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Saturday, May 4, 2024
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सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के भाजपा के साथ जाने से पूर्वांचल की राजनीति में क्या बदलेगा?

अखिलेश त्रिपाठी | इंडिया टुमारो

लखनऊ | सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) भाजपा गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा बन गई है। सुभासपा नेता ओपी राजभर अपनी पार्टी को लेकर दोबारा एनडीए के साथ खड़े हो गए हैं। देश के गृह मंत्री अमित शाह ने सुभासपा के एनडीए में शामिल होने का स्वागत किया है।

सुभासपा नेता ओपी राजभर 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा द्वारा समझौते में पर्याप्त सीटें न देने के कारण एनडीए से अलग हो गए थे। एनडीए से अलग होने के बाद उन्होंने समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन कर लिया था और सपा के साथ खड़े हो गए थे। 2022 का विधानसभा चुनाव उन्होंने सपा के साथ मिलकर लड़ा और उनकी पार्टी को 6 विधानसभा सीट हासिल हुई।

सपा को उत्तर प्रदेश (यूपी) की सत्ता नहीं मिली और वह सत्ता से दूर रही। यूपी की सत्ता न मिलने से सपा सरकार बनाने में विफल रही, लेकिन ओपी राजभर को इसका सबसे बड़ा झटका लगा। ओपी राजभर सपा को यूपी की सत्ता न मिलने से उनको सत्ता की मलाई खाने का मौका नहीं मिला। आजकल की राजनीति में नेता बगैर सत्ता के राजनीति में ज्यादा समय तक अपने को एडजस्ट नहीं कर पाते हैं और वह सत्तारूढ़ दल के साथ चले जाते हैं।

सपा को यूपी की सत्ता न मिलने से सुभासपा नेता ओपी राजभर को भी इसी स्थिति का सामना करना पड़ा। ओपी राजभर ने सत्ता हासिल करने के लिए सत्ता के करीब जाना शुरू कर दिया। ओ पी राजभर ने यूपी भाजपा के उपाध्यक्ष और योगी आदित्यनाथ की सरकार के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह के साथ नज़दीकियां बढ़ानी शुरू कर दी। उन्होंने कई बार दयाशंकर सिंह से मुलाकात की।

राजभर की मुलाकात की जानकारी सार्वजनिक हो गई, तो उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह उनके मित्र हैं, इसलिए वह उनसे मिले। लेकिन सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ओपी राजभर से कुछ नहीं कहा बल्कि अखिलेश यादव ने इनकी निगरानी कराई। निगरानी में ओ पी राजभर की भूमिका संदिग्ध नज़र आई। इस पर अखिलेश यादव ने ओपी राजभर से दूरी बना ली। इससे ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव की आलोचना करना शुरू कर दिया। अखिलेश यादव ने बड़ी शालीनता के साथ कहा कि, “ओम प्रकाश राजभर जहां जाना चाहें जा सकते हैं, मैंने उनको रोका नहीं है।

सपा गठबंधन के साथ से हटने के बाद ओम प्रकाश राजभर ने बसपा से नज़दीकी बढाने का प्रयास किया लेकिन मायावती ने इनको कोई तवज्जो नहीं दी। इसके बाद इन्होंने कांग्रेस के साथ जाने का मन बनाया, लेकिन वहां भी इनको इंट्री नहीं मिली। इसके बाद थक-हार कर इन्होंने भाजपा के साथ ही जाने का मन बनाया और भाजपा के साथ पींगे बढाने लगे। भाजपा ने भी इनको साथ आने के लिए हरी झंडी दिखाई।

भाजपा की भी मजबूरी है कि वह पूर्वांचल में बिना किसी क्षेत्रीय पार्टी का हाथ थामे बगैर लोकसभा चुनाव में अकेले दम पर सफलता नहीं हासिल कर सकती है। इसलिए भाजपा ने सुभासपा के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला लगभग कर लिया है। अभी हाल ही में सम्पन्न हुए नगर निकाय के चुनाव में राज्य में भाजपा ने 17 की 17 नगर निगम पर कब्जा जमा लिया है, लेकिन नगर पालिका अध्यक्ष और नगर पंचायत अध्यक्ष के चुनावों में भाजपा को तगड़ी हार का सामना करना पड़ा है।

केंद्रीय मंत्रियों और योगी आदित्यनाथ की सरकार के मंत्रियों के क्षेत्रों में भाजपा बुरी तरह से चुनाव हार गई है। इससे भाजपा घबराई हुई है। पूर्वांचल में भाजपा को तगड़ा झटका लगा है। भाजपा को इससे लगता है कि वह अकेले दम पर यदि लोकसभा चुनाव लड़ती है तो उसको पूर्वांचल में ही तगड़ा झटका लग सकता है, इसलिए अब भाजपा सुभासपा के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ेगी। सुभासपा अलग ही खुश है क्योंकि वह भाजपा के साथ मिलकर और लोकसभा चुनाव लड़कर केन्द्र की राजनीति करने का ख्वाब देख रही है।

सुभासपा, भाजपा से लालगंज, घोसी, गाजीपुर और भदोही लोकसभा सीट तालमेल में चाहती है। लालगंज से वे अपने बेटे अरुण राजभर को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने अभी कुछ समय पहले हुए एक कार्यक्रम में पार्टी कार्यकर्ताओं से लालगंज सीट जीतने की बात कही थी और इसके लिए उनसे तैयार रहने के लिए कहा था।

2019 के लोकसभा चुनाव के समय ही सीटों के बंटवारे को लेकर भाजपा और ओम प्रकाश राजभर के बीच टकराव हुआ था जिसके चलते वह बाद में भाजपा का साथ छोड़कर अलग हो गए थे। बाद में वह कालांतर में अखिलेश यादव के साथ अपनी पार्टी का गठबंधन कर उनके साथ खड़े हो गए थे। लेकिन अब फिर सत्ता के लिए वह भाजपा के साथ तालमेल करने की तैयारी कर रहे हैं। इस समय भाजपा एक-एक लोकसभा सीट के लिए जोड़तोड़ कर रही है, ऐसे में वह ओम प्रकाश राजभर को समझौते में 4 लोकसभा सीट चुनाव लड़ने के लिए देगी ऐसा मुश्किल है।

यूपी में 80 लोकसभा सीट हैं। इनमें से 2019 के चुनाव में भाजपा 62 और उसका सहयोगी अपना दल 2 सीटें जीत पाया था। 10 बसपा, 5 सपा और 1 सीट कांग्रेस ने जीती थी। लेकिन इस बार भाजपा 80 की 80 सीट जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है जो किसी दिवास्वप्न की तरह से है। राज्य में मतदाताओं में सरकार के प्रति गहरी नाराजगी है। युवा बेरोजगारी को लेकर परेशान हैं। आम जनता महंगाई से त्रस्त है। रसोई गैस सिलेंडर की महंगाई ने लोगों की रसोई की व्यवस्था बिगाड़ दी है।

प्रदेश में अपराध और भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। मुख्यमंत्री की बेबसाइट पर सरकार की मशीनरी फर्जी आंकड़े डालकर सारे मामलों को निबटाए जाने की बात कहती है जबकि भुक्तभोगी/पीड़ित न्याय के लिए अभी भी दर-दर ठोकरें खाते हुए दिखाई देते हैं। ऐसे में सरकार अपने मुंह मियां मिट्ठू बनकर अपनी पीठ थपथपाने में जुटी हुई है और जनता द्वारा उसको (भाजपा को) जिताने का भ्रम पाले हुए है।ऐसी स्थिति में भाजपा को उसकी पुरानी 62 लोकसभा सीटें जीत पाना मुश्किल है, उसको अगर 30 सीटें मिल जाएं, तो बड़ी बात होगी।

सुभासपा और भाजपा के साथ लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर पेंच फंसा हुआ था। लेकिन सुभासपा सीटों को लेकर अड़ी हुई थी। किंतु अचानक सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर और उनके बेटे अरविंद राजभर को दिल्ली से बुलावा आया और वह दिल्ली गए तथा उन्होंने शनिवार को गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इसके बाद उन्होंने लखनऊ आकर सुभासपा के एनडीए के साथ जाने यानी सुभासपा को एनडीए का हिस्सा होने की बात कही।

सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने कहा कि, “प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, भाजपा अध्यक्ष और सीएम योगी ने सुभासपा की मांगों पर अपनी सहमति जताई है। मैं इसके लिए उनका आभार व्यक्त करता हूं।” उन्होंने कहा कि, “सुभासपा जिस तरह से पिछड़ों, दलितों के सम्मान की लड़ाई लड़ रही है, उसे अंजाम तक भाजपा ही पहुंचा सकती है। इन मुद्दों पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने साथ देने का भरोसा दिया है। इसलिए वह दोबारा एनडीए में शामिल हो रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि, “सामाजिक न्याय, देश की सुरक्षा, सुशासन, वंचितों, शोषितों, पिछड़ों, दलितों, महिलाओं, किसानों, नौजवानों और कमज़ोर वर्ग को सशक्त बनाने के लिए सुभासपा ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला लिया है।”

एनडीए में सुभासपा के शामिल होने पर देश के गृह मंत्री अमित शाह ने उनका स्वागत किया है। अमित शाह ने कहा है कि, “ओम प्रकाश राजभर से दिल्ली में मुलाकात हुई और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए में आने का निर्णय लिया है। मैं उनका एनडीए परिवार में स्वागत करता हूं। राजभर के साथ आने से उत्तर प्रदेश में एनडीए को मजबूती मिलेगी और मोदी के नेतृत्व में एनडीए द्वारा गरीबों और वंचितों के कल्याण के लिए किए जा रहे प्रयासों को और बल मिलेगा।”

सुभासपा के एनडीए में शामिल होने से भाजपा बड़ी खुश है। भाजपा को लगता है कि पूर्वांचल में राजभर के इशारे पर उसे भारी संख्या में राजभर वोट मिल जाएंगे, जिससे उसको पूर्वांचल में अधिक लोकसभा सीटें मिल जाएंगी और वह केंद्र सरकार में फिर से बैठने में कामयाब हो जाएगी।

यूपी में पूर्वांचल में घोसी, लालगंज, बलिया, देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर, डुमरियागंज, सलेमपुर, महराजगंज, संतकबीरनगर, बस्ती, अम्बेडकर नगर, जौनपुर, भदोही, वाराणसी, मिर्जापुर, राबर्ट्सगंज, सुल्तानपुर, बाराबंकी, कैसरगंज, बहराइच, श्रावस्ती, गोंडा, बांसगांव, गाजीपुर, चंदौली, मछलीशहर और मिश्रिख ऐसे लोकसभा क्षेत्र हैं, जिनमें 1 लाख से ऊपर राजभर जाति के वोटर हैं।

भाजपा यह मानकर चल रही है कि ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा के एनडीए का हिस्सा बन जाने भाजपा को बड़ा लाभ मिलेगा और उसकी लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ जाएगी। इससे उसकी केंद्र में फिर से वापसी हो सकती है। इसीलिए जल्दबाजी में सुभासपा को भाजपा ने एनडीए का हिस्सा बना लिया है और सुभासपा भी अपने हिस्से की बिना लोकसभा सीटें तय हुए एनडीए में शामिल हो गई है।

भाजपा और सुभासपा अपने-अपने हिसाब से इसका गुणा-भाग लगाकर हानि -लाभ देख रहे हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर एक बार फिर से भाजपा और सुभासपा में टकराव का होना तय माना जा रहा है। सुभासपा ने भाजपा से गाजीपुर, भदोही, घोसी और अम्बेडकर नगर की सीट लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए समझौते में मांगी है। लेकिन इसके साथ ही 2 सीट से कम नहीं पर समझौता करने और गाजीपुर और घोसी को नहीं छोंड़ने के लिए भी कहा है।

घोसी से ओम प्रकाश राजभर अपने बेटे अरुण राजभर को लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहते हैं। इसलिए वह घोसी नहीं छोंड़ने की बात कह रहे हैं। लेकिन इसमें अभी पेंच फंसेगा, क्योंकि भाजपा घोसी से दारा सिंह चौहान को लोकसभा चुनाव लड़ाएगी। भाजपा ने इसीलिए दारा सिंह चौहान को सपा से विधायक के पद से इस्तीफा दिलवाया है और उनको अपने साथ लाई है।

जबकि सपा में भी राजभर जाति के बड़े राजनेता हैं और इनका अपनी जाति पर तगड़ा प्रभाव है। केवल अंतर यह है कि यह राजनेता चिल्लाने का काम नहीं करते हैं और न ही यह हाय- तौबा मचाते हुए प्रचार -प्रसार करते हैं। सपा में राजभर बिरादरी के यह बड़े नेता राम अचल राजभर हैं। यह सांसद, यूपी सरकार में मंत्री और विधायक रह चुके हैं और इस वक्त भी यह सपा के विधायक हैं। इनकी अपनी बिरादरी पर अच्छी पकड़ है और यह ओम प्रकाश राजभर का रास्ता रोकने में सक्षम हैं।

यह लोकसभा चुनाव में ओम प्रकाश राजभर का रास्ता रोकेंगे, क्योंकि अखिलेश यादव ने पूर्वांचल में इनको कई लोकसभा सीटों का प्रभारी बनाया हुआ है। इसके साथ ही यूपी विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष सुखदेव राजभर के बेटे कमला कांत राजभर आज़मगढ़ के दीदारगंज से सपा के विधायक हैं। इनका भी अपनी बिरादरी पर बड़ा प्रभाव है। यह भी ओम प्रकाश राजभर के लिए लोकसभा चुनाव में बड़ी बाधा खड़ी करेंगे।

इसलिए अभी से एनडीए की यूपी के पूर्वांचल में बड़ी जीत का सपना देखना राजनीतिक अपरिपक्वता है, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है। सपना सभी देखते हैं, लेकिन राजनीति में सभी सपने सच नहीं होते हैं। यह तो आने वाले वक्त पर निर्भर है कि यूपी में आगामी लोकसभा चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा।

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