-परवेज़ बारी
भोपाल | स्कूली शिक्षा के मामले में मध्य प्रदेश की स्थिति काफी चिंताजनक है. एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (एएसईआर) द्वारा हाल ही में जारी आंकड़ों से पता चलता है कि बच्चों की शिक्षा के मामले में मध्य प्रदेश की स्थिति बेहद ख़राब है.
एएसईआर दस्तावेज़ कहता है कि मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक और उच्च-प्राथमिक विद्यालयों में नामांकित बच्चों में से केवल 56.8% ही नियमित रूप से अपने विद्यालयों में जाते हैं. इस लिहाज़ से शिक्षा के मामले में मध्यप्रदेश बिहार के बाद देश का दूसरा सबसे पिछड़ा राज्य है जहां 54.6% बच्चे ही स्कूलों में नियमित रूप से पढ़ते हैं
इस मामले में उत्तर प्रदेश थोड़ा बेहतर है, जहां 56.2% बच्चे स्कूल जाते हैं. इसके विपरीत, तमिलनाडु में 88.6% बच्चे स्कूलों में जाते हैं.
रिपोर्ट यह भी बताती है कि मध्य प्रदेश, देश के उन तीन राज्यों में है जहां कोविड-19 महामारी के बाद निजी स्कूलों में 6-14 साल के बच्चों का नामांकन बढ़ा है. आम तौर पर यह माना जाता है कि कोरोना महामारी की वजह से बच्चों की निजी स्कूल से सरकारी स्कूलों में प्रवेश लेने के मामलों में वृद्धि हुई है क्योंकि बेरोज़गारी में महंगाई और उद्योगों के बंद होने के कारण अभिभावकों की आय काफ़ी कम हो गई.
हालाँकि, मध्य प्रदेश में रुझान अलग रहा, निजी स्कूलों में बच्चों का प्रतिशत 2018 में 26.1% से बढ़कर 2022 में 27.4% हो गया.
एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि महामारी के दौरान स्कूलों के लंबे समय तक बंद रहने से एक बड़ा लर्निंग गैप होने के कारण राज्य में ज़्यादातर बच्चे निजी तौर पर भुगतान करके ट्यूशन का विकल्प चुन रहे हैं. 2018 में राज्य में ऐसे बच्चों का प्रतिशत 11% था, जो 2022 में बढ़कर 15% हो गया.
स्कूलों के बंद होने से बच्चों के सीखने का स्तर काफ़ी प्रभावित हुआ है. 2018 में, कक्षा तीन के 10.4% बच्चे सेकंड स्टडी लेवल
टेक्स्ट पढ़ पाते थे, जबकि 2022 में यह आंकड़ा गिरकर 7.9% हो गया. इसी तरह, 2018 में, पांचवी कक्षा के 34.4% बच्चे सेकंड लेवल टेक्स्ट पढ़ पाते थे 2022 में उनका प्रतिशत गिरकर 29.2% हो गया.
छात्रों के अंकगणितीय कौशल में भी गिरावट देखने को मिली है. 2018 में, दो संख्याओं को विभाजित कर पाने वाले पांचवी कक्षा के छात्रों का प्रतिशत 16.5 था, 2022 में यह घटकर 15.7 प्रतिशत ही रह गया.
शिक्षा के मामले में लड़कियों के साथ होता है अभी भी भेदभाव
एएसईआर दस्तावेज़ से पता चलता है कि स्कूल में नामांकन के मामले में अभी भी लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है, उच्च कक्षाओं में स्कूल न जाने वाले लड़कों और लड़कियों के बीच अंतर काफ़ी बढ़ रहा है.
उदाहरण के लिए, 7-10 वर्ष के आयु वर्ग में, 1.8% लड़के और 1.9% लड़कियाँ स्कूल नहीं गए. 11-14 वर्ष की आयु में, स्कूल न जाने वाले लड़कों का प्रतिशत 2.8% और लड़कियों का 3.8% था. 15-16 वर्ष के आयु वर्ग में अंतर और बढ़ गया, जिसमें 12.6 फीसदी लड़के और 17 फीसदी लड़कियां स्कूल नहीं जा रही थीं.
इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ें: Primary Education in Madhya Pradesh in Extremely Bad Shape