इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | भारत के प्रमुख मुस्लिम संगठन जमात-ए-इस्लामी हिंद ने महिला आरक्षण विधेयक पर प्रतिक्रिया दी है. जमाअत ने महिलाओं के लिए निर्धारित कोटा में ओबीसी और मुस्लिम महिलाओं के प्रतिनिधित्व की भी मांग की है.
विधेयक में महिला कोटा के भीतर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए कोटा का उल्लेख है, ओबीसी और मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के लिए ऐसा कोई कोटा नहीं है. इससे ओबीसी और मुस्लिम नेता नाराज़ हैं.
संसद में पारित विधेयक के अनुसार, संसद और राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी, जिससे महिलाएं राजनीतिक रूप से सशक्त होंगी.
जमात-ए-इस्लामी के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने विधेयक पर टिप्पणी करते हुए कहा कि, लोकतंत्र को मज़बूत करने की दृष्टि से सभी समूहों और वर्गों के लिए सत्ता में प्रतिनिधित्व पाना महत्वपूर्ण है.
उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि भारत को आज़ादी मिलने के 75 साल बाद भी हमारी संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी निराशाजनक है.
इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि महिला आरक्षण विधेयक विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए एक अच्छा कदम है, उन्होंने कहा कि इसे काफी पहले आना चाहिए था.
हालाँकि उन्होंने कहा कि, “अपने मौजूदा स्वरूप में विधेयक का मसौदा ओबीसी और मुस्लिम महिलाओं की महिलाओं को बाहर करके भारत जैसे विशाल देश में गंभीर सामाजिक असमानताओं को संबोधित नहीं करता है.”
प्रोफेसर सलीम ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, “हालांकि कानून में एससी और एसटी की महिलाओं के लिए कोटा शामिल है, लेकिन यह ओबीसी और मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को नज़रअंदाज़ करता है.”
उन्होंने कहा, “जस्टिस सच्चर समिति की रिपोर्ट (2006), पोस्ट-सच्चर मूल्यांकन समिति की रिपोर्ट (2014), विविधता सूचकांक पर विशेषज्ञ समूह की रिपोर्ट (2008), इंडिया एक्सक्लूशन रिपोर्ट (2013-14), 2011 की जनगणना और नवीनतम एनएसएसओ जैसी विभिन्न रिपोर्ट और अध्ययन रिपोर्ट – सभी सुझाव देते हैं कि भारतीय मुसलमानों और विशेष रूप से महिलाओं में सामाजिक-आर्थिक सूचकांकों की कमी है. संसद और राज्य विधानसभाओं में मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व लगातार घट रहा है. यह उनकी आबादी के आकार के अनुपात में नहीं है.”
प्रोफेसर सलीम ने कहा, “प्रस्तावित आरक्षण अगली जनगणना के प्रकाशन और उसके बाद परिसीमन अभ्यास के बाद ही लागू होगा. इसका मतलब है कि विधेयक का लाभ 2030 के बाद ही मिल सकेगा. इसलिए, हमें लगता है कि इस प्रस्ताव का समय आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए प्रतीत होता है और इसमें ईमानदारी की कमी है.”
उन्होंने कहा, “असमानता दूर करने के कई तरीकों में से एक है सकारात्मक कार्रवाई (आरक्षण). महिला आरक्षण विधेयक में ओबीसी और मुस्लिम महिलाओं को नज़रअंदाज़ करना अन्यायपूर्ण होगा और “सब का साथ, सबका विकास” की नीति के अनुरूप नहीं होगा.”