजित की गई जिसमें लाखों लोग इकट्ठा हुए. महापंचायत के बाद लौटती भीड़ ने इलाक़े में मुसलामानों के घर मस्जिद पर हमला किया जिसके बाद सांप्रदायिक दंगा भड़क गया.
महापंचायत से लौटी भीड़ द्वारा मुसलमानों के घरों को निशाना बनाया जाने लगा, अपनी जान बचाने के लिए मुसलमान आस पास के मुस्लिम आबादी वाले गाँवों की तरफ़ पलायन करने पर मजबूर हुए. दंगों के दौरान कई महिलाओं के साथ रेप का मामला भी सामने आया था. दावा है कि कुछ शिकायतें विभिन्न कारणों से दर्ज नहीं हो सकीं.