Thursday, September 28, 2023
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बाइबिल बांटना या भंडारा करना धर्म परिवर्तन के लिए ‘प्रलोभन’ नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

इंडिया टुमारो

नई दिल्ली | धर्म परिवर्तन से सम्बंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश धर्म परिवर्तन अधिनियम 2021 की व्याख्या करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि पवित्र बाइबिल बांटना और भंडारा करना उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम 2021 के तहत धर्म परिवर्तन के लिए ‘प्रलोभन’ नहीं है.

यह टिप्पणी न्यायालय ने दो ईसाई व्यक्तियों (जोस पापाचेन और शीजा) को जमानत देते हुए कीं. दोनों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के समुदायों के बीच लालच देकर धर्म परिवर्तन (हिंदू धर्म से ईसाई धर्म में) में करवाने का आरोप था.

जस्टिस शमीम अहमद की बेंच ने यूपी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 की धारा 4 के दायरे की भी व्याख्या की.

न्यायालय ने सुनवाई के दौरान अपनी इस व्याख्या में यह भी बताया कि अधिनियम की धारा 3 के तहत जबरन धर्मांतरण अपराध के संबंध में किसे एफआईआर दर्ज कराने का अधिकार प्राप्त है.

अदालत ने कहा, “…शिकायतकर्ता के पास वर्तमान एफआईआर दर्ज करने का कोई अधिकार नहीं है, जैसा कि अधिनियम, 2021 की धारा 4 के तहत प्रावधान किया गया है. अपीलकर्ताओं के लिए वकील के तर्क में भी यह दिखाई देता है कि अच्छी शिक्षाएं देना, पवित्र बाइबिल की किताबें बांटना, बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना, ग्रामीणों की सभा आयोजित करना, भंडारा करना और ग्रामीणों को विवाद न करने और शराब न पीने की हिदायत देना प्रलोभन नहीं है.”

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शमीम अहमद की बेंच ने कहा कि अच्छी शिक्षा देना, पवित्र बाइबिल की किताबें बांटना और भंडारा करना उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम 2021 (The Uttar Pradesh Prohibition of Unlawful Conversion of Religion Act 2021) के तहत धर्म परिवर्तन के लिए ‘प्रलोभन’ नहीं माना जा सकता.

लाइव लॉ के अनुसार, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उक्त प्रावधान के आदेश के अनुसार, धर्मांतरित हो चुके व्यक्ति के माता-पिता, भाई, बहन या रक्त संबंध, विवाह या गोद लेने जैसे संबंध में उससे जुड़े व्यक्ति ही इस तरह के धर्मांतरण के आरोप से संबंधित प्रथम सूचना रिपोर्ट के लिए आवेदन कर सकता है.

न्यायालय ने कहा कि उक्त लोगों के अलावा, और कोई व्यक्ति धर्मांतरण के संबंध में एफआईआर दर्ज नहीं कर सकता है.

दो ईसाई व्यक्तियों (जोस पापाचेन और शीजा) को जमानत देते हुए कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की. दोनों पर प्रलोभन देकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के धर्म परिवर्तन (हिंदू धर्म से ईसाई धर्म में) का आरोप था.

यूपी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम की धारा 3 और 5 (1) और एससी/एसटी एक्ट की धारा 3 (1) (डीएचए) के तहत दोनों इसाई व्यक्तियों पर मामला दर्ज किया गया था.

अम्बेडकरनगर जिले में भाजपा पदाधिकारी की शिकायत के आधार पर दोनों को गिरफ्तार किया गया था. इस साल मार्च में विशेष न्यायाधीश एस.सी./एस.टी. एक्ट, अम्बेडकर नगर ने उनकी जमानत अर्जी खारिज कर दी थी. इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का का दरवाज़ा खटखटाया था.

लाइव लॉ के अनुसार, आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आरोपों और दोनों पक्षकारों द्वारा दी गई दलीलों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने पाया कि यह साबित करने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि अपीलकर्ताओं ने सामूहिक धर्मांतरण के लिए उक्त ग्रामीणों पर कोई प्रभाव या प्रलोभन दिया है.

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसी कोई सामग्री मौजूद नहीं है, जो जबरन धर्मांतरण की ओर इशारा करे.

न्यायालय ने कहा कि इसके अपीलकर्ता बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने और ग्रामीणों के बीच भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने के कार्य में शामिल है.

कोर्ट द्वारा अपील की अनुमति दी गई और आरोपियों को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया गया.

अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में अधिनियम, 2021 की धारा 4 के तहत शिकायतकर्ता के पास दर्ज FIR को वास्तव में दर्ज कराने का कोई आधार नहीं था.

न्यायालय ने मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि धर्मांतरण विरोधी क़ानून के प्रावधान के अनुसार, धर्मांतरित हो चुके व्यक्ति के माता-पिता, भाई, बहन या रक्त संबंध, विवाह या गोद लेने जैसे संबंध में उससे जुड़े व्यक्ति ही इस तरह के धर्मांतरण के आरोप से संबंधित प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने का अधिकार रखते हैं.

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