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Saturday, May 4, 2024
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वाराणसी में 63 साल पुरानी राष्ट्रीय विरासत गांधीवादी केंद्र ‘सर्व सेवा संघ’ को किया गया सील

-आनंद मैथ्यू

वाराणसी | हिंदू धर्म के सबसे पवित्र शहर वाराणसी में उत्तर प्रदेश प्रशासन द्वारा एक प्रसिद्ध गांधीवादी संस्थान, सर्व सेवा संघ (एसएसएस) को सील कर दिया गया. यह गांधीवादी संस्थान पूरे भारत में विभिन्न शाखाओं के केंद्रीय कार्यालय के रूप में कार्य करता है. गांधीवादी कार्रवाई के बाद से सदमें में हैं और घटना पर निराशा व्यक्त की है.

गांधीवादी और आशा ट्रस्ट के राष्ट्रीय संयोजक वल्लभाचार्य पांडे ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया है और कहा कि सरकार 63 साल पुरानी राष्ट्रीय विरासत को नष्ट करने की कोशिश कर रही है जो विनोबा और जय प्रकाश नारायण की कर्मस्थली थी.

उन्होंने कहा कि सरकार संपत्ति भले ही नष्ट कर दे, लेकिन भारतीयों के दिलों से गांधी, विनोबा और जयप्रकाश नारायण को कभी खत्म नहीं कर पाएगी.

एक अप्रत्याशित कदम में, वाराणसी के जिला अधिकारी 22 जुलाई को सुबह लगभग 7 बजे रैपिड एक्शन फोर्स सहित लगभग 500 पुलिस जवानों के साथ केंद्र पर पहुंचे. लगभग 200 मज़दूरों की मदद से पुलिस 12.5 एकड़ परिसर के प्रत्येक घर में जबरन घुस गई और वहां के निवासियों का सामान हटा दिया.

पुलिस ने गांधीवादियों को भी बलपूर्वक बाहर निकाला, जो परिसर को ध्वस्त करने के सरकारी प्रयास के विरोध में 63 दिनों के सत्याग्रह पर थे, और उनमें से आठ को गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तार लोगों में कोलकाता से सत्याग्रह में भाग लेने आए एसएसएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंदन पाल, एसएसएस के प्रदेश अध्यक्ष राम धीरज, सर्वोदय प्रकाशन के संपादक सह प्रकाशक अरविंद अंजुम, लोक समिति के संयोजक नंदलाल मास्टर, जीतेंद्र यादव और एक अनुभवी गांधीवादी कार्यकर्ता ईश्वर चंद शामिल हैं.

एसएसएस आसपास के गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने वाला एक किंडरगार्डन स्कूल भी संचालित करता है. 22 जुलाई को जब बच्चे सुबह की कक्षाओं के लिए पहुंचे, तो उन्होंने पाया कि उनके क्लास रूम को पुलिस ने बंद कर दिया है.

सर्वोदय प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हज़ारों पुस्तकें पुलिस द्वारा बाहर फेंक दी गई हैं और बारिश में भीगती हुई खुली हवा में पड़ी हैं.

बेदखल किए गए लोग, जो कुछ भी वे ले जा सकते थे उसे लेकर अपने परिचितों के पास चले गए हैं.

सत्याग्रह में शामिल हुए वाराणसी के दो कैथोलिक पादरियों ने कहा कि प्रशासन की कार्रवाई से उन्हें झटका लगा है.

फादर नीतिलाल जोसेफ और जयंत, भारतीय मिशनरी सोसाइटी के सदस्य और प्रसिद्ध गांधीवादी, लोक चेतना समिति का प्रबंधन करते हैं.

फादर जोसेफ ने मीडिया को बताया कि सरकार का प्रयास केवल गांधीवादी संस्थानों को नष्ट करना नहीं है, बल्कि आम लोगों के दिमाग से गांधीवादी सिद्धांतों, मूल्यों और विचारों को मिटा देना है.

वाराणसी शहर के उत्तरी छोर पर राजघाट में गंगा और वरुणा नदियों के तट पर स्थित इस केंद्र की स्थापना 1960 में जय प्रकाश नारायण ने गांधीवादी शिक्षाओं के प्रचार के लिए राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, विनोबा भावे, लाल बहादुर शास्त्री और जगजीवन राम की मदद से की थी.

तत्कालीन रेल मंत्री शास्त्री ने इस संस्थान को रेलवे संपत्ति बेचने की व्यवस्था की.

विध्वंस अभियान रेलवे द्वारा दिए गए एक नोटिस पर आधारित है जिसमें कहा गया है कि एसएसएस गांधीवादियों द्वारा अतिक्रमण की गई रेलवे भूमि पर खड़ा है. ज़मीन के मालिकाना हक को लेकर पिछले कुछ महीनों से कानूनी लड़ाई चल रही है.

धीरज ने कहा कि, उनके संगठन के पास मंडल रेल प्रबंधक द्वारा हस्ताक्षरित विक्रय पत्र, ज़मीन की बिक्री के लिए प्राप्त धन के लिए रेलवे द्वारा जारी रसीदें और अन्य क़ानूनी दस्तावेज़ हैं.

जिला कोषागार के पास म्यूटेशन के दस्तावेज़ हैं.

पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने एसएसएस को इस मुद्दे के निपटारे के लिए निचली अदालतों से संपर्क करने का निर्देश दिया था.

एसएसएस परिसर में सर्वोदय प्रकाशन है, जिसने गांधी और गांधीवादी अध्ययन संस्थान पर 1,500 से अधिक किताबें प्रकाशित की हैं, जहां पिछले छह दशकों से गांधीवादी विचारों पर शोध हो रहा है.

सरकार कथित तौर पर शॉपिंग मॉल बनाने और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए गांधीवादियों के संस्थानों और घरों को ध्वस्त करना चाहती है.

एसएसएस गंगा के तट पर नमो घाट के निकट है, जो पीएम नरेंद्र मोदी के सम्मान में बनाया गया एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है. एसएसएस के बगल में किला कोहना नामक झुग्गी बस्ती में गरीबों की 142 झोपड़ियां तीन महीने पहले नमो घाट के विस्तार के लिए तोड़ दी गईं.

सौ: मैटर्सइंडिया.कॉम

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