इंडिया टुमारो
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के एक इस्लामिक विद्वान को ज़मानत दे दी है जिन पर कथित रूप से 37 हिंदू परिवारों और 100 व्यक्तियों का धर्मांतरण करने का आरोप लगाया गया था.
आदेश पारित करते हुए न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता अदालत के आदेश के अनुसार पूछताछ के लिए जांच अधिकारी के समक्ष पेश हुआ था.
अदालत ने कहा, “यहां पेश मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में याचिकाकर्ता को 13.05.2022 से अंतरिम आदेश द्वारा संरक्षित किया गया है और अदालत के बाद के आदेश के अनुसार जांच एजेंसी के सामने पेश हुआ है, हम यह पुष्टि करना उचित समझते हैं कि पूर्व में पारित अंतरिम आदेश को देखते हुए निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी के मामले में उसे उन नियमों और शर्तों पर ज़मानत पर रिहा किया जा सकता है जो ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई हैं.”
अदालत याचिकाकर्ता की अग्रिम ज़मानत खारिज करने के गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली एक एसएलपी पर सुनवाई कर रही थी.
राज्य की ओर से पेश वकील कानू अग्रवाल ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता जांच के दौरान गोलमोल जवाब दे रहा था और इसलिए हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता होगी.
अदालत ने जांच एजेंसी को जरूरत पड़ने पर हिरासत में जांच की मांग वाली अर्जी दायर करने की अनुमति दी, जिस पर गुण-दोष के आधार पर सुनवाई करनी होगी.
अदालत ने कहा, “यह बिना कहे चला जाता है कि अगर राज्य / जांच एजेंसी को लगता है कि हिरासत में जांच की आवश्यकता है, तो उस मामले में, एजेंसी के पास संबंधित अदालत के समक्ष एक उपयुक्त आवेदन दायर करने का विकल्प होगा और वर्तमान आदेश जांच एजेंसी की राह में रुकावट नहीं होगा.”
इससे पहले गुजरात हाईकोर्ट ने 37 हिंदू परिवारों और 100 हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन कराने के मामले में आरोपी की अग्रिम ज़मानत खारिज कर दी थी.
आरोप था कि आवेदक ने उन्हें वित्तीय सहायता का लालच दिया और सरकारी धन से बने एक घर को इबादतगाह में बदल दिया.
आवेदक पर धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 4 और भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, 153(बी)(1)(सी), 506(2) के तहत अपराध दर्ज किया गया था.
रिपोर्ट के अनुसार यह भी आरोप लगाया गया कि आवेदक ने हिंदू समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाई. इस मामले में मई में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि याचिकाकर्ता को हिरासत में लेने के लिए उसके खिलाफ कोई कठोर कदम न उठाया जाए.