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Saturday, May 4, 2024
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बिहार में जाति सर्वेक्षण को हाई कोर्ट की हरी झंडी के बाद बीजेपी बैकफुट पर

समी अहमद

पटना | पटना उच्च न्यायालय ने 1 अगस्त को बिहार सरकार द्वारा किए गए जाति सर्वेक्षण के प्रक्रिया को चुनौती देने वाले 2023 के सिविल रिट याचिकाओं के एक बैच को खारिज कर दिया. याचिकाएं खारिज होने के बाद जो लोग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार सरकार पर निशाना साध रहे थे, अब वे बैकफुट पर नजर आ गए हैं.

जबकि अदालत द्वारा इसी साल 4 मई को जाति सर्वेक्षण प्रक्रिया पर रोक लगाने का आदेश पारित करने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा के निशाने पर थे, उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) ने आरोप लगाया था कि जाति सर्वेक्षण का विरोध करने वाले याचिकाकर्ता भाजपा के समर्थक हैं.

याचिकाकर्ताओं ने जाति सर्वेक्षण को कई आधारों पर चुनौती दी थी, जिसमें निजता के उल्लंघन के अलावा मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी शामिल था. हालाँकि, अदालत ने कहा कि “सामाजिक ताने-बाने से इसे (जातिगत भेदभाव) ख़त्म करने की कोशिशों के बावजूद, जाति एक वास्तविकता बनी हुई है और इसे दूर किया जाना, रोका जाना या किनारे कर दिया जाना संभव नहीं है, और न ही यह ख़त्म होती है.”

अदालत की टिप्पणी के अनुसार, राज्य सरकार द्वारा किए गए जाति सर्वेक्षण के अभ्यास को चुनौती देने का मुख्य आधार था, (i) कि इस तरह के सर्वेक्षण को करने के लिए राज्य विधायिका के पास कोई क्षमता नहीं है (ii) मूल रूप से जनगणना करवाने कि सक्षमता होने पर भी, नागरिकों से ऐसे डेटा एकत्र करने के लिए कोई उद्देश्य या वैध उद्देश्य घोषित नहीं किया गया है, (iii) कि धर्म, आय और जाति जैसे व्यक्तिगत विवरण का खुलासा करवाना एक प्रकार की ज़बरदस्ती है (iii) यह ज़बरदस्ती किसी व्यक्ति की निजता पर आक्रमण की ओर ले जाती है; जिसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत शामिल मूल अधिकार घोषित किया गया है और (iv) कि अब जो उपाय किए जा रहे हैं, वे आधार (यूनिक आइडेंटीफिकेशन) निर्णय में निर्धारित सिद्धांतों के खिलाफ हैं और उसमें निर्धारित तीन-आयामी परीक्षण में विफल रहते हैं. एक रिट याचिका में यह भी तर्क दिया गया था कि बड़े पैमाने पर अभ्यास के लिए खर्च कानून की उचित मंजूरी के बिना किया गया था.

राज्य सरकार के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि “हम राज्य की कार्रवाई को पूरी तरह से वैध पाते हैं, जो उचित क्षमता के साथ शुरू की गई है, जिसका उद्देश्य ‘न्याय के साथ विकास’ प्रदान करना है.

अदालत ने यह भी कहा कि वास्तविक सर्वेक्षण में विवरण प्रकट करने के लिए न तो कोई दबाव डाला गया था और न ही इस पर विचार किया गया था और यह सर्वे आनुपातिकता की परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ था, इस प्रकार यह व्यक्ति की निजता के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है, खासतौर से जब से यह ‘सार्वजनिक हित’ को आगे बढ़ा रहा है जो कि अपने प्रभाव में ‘वैध राज्य हित’ ही है.

यहां बता दें कि 4 मई को जब पटना हाई कोर्ट ने जाति सर्वेक्षण की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी तो बीजेपी के कई नेताओं ने इस फैसले का स्वागत किया था और यह भी आरोप लगाया था कि जातिगत सर्वेक्षण से जातीय संघर्ष बढ़ेगा. उन्होंने नीतीश कुमार सरकार पर मामले को अदालत में ठीक से रखने में विफल रहने का भी आरोप लगाया था.

इससे पहले जातिगत सर्वेक्षण रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी लेकिन शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता को पटना हाई कोर्ट जाने को कहा था. हाईकोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में इस प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी. उस वक्त बीजेपी नेताओं ने मुख्यमंत्री कुमार पर सुस्त प्रशासन होने का आरोप लगाया था.

हालाँकि सरकार ने दलील दी थी कि अस्सी प्रतिशत जाति सर्वेक्षण पूरा हो चुका है लेकिन उच्च न्यायालय राज्य सरकार को प्रक्रिया को पूरी करने देने पर सहमत नहीं हुआ और उसने रोक लगाने का आदेश दे दिया और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी रोक हटाने से इनकार कर दिया था.

अब पटना हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की आपत्तियों को खारिज कर दिया है. याचिकाकर्ताओं ने आशंका व्यक्त की थी कि राज्य सरकार की यह कवायद जनगणना के बराबर है, जिसे कराने में वह सक्षम नहीं है. अदालत ने घोषणा की कि जाति गणना का कार्य एक सर्वेक्षण है न कि जनगणना करना है. इसी तरह, अदालत ने इस दलील कि जातिगत सर्वेक्षण से निजता का उल्लंघन हो रहा है, को भी खारिज किया.

बिहार सरकार ने इसी साल 7 जनवरी को जातिय गणना शुरू की थी. इसका पहला चरण 21 जनवरी को पूरा हुआ जिसमें 12 करोड़ 70 लाख लोगों की जानकारी दर्ज की गई. इस सर्वे का दूसरा राउंड 15 अप्रैल को शुरू हुआ था, जिसे 15 मई को पूरा होना था लेकिन 4 मई को हाई कोर्ट की रोक के बाद यह प्रक्रिया रोक दी गई थी.

जबकि सरकार ने सभी डीएम को आगे बढ़ने के आदेश के तुरंत बाद जाति सर्वेक्षण को नवीनीकृत करने के लिए कहा, केस हारने वाले याचिकाकर्ताओं ने बाद में संपर्क किया.

दिलचस्प बात यह है कि जो भाजपा नेता यह आरोप लगा रहे थे कि जाति सर्वेक्षण से समाज में विभाजन होगा, उन्होंने हाई कोर्ट के ताज़ा फैसले का स्वागत किया है. यहां तक कि जाति सर्वेक्षण का श्रेय भी वह लेना चाह रहे हैं, वे कह रहे हैं कि जब वे सरकार में थे तब ही इसे कराने का निर्णय लिया गया था. बिहार कैबिनेट ने राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों द्वारा पारित जाति सर्वेक्षण के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी. इस प्रक्रिया के लिए पांच सौ करोड़ रुपये रखे गये थे.

बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता बीजेपी नेता विजय कुमार सिन्हा ने भी यह कहकर कि ‘जातीय जनगणना से कड़वाहट पैदा होगी’ ये मुद्दा उठाया था लेकिन अब वो कह रहे हैं कि बीजेपी इस फैसले का स्वागत करती है. लेकिन इस स्वागत में एक ट्विस्ट भी है क्योंकि उनका कहना है कि सरकार की मंशा साफ नहीं है और सरकार इसका इस्तेमाल राजनीति के लिए कर रही है. वह सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए पूछ रहे हैं कि इस सर्वे से कानून-व्यवस्था की स्थिति कैसे सुधरेगी और स्कूली शिक्षा में अराजकता कैसे खत्म होगी?

बीजेपी पर यह भी आरोप लगा कि उसने जाति सर्वेक्षण के खिलाफ याचिका दायर करने के लिए ‘यूथ फॉर इक्वेलिटी’ जैसे संगठनों का इस्तेमाल किया. ‘यूथ फॉर इक्वेलिटी’ उन बारह याचिकाकर्ताओं में से एक था जिन्होंने जाति सर्वेक्षण का विरोध किया था.

बीजेपी के राज्यसभा सदस्य और नीतीश कुमार के मुखर आलोचक सुशील कुमार ने भी हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए जाति सर्वेक्षण का श्रेय लेने की कोशिश की. उन्होंने यह भी दोहराया कि जब जाति सर्वेक्षण का निर्णय कैबिनेट द्वारा पारित किया गया था, तब भाजपा भी नीतीश कुमार के साथ सत्ता साझा कर रही थी. उन्होंने इस बात से इनकार किया कि जिन लोगों ने जाति सर्वेक्षण के खिलाफ याचिका दायर की थी, वे बीजेपी से जुड़े हुए हैं.

लेकिन जनता दल (युनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ लल्लन सिंह ने दावा किया कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद जाति सर्वेक्षण को रोकने की भाजपा की साज़िश विफल हो गई है. गौरतलब है कि जद (यू) और लालू प्रसाद की राजद सर्वेक्षण की मांग पर सहमत थे, तब भी जब नीतीश कुमार भाजपा के साथ सत्ता साझा कर रहे थे. जब कैबिनेट ने यह प्रस्ताव पारित किया तो राजद विपक्ष की बेंच पर बैठी थी.

बीजेपी नेताओं की मंशा पर सवाल उठाते हुए उपमुख्यमंत्री लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव कहते हैं कि अगर सुशील कुमार मोदी और बीजेपी हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं तो वे राष्ट्रीय स्तर पर और बीजेपी शासित राज्यों में जाति सर्वेक्षण की बात क्यों नहीं करते? उन्होंने मांग की कि राष्ट्रीय स्तर पर जाति सर्वेक्षण कराया जाना चाहिए.

एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रीय स्तर पर जाति सर्वेक्षण कराने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी, लेकिन उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और कहा गया कि राज्य अपने दम पर ऐसा कर सकता है. तेजस्वी यादव उस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे.

यह आश्चर्य की बात नहीं होगी कि विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. राष्ट्रीय स्तर पर जाति के सर्वेक्षण का समर्थन करें. कांग्रेस नेता राहुल गांधी पहले ही जाति सर्वेक्षण के पक्ष में बयान जारी कर चुके हैं.

कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि जाति सर्वेक्षण भाजपा की हिंदुत्व राजनीति का जवाब हो सकता है. उन्हें यह भी उम्मीद है कि नीतीश कुमार इस मुद्दे पर और मुखर होंगे. जब प्रक्रिया का शेष बीस प्रतिशत काम पूरा होने के बाद जाति सर्वेक्षण के नतीजे सामने आएंगे तब यह भारतीय राजनीति में गेम चेंजर हो सकता है.

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